प्याज की बढ़ती कीमतों से हर कोई परेशान, कई शहरों में 100 रुपये के ऊपर पहुंचे दाम
नई दिल्ली : प्याज की कीमतों में उछाल ने आम आदमी को परेशान कर दिया है। अब केंद्र सरकार प्याज के दाम को काबू में करने के लिए बफर स्टॉक तक को खाली करने जा रही है। उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय की ओर से मंगलवार को जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया, “सरकार बाजार के घटनाक्रमों से अवगत है और प्याज की कीमतों को स्थिर करने के लिए सुधारात्मक कार्रवाई करने के लिए कड़ी निगरानी रख रही है।”
खाद्य और नागरिक वितरण मंत्रालय के मूल्य निगरानी प्रकोष्ठ (PMC) द्वारा रिपोर्ट की गई अखिल भारतीय मॉडल (औसत) खुदरा मूल्य में प्याज की कीमतें 60 रुपये प्रति किलोग्राम दिखाई गई हैं। पुणे, दिल्ली, चंडीगढ़ और कुछ अन्य शहरों के बाजारों में कीमतें 100 रुपये प्रति किलोग्राम से ऊपर बताई गई हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार, इस साल के प्याज के दाम अधिकतर लगभग स्थिर रहने के लंबे समय के बाद कीमतों में यह बढ़ोतरी हुई है। भारत के सबसे बड़े प्याज उत्पादक महाराष्ट्र के नासिक के थोक बाजार के व्यापारियों ने कहा कि मौजूदा स्थिति पूरी तरह से अस्थायी है और किसानों की ओर से सप्लाई में कमी के कारण ऐसा हुआ है। रबी सीजन का पुराना स्टॉक लगभग खत्म हो चुका है और नया स्टॉक अभी बाजारों में आना बाकी है। देश के सबसे बड़ी प्याज मंडी लासलगांव थोक बाजार में 200-250 टन के बीच प्याज आ रहा है। पिछले साल यह आंकड़ा करीब 1,000 टन था। डिमांड और सप्लाई का यह बेमेल प्याज के भाव बढ़ने का मुख्य कारण है।
अक्टूबर की बारिश से खरीफ फसल की कटाई पर बहुत असर पड़ा। पूरे भारत में पिछले साल के 2.85 लाख हेक्टेयर के मुकाबले खरीफ की बुवाई 3.82 लाख हेक्टेयर से अधिक होने का अनुमान है। लेट खरीफ की बुवाई 0.55 लाख हेक्टेयर से अधिक थी, जबकि 2023 में यह 1.66 लाख हेक्टेयर थी। व्यापारियों को उम्मीद है कि कटाई और सामान्य सप्लाई की बहाली के बाद अगले 10 दिनों में प्याज की कीमतें स्थिर हो जाएंगी। मंडी में प्याज की सप्लाई बढ़ते ही इसके दाम कम होने लगेंगे।
महाराष्ट्र में किसान जून और जुलाई में अपनी खरीफ प्याज की फसल बोते हैं और अक्टूबर से इसकी कटाई करते हैं। हालांकि, इस साल अक्टूबर में बारिश और दीवाली के कारण अक्टूबर के अंत में होने के कारण कटाई में देरी हुई। एक अन्य फसल, लेट खरीफ, सितंबर और अक्टूबर के बीच बोई जाती है और दिसंबर के बाद काटी जाती है। सबसे महत्वपूर्ण रबी फसल दिसंबर से जनवरी तक बोई जाती है और मार्च के बाद काटी जाती है।
इनकम टैक्स का नाम सुनते ही टैक्स, रिबेट्स, डिडक्शन और सबसे ज्यादा उसकी जटिल शब्दावली को लेकर पसीने छूटने लगते हैं। आम आदमी की टैक्स कानूनों को लेकर इन्हीं परेशानियों को दूर करने के लिए आयकर अधिनियम 1961 के प्रावधानों में बदलाव करने की तैयारी चल रही है।