खालिस्तान मुद्दे और कानूनी सहयोग के लिए एफबीआई के डायरेक्टर और भारत के सीबीआई चीफ की मुलाकात
नई दिल्ली (विवेक ओझा): अमेरिका के एफबीआई के डायरेक्टर क्रिस्टोफर रे ( Christopher Wray) ने सीबीआई के डायरेक्टर प्रवीण सूद से नई दिल्ली में मुलाकात की है। एफबीआई ( के डायरेक्टर की दो दिवसीय भारत यात्रा एक ऐसे समय में हुई है जब अमेरिका भारत पर सिख अलगाववादी गुरुवंत सिंह पन्नू को अमेरिकी धरती पर मारने का षड्यंत्र करने का आरोप लगा चुका है। हाल ही में अमेरिका ने भारतीय नागरिक निखिल गुप्ता पर अमेरिकी धरती पर गुरूवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश रचने का आरोप लगाया था, ऐसे में दोनों देशों के संबंध कहीं न कहीं प्रभावित हो सकते थे।
इसलिए यह जरूरी हो गया था कि दोनों देशों के कूटनीतिक रिश्तों पर आंच न आने दी जाय और इसी नजरिए से एफबीआई के डायरेक्टर की भारत की यात्रा को देखा जा रहा है। आपको बता दें कि पन्नू प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन सिख फॉर जस्टिस (SFJ) का कुख्यात खालिस्तानी आतंकी है जो भारत और अन्य विदेशी धरती पर खालिस्तान आंदोलन को खाद पानी देने के लिए जाना जाता है। पन्नू खालिस्तान की मांग को लेकर भारत के खिलाफ युद्ध की वकालत करता है । उसके इशारों पर दुनियाभर के कई देशों में भारतीय दूतावासों, नागरिकों और हिंदू मंदिरों पर हमले हुए। उसे पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से फंड भी मिलता रहा है।
ऐसे में सामरिक कूटनीतिक स्तर पर भारत और अमेरिका के द्विपक्षीय सहयोग बने रहने जरूरी हैं। एफबीआई के डायरेक्टर ने इस दिशा में पहल की है और सीबीआई के डायरेक्टर के साथ नारकोटिक ड्रग्स की तस्करी से जुड़े अपराधों, साइबर अपराधों, साइबर आतंकवाद, साइबर अपराधों में कृप्टोकरेंसी के इस्तेमाल, रैंसमवेयर ( साइबर फिरौती) चेतावनियों , गंभीर आर्थिक अपराधों, और अन्य संगठित अपराधों से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की है और द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ाने पर जोर दिया है। क्वांटिको (Quantico) स्थित फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टीगेशन एकेडमी और भारत के गाजियाबाद स्थित सीबीआई एकेडमी के बीच सर्वोत्तम अनुभवों को साझा करने पर भी सहमति बनी। एफबीआई के निदेशक और भारत के सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टीगेशन के निदेशक ने भगोड़े अपराधियों के प्रत्यर्पण और उनके खिलाफ़ कानूनी कार्यवाही पर विशेष चर्चा की है।
दरअसल जिस तरीके से मोदी सरकार ने खालिस्तान आंदोलन के खिलाफ़ सख़्त रवैया अपनाया है और इस मामले में एनआईए की स्पेशल सेवाएं ली गई हैं उससे अमेरिका, कनाडा सहित कई देशों को यह संदेश मिल गया है कि भारत अब खालिस्तान मुद्दे पर अपनी प्रादेशिक अखंडता और संप्रभुता से किसी को खिलवाड़ नहीं करने देगा, तब से विदेशी धरती पर हो रहे खालिस्तानी षड्यंत्रों के खिलाफ कार्यवाही का दबाव भी देशों पर पड़ने लगा है।
इसी साल भारत सरकार ने एनआईए की टीम लंदन भेजी थी जिसने ब्रिटिश उच्चायोग के बाहर खालिस्तानी प्रदर्शन से जुड़े मामले की जांच पड़ताल की थी। अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया जैसे देश चूंकि भारत के स्ट्रेटेजिक और खास इकनॉमिक पार्टनर रहे हैं इसलिए अब वे भारत सरकार के खालिस्तानी मुद्दे पर लिए कठोर स्टैंड को अमेरिकी या कनाडाई वोट बैंक के आधार पर सिरे से खारिज कर पाने की स्थिति में नहीं है, उन्हें जवाब देना पड़ रहा है। भारत ऐसे अपराधियों के प्रत्यर्पण ( Extradition) के लिए भी लगातार दबाव बना रहा है। कुल मिलाकर निष्कर्ष ये है कि यदि मोदी सरकार खालिस्तानी षड्यंत्रों, प्रदर्शनकारियों , अलगाववादी आंदोलनों और नेताओं के खिलाफ़ कठोर वैधानिक कार्यवाही करती रही और अपना पॉलिटिकल विल पॉवर इस मुद्दे पर मजबूत बनाए रखती है तो खालिस्तान आंदोलन अलगाववादियों और भारत विरोधी ताकतों के लिए एक सपना बनकर रह जायेगा।