थायरॉइड की बीमारी एक बड़ी जनसंख्या को अपनी चपेट में ले चुकी है। हालांकि आमतौर पर इसे महिलाओं की बीमारी माना जाता है। लेकिन यह दिक्कत पुरुषों को नहीं होती, ऐसा मानना सही नहीं है। यहां Thyroid के लक्षणों और अन्य दिक्कतों के बारे में बताया जा रहा है। अगर आपमें ये लक्षण हैं तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लें…
हाइपोथायरॉइडिज़म क्या होता है?
थाइरॉयड की बीमारी को ही हाइपोथायरॉइडिज़म के नाम से भी जाना जाता है। यह एक सामान्य डिसऑर्डर है, जिससे घबराने की नहीं बल्कि सही समय पर इसका इलाज कराने की जरूरत होती है। हाइपोथायरॉइडिज़म को दो भागों में बांटकर देखा जाता है। इन्हें प्राइमरी और सैकंडरी (central)हाइपोथायरॉइडिज़म कहा जाता है।
प्राइमरी और सैकंडरी हाइपोथायरॉइडिज़म में अंतर
-प्राइमरी हाइपोथायरॉइडिज़म तब होता है, जब थाइरॉयड ग्लैंड जरूरी मात्रा में थाइरॉयड हार्मोन का उत्पादन नहीं कर पाती। ऐसी स्थिति ज्यादातर आयोडिन की कमी के कारण बनती है।
-सैकंडरी हाइपोथायरॉइडिज़म, उस स्थिति को कहा जाता है जब थाइरॉयड ग्लैंड सही तरीके से काम कर रही हो लेकिन पीयूष ग्रंथि (Pituitary Gland) और दिमाग का एक हिस्सा हाइपोथैलेमस (Hypothalamus) सही ढंग से काम ना करे।
हाइपोथायरॉइडिज़म के लक्षण
इस बीमारी के लक्षण बहुत मामूली और अलग-अलग मरीज में अलग-अलग हो सकते हैं। कुछ सामान्य लक्षण जो हाइपोथायरॉइडिज़म के ज्यादातर मरीजों में देखने को मिलते हैं उनमें…
-त्वचा का रुखापन
-आवाज में बदलाव
-बाल तेजी से झड़ना
-कब्ज रहना
-थकान महसूस करना
- मांसपेशियों (Muscles)में ऐंठन होना
- हल्की-सी ठंड भी बर्दाश्त ना कर पाना
-नींद आने में समस्या
-माहवारी (Periods)संबंधी दिक्कतें
-मोटापा बढ़ना - स्तनों से अपने आप वाइट डिस्चार्ज होना
-पसीना कम आना
-त्वचा का रंग बदलना
यह भी है एक लक्षण
कई बार हाइपोथायरॉइडिज़म के कुछ पेशंट्स में डिप्रेशन, एंग्जाइटी, मेमॉरी लॉस या दूसरे मेंटल डिसऑडर्स देखने को मिलते हैं। इस दौरान व्यक्ति अकेलपन, सुस्ती और भावनात्मक रूप से खुद को बहुत कमजोर महसूस करता है। साथ ही वह डेली रुटीन से जुड़ी चीजों को याद रखने में भी परेशानी महसूस कर सकता है।
इन लक्षणों को गंभीरता से लें
हाइपोथायरॉइडिज़म के कुछ ऐसे भी लक्षण होते हैं, जिन्हें हम आमतौर पर बीमारी के लक्षणों के रूप में समझ ही नहीं पाते हैं। इनमें मुख्य लक्षण इस प्रकार है…
-धीरे बोलना और धीरे चलना
- गले का बड़ा दिखना
-बालों का रुखा और बेजान दिखना - त्वचा में पीलापन दिखना
-चेहरे के हाव-भाव क्लियर ना होना
-जीभ का असामान्य आकार होना
-दिल की धड़कने बहुत हल्की महसूस होना
यह भी जानना है जरूरी
हाशिमोटो थाइरॉइडाइटिस (Hashimoto Thyroiditis)यह एक ऑटोइम्यून थायरॉइड डिजीज है, जो ज्यादातर मामलों में आयोडीन की कमी के कारण होती है। इस बीमारी में मरीज के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता खुद उसके ही शरीर की थायरॉइड ग्लैंड के खिलाफ हो जाती है।
हाशिमोटो थायरॉइडाइटिस के लक्षण
हाशिमोटो थायरॉइडाइटिस के कुछ खास लक्षण होते हैं, जो इसे थायरॉइड संबंधी अन्य बीमारियों से अलग करते हैं। ये इस प्रकार हैं…
- गले में सूजन या भारीपन महसूस होना
-हर समय थकावट महसूस करना
-थायरॉइड ग्लैंड का आकार बढ़ जाना
-कभी-कभी गले और गर्दन में तेज दर्द उठना कब करानी चाहिए थायरॉइड की जांच?
