फाइलेरिया सपोर्ट ग्रुप के सदस्यों को किया गया प्रशिक्षित
स्वास्थ्य विभाग के तत्वावधान में सीफार के सहयोग से आयोजन
रुग्णता प्रबन्धन और साफ़.सफाई के बारे में विस्तार से दी जानकारी
लखनऊ : स्वास्थ्य विभाग के तत्वावधान में सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च (सीफार) संस्था ने बुधवार को बक्शी का तालाब ब्लॉक के फाइलेरिया ग्रसित रोगियों के साईं बाबा सपोर्ट ग्रुप के सदस्यों को प्रशिक्षित किया। सपोर्ट ग्रुप के सदस्यों का रुग्णता प्रबंधन एवं दिव्यांगता (एमएमडीपी) पर प्रशिक्षण कार्यक्रम बक्शी का तालाब ब्लॉक के इंदौराबाग क्षेत्र में आयोजित किया गया।जिला मलेरिया अधिकारी डा. रितु श्रीवास्तव का कहना है कि फाइलेरिया से बचाव ही इसका एकमात्र इलाज है क्योंकि एक बार बीमारी हो जाने के बाद यह ठीक नहीं होती है, इसलिए सामूहिक दवा सेवन (एमडीए) कार्यक्रम के दौरान फाइलेरिया की दवा का सेवन साल में एक बार पांच साल लगातार अवश्य करें तभी फाइलेरिया से बचा जा सकता है। फाइलेरिया से ग्रसित व्यक्ति को फाइलेरिया प्रभावित अंगों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। फाइलेरिया प्रभावित अंगों की नियमित रूप से सफाई करनी चाहिएं। उस पर एंटीसेप्टिक क्रीम लगानी चाहिए। यदि पैर और हाथ प्रभावित हैं तो व्यायाम करना चाहिए।
साईं बाबा सपोर्ट ग्रुप की सदस्य सीमा सिंह और शकुंतला देवी ने कहा कि फाइलेरिया के कारण जिन मुश्किलों का सामना हम कर रहे हैं, अन्य किसी को इस तरह की समस्या का सामना न करना पड़े। इसलिए हम सपोर्ट ग्रुप से जुड़े हैं ताकि इस ग्रुप के माध्यम से हम गाँव के अन्य लोगों को फाइलेरिया से बचाव की दवा खाने के लिए प्रेरित कर सकें। सपोर्ट ग्रुप से जुड़ने के बाद ही हमें पता चला कि यह क्यों होता है और मच्छरों को पनपने से रोककर हम इस बीमारी से बच सकते हैं। सीफार से डा. एस.के. पांडे ने फाइलेरिया ग्रसित मरीजों में रुग्णता प्रबंधन (एमएमडीपी) का प्रदर्शन करके दिखाया। इसके साथ ही उन्होंने कुछ व्यायाम करके भी दिखाए। इस मौके पर आशा कार्यकर्ता राजेश्वरी देवी, सीफार की वरिष्ठ परियोजना प्रबंधक शुभ्रा त्रिवेदी, जिला समन्वयक सर्वेश पाण्डेय, ब्लॉक समन्वयक अखिलेश प्रजापति तथा सपोर्ट ग्रुप के 15 सदस्य उपस्थित रहे।
क्या है फाइलेरिया
फाइलेरिया एक मच्छरजनित बीमारी है और इसे हाथी पाँव के नाम से भी जाना जाता है। इसके संक्रमण के कारण लसिकातंत्र (लिम्फ नोड) को नुकसान पहुंचता है जिससे शरीर में सूजन आ जाती है। इससे व्यक्ति की जान तो नहीं जाती है लेकिन यह व्यक्ति को आजीवन अपंग बना देती है।