उत्तर पूर्वी भारत में नृजातीय पहचान बचाने की कवायद
स्तम्भ: उत्तर पूर्वी भारतीय राज्यों के लिए नृजातीय समुदायों के अधिवास की समस्या एक बड़ी चुनौती के रूप में रही है। अंतर नृजातीय संघर्ष और उससे उभरी हिंसा ने उत्तर पूर्व के शांति , सुरक्षा और स्थिरता को कई अवसरों पर छिन्न भिन्न किया है। हाल ही में मिजोरम के मुख्यमंत्री द्वारा त्रिपुरा सरकार से निवेदन किया गया है कि वह ब्रू अथवा रेयांग जनजाति के परिवारों को जम्पुई पहाड़ियों और त्रिपुरा के उत्तरी जिले से लगे क्षेत्रों में पुनः बसाने का प्रस्ताव अस्वीकार कर दे।
मिजोरम के मुख्यमंत्री ने त्रिपुरा सरकार से आग्रह किया है कि वो ऐसे मिजो अधिवासों जो त्रिपुरा की सीमा के निकट हों, वहां ब्रू परिवारों को ना बसाएं जबकि त्रिपुरा सरकार ने साफ कर दिया है कि वह ब्रू प्रवासियों के मामले को केंद्र सरकार के दिशा निर्देशों के अनुरूप ही देख रही है और देखेगी।
चूंकि केंद्र सरकार और त्रिपुरा सरकार का आपसी ताल मेल वर्तमान समय में अच्छा है, इसलिए मिजो नेतृत्व इस मुद्दे को लेकर थोड़ा सशंकित है। अभी एक हफ्ते पूर्व ही उत्तरी त्रिपुरा स्थित गैर सरकारी संगठन मिजो कन्वेंशन ने जैंपुई पहाड़ियों और उसके आस पास के क्षेत्रों में ब्रू परिवारों को ना बसने देने के लिए विरोध प्रदर्शन किया था। ऐसे में मिजोरम और त्रिपुरा सरकारें क्या करती हैं इसे देखना बाकी है लेकिन इस बीच 37 हजार ब्रू जनजाति परिवारों का कुशल विस्थापन एक मानवीय मांग हैं जिसे दोनों राज्य सरकारों को सही दिशा देना है। दरअसल मिजोरम की हाल की इस मांग के पीछे उत्तर पूर्वी भारत में ऐतिहासिक ब्रू-रियांग समझौते की बातों का प्रभाव है।
जिस तरह जम्मू और काश्मीर भारत का अभिन्न अंग है ठीक वैसे ही उत्तर पूर्वी भारतीय राज्य भी भारत के अभिन्न अंग हैं। उत्तर पूर्वी भारतीय राज्यों में विप्लव कारी समूहों द्वारा जिस तरह से भारतीय संघ को चुनौती देते हुए उससे बाहर निकलने के लिए पृथकतावादी आंदोलन चलाए गए हैं, उसने ना केवल उत्तर पूर्वी भारत में आंतरिक अशांति को पैदा किया है बल्कि भारतीय संप्रभुता और अखंडता पर भी उंगली उठाई है।
हाल के समय में उत्तर पूर्वी भारत में ब्रू और मिजो जनजातियों के मध्य तनाव, नगा विद्रोहियों द्वारा एक पृथक संविधान और झंडे की मांग पर बगावत जारी रखने, त्रिपुरा में तिरपालैंड और बंगालिस्तान की मांग, नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा और आल त्रिपुरा टाइगर फोर्स की हिंसक गतिविधियों का पुनः उभरना, नागालैंड के नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (इजाक मुइवा) और नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (खपलांग) द्वारा असम, अरुणाचल प्रदेश और म्यांमार में भारत विरोधी हिंसक गतिविधियां चलाना आदि ना जाने कितने उदाहरण हैं जिनसे यह सिद्ध होता है कि कई उत्तर पूर्वी राज्यों के सक्रिय विरोधी गुटों में साझे संप्रभुता की मानसिकता काम कर रही है।
इस मानसिकता को तोड़ने के लिए भारत सरकार को प्रभावी उपाय करने होंगे और हाल में भारत सरकार ने ऐसे कुछ कदम उठाए भी हैं जिनसे पता चलता है कि उत्तर पूर्वी भारत की सुरक्षा और विकास को लेकर सरकार संवेदनशील हुई है। इसका ताजातरीन उदाहरण त्रिपुरा और मिजोरम के बीच दो दशकों से चलने वाले ब्रू अथवा रेयांग जनजाति के विवाद के स्थाई समाधान के लिए केंद्र सरकार के द्वारा किए गए ऐतिहासिक समझौते में देखा जा सकता है।
