नई दिल्ली : जब बच्चा छोटा होता है और खुद से नहीं खा पाता है, तब उसे दूध पिलाने के लिए हम अक्सर फिंगर फीडिंग करते हैं। आमतौर पर बेबी को पोषण देने के लिए ब्रेस्टफीडिंग सबसे अच्छा स्रोत है लेकिन कई बार मां या बच्चा ब्रेस्टफीडिंग से अछूते रह जाते हैं। ऐसे मामलों में बच्चे को पोषण देने के लिए अन्य तरीकों को देखा जाता है।
जब बच्चा खुद से दूध नहीं पी पाता है, तो उसे फिंगर फीडिंग की मदद से दूध दिया जाता है। यहां हम ऐसी कुछ स्थितियों के बारे में बता रहे हैं, जिनमें बच्चे को फिंगर फीडिंग की जरूरत पड़ती है। बच्चा ब्रेस्ट से दूध नहीं पी पा रहा है, मां बच्चे को ब्रेस्टफीडिंग नहीं करवा सकती है, बच्चे को ब्रेस्ट से दूध खींचने में दिक्कत हो रही है तो बेबी को फिंगर फीडिंग से दूध दिया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बेबी को खिलाने का यह तरीका कितना सुरक्षित है और क्या इसके कुछ नुकसान भी हो सकते हैं?
फिंगर फीडिंग के फायदे
फिंगर फीडिंग निप्पल को खींचने के लिए बच्चे को प्रेरित करती है। हो सकता है कि इसकी मदद से बच्चा बाद में निप्पल या ब्रेस्ट से दूध पी पाए। फीडिंग के इस तरीके से बच्चे के सकिंग रिफ्लेक्स अच्छे होते हैं। कुछ प्रीटर्म बच्चों के ब्रेस्टफीडिंग के लिए सकिंग रिफ्लेक्स अच्छे नहीं होते हैं, इन्हें फिंगर फीडिंग से मदद मिलती है। इससे मां और बच्चे को स्किन-टू-स्किन कॉन्टैक्ट बनाने में मदद मिलती है।
फिंगर फीडिंग कैसे करवाते हैं
फिंगर फीडिंग करवाने से पहले आप डॉक्टर या सर्टिफाइड लैक्टेशन कंसल्टेंट से बात करें। इसके लिए एडहेसिव मेडिकल टेप, इंफैंट फीटिंग सिरिंज, इंफैंट फीडिंग ट्यूब और फीडिंग ट्यूब कनेक्टर की जरूरत पड़ेगी। डॉक्टर आपको बताएंगे कि आपको बेबी को किस तरह फिंगर फीडिंग करवानी है।
फिंगर फीडिंग के कुछ नुकसान भी हैं
फिंगर फीडिंग में एक पतली-सी ट्यूब का इस्तेमाल किया जाता है। बच्चे को हर बार फीड करने के बाद इस ट्यूब को साफ करना थोड़ा मुश्किल होता है। वहीं अगर आप ट्यूब को साफ ना करें तो इसमें बैक्टीरिया पनप सकता है जिससे बेबी को इंफेक्शन हो सकता है।
अगर बच्चा ब्रेस्टफीडिंग नहीं कर पा रहा है तो उसे इस तरीके से दूध पिलाया जाता है। जब बच्चा दूध पीना सीख जाए या मां ब्रेस्टफीडिंग करवा सके, तब आप बेबी की फिंगर फीडिंग छुड़वा सकते हैं।