राष्ट्र के विकास की धुरी है किसान या सृष्टि के सौंदर्यीकरण का सूत्रधार है किसान
डॉ. शंकर सुवन सिंह
भारत एक कृषि प्रधान देश है। भारत की आधी से ज्यादा आबादी खेती पर निर्भर रहती है। किसान अनाज उगाकर अपना जीवन यापन करता है और लोग इसी अनाज को खाकर जीवित रहते हैं। जब किसान अनाज उगाता है तब वह लोगों के थाली में आता है। खेती सम्बन्धी कार्य को करने वाला व्यक्ति किसान कहलाता है। किसान को कृषक या खेतिहर के नामों से भी पुकारा जाता है। खाद्यान्न के उत्पादन से लेकर विपणन तक की व्यवस्था किसानों के जिम्मे होती है। किसान खेत का मालिक हो सकता है। कृषि भूमि के मालिक द्वारा काम पर रखा गया मजदूर भी किसान हो सकता है। श्रम के बिना किसान या श्रमिक होना असंभव है। अतएव किसान और श्रमिक एक दूसरे के पूरक हैं। कृषक शब्द श्रम से बना है। श्रम का मतलब मेहनत होता है। मेहनत दो प्रकार की होती है शारीरिक मेहनत और मानसिक मेहनत। शारीरिक मेहनत करके आजीविका चलाने वाले व्यक्ति को कृषक कहते है। अर्थशास्त्र में श्रम का अर्थ है शारीरिक श्रम। इसमें मानसिक कार्य भी शामिल हैं। जिस प्रकार मछली का सम्बन्ध पानी से है, उसी तरह कृषक का सम्बन्ध श्रम से है।
मछली बिना जल के जीवित नहीं रह सकती, उसी प्रकार किसान बगैर श्रम के जीवित नहीं रह सकता। कहने का तात्पर्य – श्रम आजीविका का साधन है। जिस पर कृषक निर्भर रहता है। किसान शारीरिक श्रम करके अपना और अपने परिवार का पेट पालता है। वहीँ शिक्षित वर्ग मानसिक श्रम करके अपना और अपने परिवार का पेट पालता है। किसान और शिक्षित वर्ग दोनों श्रमिक हैं। एक शारीरिक श्रम पर निर्भर है तो दूसरा मानसिक श्रम पर। अतएव बिना श्रम के किसान की बात करना निरर्थक है। श्रम है तो कृषक है। किसान निष्काम सेवा का सबसे बड़ा प्रमाण है। परिश्रम रूपी जीवन का दूसरा नाम ही किसान है। मिट्टी को सोना हमारे किसान ही बनाते हैं। हीरे जवाहारात रूपी लहलहाती फसलें धरती के सौंदर्यीकरण में चार चाँद लगा देती हैं। धरती की सुंदरता का सशक्त माध्यम किसान ही है। किसान कर्मयोगी है। सख्त धुप, कड़कड़ाती ठण्ड और घनघोर बारिश में कर्मयोगी की भाँति वह अपनी साधना में लीन रहते है। किसान सभी ऋतुओं का आनंद लेता है। किसान अपने आप को सभी मौसम में ढाल लेता है। मानो ऐसा लगता है मौसम और किसान एक दूसरे के पूरक हों। सारी ऋतुएं किसान के सामने हँसती-खेलती निकल जाती हैं। किसान मिट्टी/धरती का पालन हार है। धरती की मिट्टी तभी सोना उगलती है जब किसान उस मिट्टी को उपजाऊ बनाता है। अन्न का उत्पादन मिट्टी पर ही आधारित है। जिस प्रकार सृष्टि का संचालन भगवान् विष्णु करते हैं उसी प्रकार किसान मिट्टी के सौंदर्यीकरण के द्वारा सृष्टि का संचालन और कल्याण करता है। सृष्टि का संचालन खाद्यान्न/अन्न द्वारा ही संभव है। अन्न है तो सब धन्य है। अतएव अन्न का धन्यवाद करिये जिससे किसान को प्रेरणा मिले।