केन्द्रीय गृह मंत्री की अध्यक्षता में 16 जनवरी, 2020 को नई दिल्ली में भारत सरकार, त्रिपुरा और मिज़ोरम सरकार और ब्रू-रियांग प्रतिनिधियों के बीच में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। इस नए समझौते से करीब 23 वर्षों से चल रही इस बड़ी मानव समस्या का स्थायी समाधान खोजने की कोशिश की गई थी और करीब 37 हजार ब्रू अथवा रेयांग व्यक्तियों को त्रिपुरा में बसाने की योजना बनाई गई थी। इस समझौते में मिज़ोरम और त्रिपुरा के मुख्यमंत्री के अलावा नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस के अध्यक्ष, दि इंडिजीनस प्रोग्रेसिव रीजनल अलायंस के अध्यक्ष और ब्रू प्रतिनिधि भी शामिल थे।
केंद्रीय गृह मंत्री ने स्पष्ट किया था कि भारत सरकार ने लंबे समय से हजारों की संख्या में प्रताड़ित व्यक्तियों को पुनः बसाने का स्थायी समाधान निकाल लिया है। इस समझौते के अंतर्गत ब्रू-रियांग को पुनर्स्थापित करने के लिए त्रिपुरा और मिज़ोरम राज्य सरकारों व ब्रू-रियांग प्रतिनिधियों से विचार-विमर्श कर एक नई व्यवस्था बनाने का फैसला किया गया था जिसके अंतर्गत वे सभी ब्रू-रियांग परिवार जो त्रिपुरा में ही बसना चाहते हैं, उनके लिए त्रिपुरा में ही व्यवस्था करने का फैसला लिया गया था।
इन सभी लोगों को त्रिपुरा राज्य के नागरिकों के सभी अधिकार दिये जाएँगे और वे केंद्र व राज्य सरकारों की सभी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठा सकेंगे। ऐसा माना गया था कि इस नए समझौते के बाद ये ब्रू-रियांग परिवार अपना सर्वांगीण विकास करने में समर्थ होंगे। इस नए समझौते को करने के लिए भारत सरकार को त्रिपुरा व मिज़ोरम सरकारों, ब्रू-रियांग प्रतिनिधियों का पूरा समर्थन भी मिला था।
नई व्यवस्था के तहत ब्रू- रियांग जनजातियों के लिए सुविधाएं प्रदान करने की बात की गई थी। नई व्यवस्था के अंतर्गत भारत सरकार द्वारा ब्रू विस्थापित परिवारों को 40×30 फुट का आवासीय प्लॉट देने और उनकी आर्थिक सहायता के लिए प्रत्येक परिवार को, पहले समझौते के अनुसार 4 लाख रुपये फ़िक्स्ड डिपॉज़िट में, दो साल तक 5 हजार रुपये प्रतिमाह नकद सहायता, दो साल तक फ्री राशन व मकान बनाने के लिए 1.5 लाख रुपये देने का प्रावधान किया गया था।
इस नई व्यवस्था के लिए त्रिपुरा सरकार भूमि की व्यवस्था करने पर सहमत हुई थी। भारत सरकार, त्रिपुरा, मिज़ोरम सरकार और ब्रू-रियांग प्रतिनिधियों के बीच यह नया समझौता हुआ जिसमें करीब 600 करोड़ रुपये की सहायता केंद्र सरकार द्वारा दिए जाने की बात की गई थी।
ब्रू-रियांग जनजाति की मूल समस्या की पृष्ठभूमि
ब्रू जनजाति अथवा रियांग जनजाति समुदाय मिज़ोरम का सबसे बड़ा अल्पसंख्यक आदिवासी समूह है। इस जनजातीय समूह के सदस्य म्यांमार के शान प्रांत के पहाड़ी इलाके के मूल निवासी हैं जो कुछ कुछ सदियों पहले म्यांमार से आकर मिज़ोरम में बसे थे। मिज़ोरम की बहुसंख्यक जनजाति मिज़ो इन्हें ‘बाहरी’ कहती हैं।