अमेरिकन थाइरॉयड एसोशिएशन के अनुसार, 35 साल की उम्र से थाइरॉयड की जांच करानी शुरू कर देनी चाहिए और हर 5 साल बाद इसकी जांच नियमित तौर पर करानी चाहिए। ताकि आप इस गंभीर बीमारी से बच सकें। यह बात महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए है। हालांकि थायरॉइड डिजीज को महिलाओं से जोड़कर देखा जाता है।
हाई रिस्क की स्थिति
लाइफ की कुछ खास परिस्थितियों में थायरॉइड की जांच अवश्य करानी चाहिए। क्योंकि उस वक्त इस बीमारी की चपेट में आने की आशंका सबसे अधिक होती है। इन लोगों को जरूर करानी चाहिए अपनी जांच…
-60 साल से अधिक उम्र की महिलाओं को
-गर्भवती महिलाओं को।
-जिन्होंने गर्दन और सिर की रेडिएशन थेरपी कराई हो उन लोगों को।
- जो लोग ऑटोइम्यून डिसऑर्डर से जूझ रहे हों उन्हें।
-जिन्हें टाइप-1 डायबीटीज हो।
-जिनके ब्लड में थाइरॉयड पैरॉक्सीडेज़ ऐंटिबॉडीज बनती हों।
- जिनकी थाइरॉयड बीमारी संबंधी फैमिली हिस्ट्री हो।
थायरॉइड का इलाज क्यों है जरूरी?
अगर वक्त रहते हाइपोथायरॉइडिज़म का इलाज ना कराया जाए तो कई बार यह बीमारी व्यक्ति को कोमा की स्थिति में ले जाती है या मृत्यु का कारण भी बन सकती है। वहीं अगर सही समय पर थायरॉइड से जूझ रहे बच्चों का इलाज ना कराया जाए तो इनमें घातक मानसिक विकार उत्पन्न हो सकते हैं। जानकारी के अनुसार, इस बीमारी से जूझ रहे ज्यादातर लोगों की मृत्यु हार्ट फेल्यॉर के कारण होती है।
- प्राइमरी हाइपोथायरॉइडिज़म में सीरम टीएसएच लेवल और टी-4 लेवल चेक किया जाता है। बीमारी होने की स्थिति में इनका स्तर सामान्य स्थिति से या तो कम होता है या अधिक होता है।
-सैकंडरी हाइपोथायरॉइडिज़म की जांच में टी-4 और ऐंटिथायरॉइड ऐंटिबॉडीज का लेवल जांचा जाता है।
सही ट्रीटमेंट का असर
यदि हाइपोथायरॉइडिज़म का इलाज सही तरीके से कराया जाए तो पीड़ित व्यक्ति के अंदर इस बीमारी के लक्षण कुछ हफ्तों या महीनों के अंदर ही दिखने बंद हो जाते हैं। नियमित जांच और डॉक्टर की सलाह पर अपनी जीवनशैली निर्धारित करके भी आप थायरॉइड की दिक्कत से ताउम्र बचे रह सकते हैं।