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FIFA U-17 में टीम इंडिया को जीत के लिए अपनाना होगा ये मंत्र: सुखविंदर

सुखविंदर सिंह भारत के सहायक कोच और जेसीटी के फुटबॉल कोच के रूप में पूर्वोत्तर के भाईचुंग भूटिया, रैनेडी सिंह के साथ दिल्ली के सुनील छेत्री जैसे बिना तराशे हीरों को नायाब फुटबॉलरों के रूप में तराशने के लिए जाने जाते हैं।
68 वर्षीय सुखविंदर सिंह ने होशियारपुर से फोन पर बात करते हुए ‘अमर उजाला’ से कहा, ‘भारतीय टीम पर फीफा अंडर-17 विश्व कप फुटबॉल टूर्नामेंट में अपने घर में खेलने का कोई दबाव नहीं होना चाहिए। घर में अपने फैंस के सामने खेलने को भारत की अंडर-17 टीम को एक लाभ के रूप में देखना चाहिए।

भारतीय खिलाड़ियों को अपने जेहन में हार की बात कतई नहीं लानी चाहिए और जीत और बस जीत की बाबत सोचना चाहिए। दबाव की बाबत न सोचकर भारत को घर में खेलने का पूरा लुत्फ उठाना चाहिए। यह हमारी खुशकिस्मती है कि हमारे पास हमेशा अंडर-17 स्तर पर बेहतरीन खिलाड़ी रहे हैं। यह ठीक है कि इस फीफा अंडर-17 विश्व कप में शिरकत करने वाली हमारे ग्रुप की नहीं बल्कि हर इसमें शिरकत करने वाली हर टीम  बहुत मजबूत है।

भारत को इसमें बेहतरीन करने की सोच उतरना चाहिए। भारत को सकारात्मक सोच के साथ उतरना चाहिए और एक बार यदि टीम अंतिम 16 में पहुंच गई तो फिर कुछ भी मुमकिन है। हमारे लड़कों को मैदान पर उतर कर फुटबॉल का पूरा लुत्फ उठाना चाहिए।’

मुकाबला वाकई मुश्किल है, इसमें कोई दो राय नहीं-सुखविंदर

उन्होंने कहा, ‘भारत के लिए मुकाबला वाकई मुश्किल है इसमें कोई दो राय नहीं है। इस अंडर-17 विश्व कप में शिरकत करने वाली बाकी टीमों के बीच फर्क महज-19-20 का ही है। भारत के लड़कों ने अपने नए पुर्तगाली उस्ताद लुइस मैटोज के मार्गदर्शन में जो तैयारी की है उससे मुझे हमारी टीम इस बड़े मंच के लिए मुझे तैयार लगती है।

हमारी टीम ने जो फ्रेंडली मैच खेले हैं उनमें कितनी प्रतिद्वंद्विता थी उनकी बाबत मैं तो क्या कोई भी टिप्पणी नहीं कर सकता क्योंकि किसी ने उन्हें खुद खेलते नहीं देखा है। मेरी भारत के फुटबॉल के सबसे मंच पर शिरकत करने जा रहे नौजवान खिलाड़ियों को बस यही सलाह है कि वे अपने फुटबॉल उस्ताद की नीति को मैदान में अमल में लाकर अपना सर्वश्रेष्ठ खेल खेलें। हमारी भारतीय टीम में सबसे ज्यादा आठ खिलाड़ी मणिपुर के और कुल दस खिलाड़ी पूर्वोत्तर से हैं।

यह दर्शाता है कि भारत में फुटबॉल के लिए अब वह जुनून है जो कभी पंजाब में हुआ करता था। पूर्वोत्तर के खिलाड़ी दरअसल बहुत उंचाई वाली इलाके पर अपने फुटबॉल कौशल को मांझते हैं और इससे वे शारीरिक रूप से ज्यादा मजबूत होते हैं। पंजाब में फुटबॉल की चमक फीकी पड़ने का एक बड़ा कारण जेसीटी की टीम का बंद होना है। एक जमाना था जब मैंने भाईचुंग भूटिया और रैनेडी सिंह जैसे पूर्वोत्तर के और केरल के आईएम विजयन जैसे खिलाड़ियों को जेसीटी में शामिल किया था। बाद में सुनील छेत्री भी जेसीटी के लिए खेले। मैं जाने माने फुटबॉल कोच जोसेफ गेली के भारत की अंडर-23 टीम का चीफ कोच रहते उनके साथ सहायक कोच रहा।’

सुखविंदर बताते हैं, ‘हमारे समय में क्रिकेट के बाद फुटबॉल दूसरा सबसे लोकप्रिय खेल था। तब हमारी भारतीय फुटबॉल टीम और जेसीटी की टीम के मैच को देखने के लिए स्टेडियम फुटबॉल फैंस से भरा रहता था। क्रिकेट में रणजी मैच में सौ-दो दर्शक बमुश्किल जुटते थे। दरअसल डीसीएम टूर्नामेंट के बंद होने और डूरंड कप सरीखे टूर्नामेंट के अपनी चमक खोने से भारतीय फुटबॉल ने अपनी पहचान खोई है।’

 

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