अद्धयात्मस्तम्भ

मानवीय चिंतन को भूल कर खुद का अत्यधिक चिंतन करना

विशाल

आज हम अगर समग्र मानव जाति का चिंतन करें,तो पाते हैं कि मानव अपने वर्चस्व और प्रभाव की लड़ाई में सब कुछ भूल कर केवल अपने हित का चिंतन करता है। अपने हित के लिए वह कुछ भी करने को तैयार हैं एवं अपने हित की लड़ाई में वह दुनिया को किन संकटो में डाल सकता है,उसको किसी बात की चिंता भी नहीं है। दुनिया के बड़े देशों द्वारा अपने हित के लिए छोटे देशों को परेशान करना तथा उनकी प्राकृतिक सम्पदा पर अपना कब्जा करना आदि इस बात का प्रमाण है कि वह मानवीय चिंतन को भूल कर खुद का अत्यधिक चिंतन कर रहा है ।अपने स्वार्थ के लिए दूसरों को कष्ट देना मानो मानव का एक चलन सा बन गया है । यह समस्या विश्व स्तर पर देखने को मिलती है ।अभी कुछ दिन पहले हमने आर्मीनिया और अजरबैजान के युद्ध को देखा जो इस व्यक्तव्य की प्रतिपुष्टि करता है ।चीन अमेरिका रूस इत्यादि देशों का प्राकृतिक और मानव चिंतन क्या है,यह भी किसी से छुपा नहीं है ।

ऐसी ही कुछ ख़ामियाँ भारत के जनमानस में भी आयी हैं ।भारत में भी आए दिनों ऐसी घटनाएं देखने को मिलती हैं, जिन्हें देखने से प्रतीत होता है कि,कहीं न कहीं भारत में भी,भारत के मौलिक चिंतन का ह्रास हुआ है,आए दिनों जातीय संघर्ष के नाम पर समाज में आग लगाना,समाज को बांटने का प्रयास करना तथा एक जाति द्वारा दूसरे के प्रति घृणा पैदा करना एवं राजनीतिक स्वार्थ में सामाजिक स्वार्थ की हत्या करना तथा महिलाओं को भोग की वस्तु समझना एवं उनके प्रति गलत भाव रखना जैसी घटनाएं कहीं न कहीं दुखदाई हैं। समाज को बांटने वाली घटनाएं जैसे लिंगायतो को हिंदू धर्म से अलग करने का प्रयास,झारखंड में सरना समाज के लोगों को अलग करने का प्रयास एवं उत्तर प्रदेश के हाथरस में जातीय संघर्ष पैदा करने का प्रयास कुछ गलत लोगों के द्वारा किया जाता है।

भारतीय समाज के सामने जो चुनौतियां हैं उसके लिए पूरे भारतीय जनमानस को खड़ा होना पड़ेगा और अपने भूतकाल को देखते हुए अपना वर्तमान का चिंतन करना पड़ेगा । इतिहास मनुष्य की तीसरी आंख होती है । जिनमे दो आंख हमारे सामने हैं तो इतिहास रूपी एक आंख हमारे पीछे होती है । एक धनुर्धारी जब अपने लक्ष्य को साधता है,तो वह अपने धनुष मे लगे तीर को कान तक खीचता है फिर अपने लक्ष्य को साधता है ।कान का पर्यायवाची है श्रुति और श्रुति का अर्थ होता है वेद जब-जब समाज को अपना लक्ष्य साधना होगा तब-तब श्रुतियों की सहायता लेनी होगी ।श्रुतिया ही भारत को सही दिशा प्रदान करती हैं। भारत को अपने मूल चिंतन का ध्यान करना चाहिए क्योंकि भारत के मूल चिंतन में ही समाज के सभी जन का हित है । भारत का मूल चिंतन अध्यात्म है, अध्यात्म में ही भारत की खूबसूरती है।

जब भारत में सबकुछ नष्ट हो जाएगा और अध्यात्म बचा रहेगा तो सब कुछ दोबारा से प्राप्त किया जा सकता है ।लेकिन अगर अध्यात्म नष्ट हो गया तो कुछ नहीं बचेगा । यह बात याद रखने लायक है कि,बहुत बातें आएंगी और चली जाएंगी अध्यात्म हमेशा रहेगा । अध्यात्म ने इस देश को एक दृष्टि दी है यदि अध्यात्म की परिभाषा एक वाक्य में दें तो इसका अर्थ यह कि ईश्वर सभी जगह है एवं ईश्वर की व्याप्ति को ध्यान में रखो तथा ईश्वर की बनाई इस दुनिया को ध्यान में रखो ।सभी प्राणियों में भगवान का निवास है ।

अध्यात्म ने इस देश के चिंतन को एक मौलिक आयाम दिया है , भगवान सब में है तथा हम सब एक हैं। सभी प्राणियों को अपने जैसा समझना, एकता का भाव सभी में देखना ,सबके साथ रहना ।यह चिंतन अध्यात्म ने दिया ,भारत के इस मौलिक चिंतन को ध्यान में रखना तथा अपने जीवन के सभी कार्य को इसी चिंतन का आधार मानकर करना ही धर्म है । सभी जाति-धर्म के लोगों के साथ इसी चिंता के आधार पर व्यवहार करना भारत का मूल चिंतन है सभी ईश्वर के जन है , सभी ईश्वर के अंश हैं तो फिर यह जातीय संघर्ष क्यों ? छोटा बड़ा क्यों? विश्व की सभी सज्जन शक्तियों को एक होना पड़ेगा ।

