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हर गिरावट से खुलता है तेजी का रास्ता, 2008 की मंदी और महामारी बड़ा उदाहरण

नई दिल्ली : मौजूदा भू-राजनीतिक तनाव, ब्याज दरों में वृद्धि व महंगाई के चलते बाजारों में अस्थिरता जारी है। वैसे, बाजार हमेशा एक चक्र पूरा करते हैं। कुछ परिस्थितियों में उनके लिए नीचे जाना जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही अहम वापस रफ्तार पकड़ना भी है।

2020 इतिहास में घातक कोरोना महामारी की पहली लहर के अलावा बड़ी तादाद में शेयर बाजार में कूदे उन नए निवेशकों के लिए भी याद किया जाएगा, जिन्होंने गिरावट में निवेश कर भारी मुनाफा कमाया। 2020-21 में निफ्टी-50 ने 55 फीसदी का रिटर्न दिया, जो 11 साल में सबसे ज्यादा था। इससे पहले, 2009 में निवेशकों ने 60 फीसदी कमाई की थी।

ध्यान देने वाली बात यह है कि तब 2008 में आई ऐतिहासिक मंदी, महंगाई और बेरोजगारी ने दुनिया को घुटनों पर ला दिया था। वर्तमान में बाजारों पर नजर डालें तो अस्थिरता का माहौल है। भले ही बढ़ती महंगाई, ब्याज दरें, लदान (शिपमेंट) लागत हो या श्रमिकों की कमी और बदलती नीतियां, तेजड़ियों एवं मंदड़ियों के बीच रस्साकशी भी निवेशकों की चिंता बढ़ा रही है।

निवेश प्रक्रिया का हिस्सा है सुधार
बाजार में करेक्शन निवेश प्रक्रिया का हिस्सा है। 2008 में महंगाई के बाद उपजे संकट और मार्च, 2020 में महामारी के बाद हुए करेक्शन से निवेशक समुदाय पूरी तरह अवगत है। मौजूदा दौर में बाजारों में दिख रहा करेक्शन कोई पहली दफा नहीं है। 2006 में एक माह में सेंसेक्स में 30% और स्मॉल कैप इंडेक्स में 50% करेक्शन हुआ था। फिर सेंसेक्स जनवरी, 2008 तक चढ़कर 21,000 पहुंच गया। 20 माह में निवेशकों को 135 फीसदी रिटर्न मिला।

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