ब्रू जनजातियों को रियांग भी कहा जाता है। गृह मंत्रालय ने चेंचू, बोडो, गरबा, असुर, कोतवाल, बैगा, बोंदो, मारम नागा, सौरा जैसे जिन 75 जनजातीय समूहों को विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों (पीवीटीजी) के रूप में वर्गीकृत किया है, रियांग उनमें से एक हैं। ये 75 जनजातीय समूह देश के 18 राज्यों और अण्डमान, निकोबार द्वीप समूह क्षेत्र में रहते हैं। त्रिपुरा और मिज़ोरम के अलावा इस जनजाति के सदस्य असम और मणिपुर में भी रहते हैं। इनकी बोली रियांग है जो तिब्बत-म्यांमार की कोकबोरोक भाषा परिवार का अंग है। रियांग बोली में ‘ब्रू’ का अर्थ ‘मानव’ होता है। पूर्वोत्तर की अन्य जनजातियों की तरह रियांग जनजाति के लोगों की शक्ल भी मंगोलों से मिलती-जुलती है। त्रिपुरी के बाद यह त्रिपुरा की दूसरी सबसे बड़ी जनजाति है। रियांग जनजाति मुख्यतः दो बड़े गुटों में विभाजित है- मेस्का और मोलसोई।
1995 में यंग मिजो एसोसिएशन और मिजो स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने ब्रू जनजाति को बाहरी घोषित कर दिया था। इन संगठनों ने राज्य की चुनावी भागीदारी में ब्रू समुदाय के लोगों की मौजूदगी का विरोध किया। 1996 में ब्रू समुदाय और बहुसंख्यक मिजो समुदाय के मध्य स्वायत्त जिला परिषद के मुद्दे पर खूनी संघर्ष हुआ और मिजोरम के डंपा टाइगर रिजर्व में एक मिजो वन अधिकारी की हत्या के बाद वहां मिजो और ब्रू के बीच भीषण नृजातीय संघर्ष और तनाव शुरू हो गया और अक्तूबर 1997 में ब्रू जनजाति ने पलायन कर त्रिपुरा में शरण ले ली थी।
त्रिपुरा में ये कैंपों में रह रहे हैं। त्रिपुरा लगातार यह कोशिशें करता रहा कि ब्रू वापस मिजोरम लौटें। केंद्र सरकार के साथ मिलकर इस मसले को सुलझाने की कोशिशें की गईं। वर्ष 1997 में जातीय तनाव के कारण करीब 5,000 ब्रू-रियांग परिवारों ने, जिसमें 37,000 से अधिक ब्रू-रियांग जनजातीय लोग शामिल थे, मिज़ोरम से त्रिपुरा में शरण ली जिनको वहां कंचनपुर, उत्तरी त्रिपुरा में अस्थायी शिविरों में रखा गया। ये कोलासिब और मामित जिलों में भी रहे।
वर्ष 2010 से भारत सरकार लगातार प्रयास करती रही है कि इन ब्रू-रियांग परिवारों को स्थायी रूप से बसाया जाए। वर्ष 2014 तक विभिन्न बैचों में 1622 ब्रू-रियांग परिवार मिज़ोरम वापस गए। ब्रू-रियांग विस्थापित परिवारों की देखभाल व पुनर्स्थापन के लिए भारत सरकार त्रिपुरा व मिज़ोरम सरकारों की सहायता करती रही है।
3 जुलाई, 2018 को भारत सरकार, मिज़ोरम व त्रिपुरा सरकार व ब्रू-रियांग प्रतिनिधियों के बीच एक समझौता हुआ था जिसके उपरान्त ब्रू-रियांग परिवारों को दी जाने वाली सहायता में काफी बढ़ोतरी की गई। समझौते के उपरान्त वर्ष 2018-19 में 328 परिवार, जिसमें 1369 व्यक्ति थे, त्रिपुरा से मिज़ोरम इस नए समझौते के तहत वापस गए। अधिकांश ब्रू-रियांग परिवारों की यह मांग थी कि उन्हें सुरक्षा की आशंकाओं को ध्यान में रखते हुए त्रिपुरा में ही बसा दिया जाए।
वस्तुतः उत्तर पूर्वी भारत में किसी भी प्रकार का नृजातीय संघर्ष और हिंसा पृथकतावादी गतिविधियों को बढ़ावा दे सकती है। म्यांमार और उसके आस पास के क्षेत्र के विद्रोही और बगावती समूह उत्तर पूर्वी भारत के विप्लवकारियों से गठजोड़ कर भारत विरोधी षड़यंत्र कर सकते हैं।
इसलिए भारत सरकार और राज्य सरकारों को एथेनिक मुद्दों से प्रभावी और मानवीय संवेदनाओं के आधार पर निपटने की जरूरत है। अंतर्राज्यीय विवादों को बढ़ावा ना मिले, इसके लिए उत्तर पूर्वी भारत के नृजातीय समुदायों में सरकार के प्रति विश्वसनीयता के भाव बढ़ाने के लिए विकास कार्यों की नई पटकथा लिखने की जरूरत है।
(लेखक अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ हैं)