
नवाबगंज के रोजगार सेवक भुखमरी की कगार पर, पांच माह से नहीं मिला मानदेय
चुनाव आयोग की जिम्मेदारी निभाते हुए खुद के खर्च पर काम करने को मजबूर; शिक्षामित्र और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की भी स्थिति चिंताजनक
पंकज त्रिपाठी
चरदा (बहराइच) : भारत–नेपाल सीमा के विकासखण्ड नवाबगंज में कार्यरत रोजगार सेवक पिछले पांच महीनों से मानदेय न मिलने के कारण कठिन परिस्थिति में हैं। लगभग चार दर्जन से अधिक रोजगार सेवक अपने परिवार का पालन-पोषण और रोज़मर्रा की जरूरतें पूरी करने में असमर्थ हो चुके हैं। इन सेवकों का कहना है कि उन्हें चुनाव आयोग द्वारा बूथ लेवल अधिकारी की जिम्मेदारी दी गई है। लेकिन उनके मानदेय का भुगतान अब तक नहीं हुआ। इस कारण उन्हें न केवल अपने व्यक्तिगत खर्च से चुनाव संबंधित कार्य करना पड़ रहा है। बल्कि बच्चों की जिम्मेदारी और घर का खर्च भी पूरा करना मुश्किल हो गया है। सेवकों ने बताया हमारी नींदें उड़ी हुई हैं। दिन-रात काम कर रहे हैं। लेकिन मानदेय न मिलने से पेट की आग बुझाना मुश्किल हो गया है।
उनका यह भी कहना है कि यदि उनका नाम समाचार में प्रकाशित नहीं किया गया तो उन्हें डर है कि अधिकारियों द्वारा कार्रवाई हो सकती है। बावजूद इसके वे ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के साथ अपने काम को निभा रहे हैं। स्थानीय स्तर पर शिक्षामित्र, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और अन्य विकास कार्यकर्ता भी इसी समस्या से जूझ रहे हैं। उनका मानदेय न्यूनतम मजदूरी से भी कम है। जबकि जिम्मेदारी और पद बड़े दिए गए हैं। कर्मचारियों का कहना है कि सरकार उनकी मेहनत और जिम्मेदारी को देखते हुए उन्हें सम्मानजनक मानदेय प्रदान करे।
स्थानीय लोगों का कहना है कि रोजगार सेवक और विकास कार्यकर्ता सरकार की योजनाओं और निर्वाचन प्रक्रिया की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। अगर उनका मानदेय समय पर न दिया गया तो न केवल उनका जीवन प्रभावित होगा। बल्कि क्षेत्र में सरकारी योजनाओं की कार्यप्रणाली भी बाधित हो सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार और निर्वाचन आयोग को ऐसे कर्मचारियों की समस्याओं का तुरंत समाधान करना चाहिए। ताकि वे बिना किसी आर्थिक दबाव के अपने कर्तव्य का निर्वहन कर सकें।