किसान में हम भगवान् विष्णु के दर्शन कर सकते हैं। भारत देश की मिट्टी सोना है तो भारत का किसान सोनार है। एक अच्छा सोनार ही सोने की प्रमाणिकता को साबित कर सकता है। उसी प्रकार एक किसान अपनी लहलहाती फसलों के द्वारा मिट्टी या धरती के सौंदर्यीकरण की प्रमाणिकता को साबित करता है। तभी तो कहा जाता है मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती, मेरे देश की धरती। देश में किसान की स्थिति हमेशा से ही चर्चा का विषय बनी रहती है। ख़ास तौर पर राजनितिक दलों के द्वारा चुनाव के समय इस विषय पर काफी जोर दिया जाता है। भारत देश में अधिकांश आय का स्रोत कृषि ही है और किसान इसका अभिन्न अंग है। देश की आर्थिक व्यवस्था बनाये रखने में किसान की महत्वपूर्ण भूमिका है। किसान इस देश की नींव हैं और जब इस नींव पर संकट आता है तो देश की आधार शिला तक हिल जाती है। इसलिए आज हम सबको किसान और कृषि के स्तर को और भी ज्यादा उठाने में एक साथ आगे आना चाहिए। किसान अन्नदाता है अतएव वह धरतीपुत्र भी कहलाता है। भारत में किसानों के सम्मान व आदर में राष्ट्रीय किसान दिवस 23 दिसंबर को मनाया जाता है। किसान दिवस चौधरी चरण सिंह के जन्मदिन के उपलक्ष में मनाया जाता है। किसान दिवस मनाने की परंपरा वर्ष 2001 से शुरू हुई थी। देश व किसानों के लिए यह दिन बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह कृषि क्षेत्र की नवीनतम सीखों के साथ समाज के किसानों को सशक्त बनाने का विचार देता है।
इस दिन आयोजित होने वाले किसान दिवस समारोह लोगों को किसानों के सामने आने वाले विभिन्न मुद्दों के बारे में शिक्षित करने का काम करते हैं। देश के प्रधानमंत्री व किसान नेता चौधरी चरण सिंह ने किसानों की भलाई के लिए सर छोटू राम की विरासत को आगे बढ़ाया था। उन्होंने 23 दिसंबर 1978 को किसान ट्रस्ट भी बनाया। जिससे, देश में किसानों के मुद्दों के बारे में जागरूकता फैलाई जा सके। चौधरी चरण सिंह भारत के पांचवे प्रधानमंत्री थे। चौधरी चरण सिंह ने अपने प्रधानमंत्री काल (जुलाई 1979- जनवरी 1980) में किसानों के हित में अहम् फैसले लिए और कई नीतियां बनाई थी। चौधरी चरण सिंह ने एक बार कहा था कि सच्चा भारत अपने गावों में बसता है। किसान दिवस के दिन शैक्षणिक संस्थानों व किसानों से जुड़े सरकारी विभागों में विभिन्न सम्मान कार्यक्रम, वाद-विवाद प्रतियोगिता, संगोष्ठियों, प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिताओं, चर्चाओं, कार्यशालाओं और प्रदर्शनियों का आयोजन किया जाता है। भारत में किसानों का योगदान अतुलनीय है जिसे शब्दों में बयान कर पाना किसी भी व्यक्ति के लिए संभव नहीं है। भारत दुनिया में पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्था है। अर्थव्यवस्था में कृषि का सबसे अधिक योगदान होता है।
किसी भी देश में किसान ना हो तो उस देश के नागरिकों का जीवन खतरे में पड़ जाएगा। भारत आज दुनिया का एक उभरता हुआ कृषि आधारित अर्थव्यवस्था है। राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में 10.07 करोड़ परिवार खेती पर निर्भर हैं। यह संख्या देश के कुल परिवारों का 48 फीसदी है। विश्व में कृषि उत्पादन के क्षेत्र में भारत का चौथा स्थान है। भारत में पर्याप्त मात्रा में खाने की खाद्य सामग्री का उत्पादन होता है। भारत आज तेजी के साथ दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की कतार में है। भारत सरकार को कृषि से जुड़े हुए कामों को और भी ज्यादा प्रोत्साहित करने की जरुरत है। किसानों के आर्थिक स्तर को ऊंचा करना होगा तभी भारत एक दिन विश्व में सबसे आगे होगा।
लेखक
डॉ. शंकर सुवन सिंह
वरिष्ठ स्तम्भकार एवं विचारक/ सीनियर ब्लॉगर
असिस्टेंट प्रोफेसर
कृषि विश्वविद्यालय,प्रयागराज (यू.पी.)