भारत के मौलिक चिंतन के साथ अगर सज्जन लोग एक होकर नही रहते हैं,तो दुर्जन लोगों को इसका फायदा मिलेगा । सज्जन लोगों को संगठित होना पड़ेगा । भारत के मौलिक चिंतन में संगठन के महत्व को देखते हुए ऋगवेद के अंतिम अध्याय के अंतिम सुक्त मे ऋषिओं ने शोध कर के अंतिम मंत्र दिया है .. ॐ सं गच्छत्वम् सं वध्दवम् सं वो मनासि जानताम् देवा भागम् यथा पूर्वे संजानाना उपासते जब आप इसकी व्याख्या करेंगे तो पता चलेगा कि इसका सुंदर दर्शन एवं चिंतन दुनिया में कहीं नहीं मिलेगा ।

मानवीय चिंतन को भूल कर खुद का अत्यधिक चिंतन करना

इस मंत्र में वैदिक ऋषि कहते हैं कि,मिलकर चलो मिलकर बोलो, तथामिलकर बातें करो ।दूसरों के मन को जानो ,दूसरों के मन को समझो ,दूसरे के मन का सम्मान करो,इस तरह इस चिंतन से समाज के सज्जन लोग एक रहेंगे तथा एक साथ समाज का चिंतन करेंगे तो विश्व को एक सुंदर दिशा मिलेगी ।इसी से संबंधित एक उदाहरण इतिहास में और मिलता है एक बार मगध का राजा अपने पुरोहित को गौतबुद्ध के पास भेजता है और कहता है कि जाकर बुद्ध से पूछकर आओ कि हम बजीवो को क्यों नहीं हरा पा रहे हैं ? बजी एक छोटा सा गणराज्य था ।

पुरोहित बुद्ध से पूछता है तो बुद्ध अपने शिष्य आनंद से कुछ प्रश्न पूछते हैं कि आनंद बजी के लोग आज भी मिलकर रहते हैं ,आज भी सामूहिक निर्णय करते हैं ,एक दूसरे का सम्मान करते हैं ,महिलाओं का सम्मान करते हैं एवं बैठके शांतिपूर्वक सबकी सहमति से समाप्त होती है ? तो आनंद का उत्तर आता है जी गुरूजी बिल्कुल ऐसा ही होता है ,फिर बुद्ध पुरोहित से कहते हैं कि जाकर अपने राजा को बोल दो कि जब तक बाजिवो में यह गुण है तब तक आप उनको नहीं जीत पाओगे।

हमारे यहां बैठकर चिंतन करने की प्रथा है। जब सामूहिक बैठ कर चिंतन होगा तो बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान होता है वर्तमान में कुछ विशेष वर्ग के लोग अपनी मांग के लिए तुरंत हिंसात्मक आंदोलन करने लगते हैं ,जबकि सामूहिक बैठकर विचार किया जाए तो बड़ी से बड़ी समस्या हल किया जा सकता है। हमारे वेदों में इसके बहुत उदाहरण मिलते हैं । इसमें लोग एक साथ बैठकर चिंतन कर समाज की बड़ी से बड़ी समस्या का हल करते हैं ।महाभारत में नैमिषारण्य नामक स्थान का वर्णन मिलता है जहां पर लाखों की संख्या में साधु आते हैं और सालों साल,समाज का चिंतन करते हैं ।

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शौनक ऋषि का आश्रम यहीं पर था जिसमें दस हज़ार छात्र शिक्षा ग्रहण करते थे ।शौनक ऋषि उस समय के सबसे बड़े कुलपति थे अगर हम बौद्ध मत को देखे तो उसमे संगति की प्राथमिकता है एक-एक संगति में हजारों की संख्या में साधू एक साथ मिलकर चिंतन करते थे । भारत का मौलिक चिंतन यह है कि यहां अपने लिए कोई कुछ नहीं मांगता ।प्राचीन वेद मंत्रों में कहीं नही मिलेगा कि किसी ने कुछ अपने लिए मांगा वरन सनातन अनुयायियों की सारी प्रार्थना सामूहिक है ।”ॐ सह नाववतु ।

सह नौ भुनक्तु “हमारी साथ साथ रक्षा करें हमारा साथ साथ पालन करें “सह वीर्यं करवावहै ” हम दोनों को साथ साथ पराक्रमी बनाओ इसका उदाहरण है ।अगर भारत को अपने वर्तमान समस्या या भविष्य में आने वाली समस्याओं का मूल समाधान करना है तो भारत को अपने मौलिक चिंतन को साथ में लेकर चलना होगा क्योंकि विश्व की भी सभी समस्याओं का समाधान भारत के इस मौलिक चिंतन में छुपा है ।अमेरिका के एक सर्व में 28 लाख अमेरिकी वासियों में से किसी ने भी अपना धर्म नहीं लिखवाया क्योंकि वह एक सुंदर चिंतन कि खोज में है और मुझे पूर्ण विश्वास है कि भारत के मौलिक चिंतन के पास आकर उनकी यह खोज समाप्त हो जाएगी । अब यह भारत के लोगों का दायित्व बनता है कि इस चिंतन को पहले अपने आप में उतारे फिर विश्व का मार्ग प्रशस्त करे क्योंकि विश्व भारत की तरफ आशा भरी नजरें लगाए बैठा है…..!!

(यह लेखक के अपने विचार है।)

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