पांचवां दिन देवी स्कंदमाता को समर्पित, जानें पूजाविधि और मंत्र
नई दिल्ली : शारदीय नवरात्रि का 9 दिवसीय शुभ त्योहार 15 अक्टूबर से शुरू हो चुका है. यह अश्विन माह के हिंदू महीने में मनाया जाने वाला 9 दिवसीय हिंदू त्योहार है। नवरात्रि के पांचवें दिन मां दुर्गाजी के पांचवें स्वरूप मां स्कंदमाता की आराधना की जाती है। भगवान स्कंद (कार्तिकेय) की माता होने के कारण देवी के इस पांचवें स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। नवरात्रि पूजन के पांचवे दिन का शास्त्रों में पुष्कल महत्व बताया गया है। साधक का मन समस्त लौकिक, सांसारिक, मायिक बंधनों से विमुक्त होकर पद्मासना मां स्कंद माता के स्वरूप में पूरी तरह तल्लीन होता है।
शास्त्रानुसार सिंह पर सवार स्कन्दमातृस्वरूपणी देवी की चार भुजाएं हैं, जिसमें देवी अपनी ऊपर वाली दांयी भुजा में बाल कार्तिकेय को गोद में उठाए उठाए हुए हैं और नीचे वाली दांयी भुजा में कमल पुष्प लिए हुए हैं ऊपर वाली बाईं भुजा से इन्होने जगत तारण वरद मुद्रा बना रखी है व नीचे वाली बाईं भुजा में कमल पुष्प है। इनका वर्ण पूर्णतः शुभ्र है और ये कमल के आसान पर विराजमान रहती हैं इसलिए इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है।
सच्चे मन से पूजा करने पर स्कंदमाता सभी भक्तों की इच्छाओं को पूरी करती हैं और कष्टों को दूर करती हैं। संतान प्राप्ति के लिए माता की आराधना करना उत्तम माना गया है। माता रानी की पूजा के समय लाल कपड़े में सुहाग का सामान, लाल फूल, पीले चावल और एक नारियल को बांधकर माता की गोद भर दें। ऐसा करने से जल्द ही घर में किलकारियां गूंजने लगती हैं। स्कंदमाता मोक्ष का मार्ग दिखाती हैं और इनकी पूजा करने से ज्ञान की भी प्राप्ति होती है। माता का यह स्वरूप ममता की मूर्ति, प्रेम और वात्सल्य का साक्षात प्रतीक हैं।
शारदीय नवरात्रि की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को प्रात: काल स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें, इसके बाद मां का पूजन आरंभ करें एवं मां की प्रतिमा को गंगाजल से शुद्ध करें। मां के श्रृंगार के लिए शुभ रंगों का इस्तेमाल करना श्रेष्ठ माना गया है। स्कंदमाता और भगवान कार्तिकेय की पूजा विनम्रता के साथ करनी चाहिए। पूजा में कुमकुम, अक्षत, पुष्प, फल आदि से पूजा करें। चंदन लगाएं ,माता के सामने घी का दीपक जलाएं। इसके बाद फूल चढ़ाएं व भोग लगाएं। मां की आरती उतारें तथा इस मंत्र का जाप करें।
स्कंदमाता का मंत्र-
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।
या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
भगवती दुर्गा को केले का भोग लगाना चाहिए और यह प्रसाद ब्राह्मण को दे देना चाहिए ऐसा करने से मनुष्य की बुद्धि का विकास होता है। आरती के बाद 5 कन्याओं को केले का प्रसाद बांटें, मान्यता है इससे देवी स्कंदमाता बहुत प्रसन्न होती है और संतान पर आने वाले सभी संकटों का नाश करती है।
नवरात्रि का 5वां दिन देवी दुर्गा के पांचवें स्वरूप देवी स्कंदमाता के नाम पर मनाया जाता है. संस्कृत में ‘स्कंद’ शब्द का अर्थ निष्पक्ष होता है। ‘स्कंद’ शब्द भगवान कार्तिकेय से भी जुड़ा है और ‘माता’ का अर्थ है माँ. इसलिए, उन्हें भगवान कार्तिकेय या स्कंद की माता के रूप में जाना जाता है. एक माँ और अपने बच्चों की रक्षक होने के नाते, देवी स्कंदमाता दयालु और देखभाल करने वाली देवी हैं। मां दुर्गा के इस अवतार की पूजा करें और सफल, समृद्ध और संतुष्ट जीवन जिएं।
नवरात्रि के 5वें दिन का रंग पीला है, जो खुशी और आशीर्वाद का प्रतिनिधित्व करता है. मां स्कंदमाता को कच्चे केले की बर्फी, केले के चिप्स (सेंधा नमक के साथ), केले की लस्सी और केले की सब्जी का भोग लगाना चाहिए।
कैसे करें देवी स्कंदमाता की पूजा?
- नवरात्रि के चौथे दिन सर्वप्रथम जल्दी उठकर स्नानादि करने के पश्चात पूजा स्थान पर गंगाजल छिड़कें.
- फिर अपने पूजा-स्थल पर देवी स्कंदमाता की तस्वीर या मूर्ति रखें.
- इसके बाद देवी की मूर्ति पर सिंदूर और कुमकुम लगाएं.
- पवित्रता और भक्ति के प्रतीक के रूप में देवी को पीले पुष्प चढ़ाएं.
- इसके बाद घी का दीपक जलाकर मां स्कंदमाता की मूर्ति के सामने रखें.
- देवी को प्रसाद के रूप में केला, कच्चे केले की बर्फी, केले के चिप्स (सेंधा नमक के साथ), केले की लस्सी और केले की सब्जी अर्पित करें.
- देवी स्कंदमाता को समर्पित मंत्रों का जाप करें.सबसे आम मंत्रों में से एक है “ऊँ देवी स्कंदमातायै नमः.”
- आखिर में देवी स्कंदमाता और मां दुर्गा की आरती करें.
- आरती के बाद प्रसाद अपने परिवार के सदस्यों में बांट दें.