अमेरिका, जापान से लेकर रूस और ताइवान तक, सब लगाएंगे भारत पर पैसा, सरकार ने ढूंढ लिया तरीका
नई दिल्ली: जहां एक ओर अमेरिका-यूरोप और चीन के बीच ट्रेड वॉर चल रहा है. वहीं दूसरी ओर भारत ने भी चीन के खिलाफ गोलबंदी शुरू कर दी है. पीएम नरेंद्र मोदी ने इंटरनेशनल लेवल पर अपनी एक ऐसी टीम तैयार कर ली है, जो ट्रेड और बिजनेस के मोर्चे पर चीन को सबक सिखाने के लिए तैयार है. भले ही चीन के साथ भारत का द्विपक्षीय कारोबार लगातार बढ़ रहा है. फिर भी चीन से आयात को कम करने की कोशिश भारत लगातार कर रहा है. चीन के खिलाफ इस गोलबंदी में अमेरिका, ब्रिटेन और जापान तो हैं ही, इस बार ताइवान, स्वीडन, साउथ कोरिया और जर्मनी को भी इस फेहरिस्त में शामिल किया गया है.
सरकारी अधिकारियों की ओर से तैयार की गई 12 देशों की लिस्ट को उठाकर देख लीजिये, इनमें कुछेक देश ही ऐसे होंगे जिनके चीन के स्ट्रैटिजिक रिलेशन काफी बेहतर होंगे. वर्ना दक्षिण कोरिया, जापान, अमेरिका, ब्रिटेन, ताइवान, जर्मनी और स्वीडन जैसे देशों के साथ चीन के अच्छे रिलेशन नहीं है. कुछ खाड़ी देश जैसे यूएई और साउदी अरब के अलावा रूस के साथ चीन के रिलेशन उतने अच्छे नहीं है तो खराब भी नहीं है. ऐसे में इसका मतलब क्या है? क्या भारत चीन को दुनिया के ट्रेडिंग टेबल से बाहर धकेल देना चाहता है?
क्या भारत को यकीन हो चला है कि जब तक ग्लोबल मार्केट में चीन का अस्तित्व बना रहेगा, तब तक भारत दुनिया के ट्रेडिंग टेबल का वो चेहरा नहीं बन सकता, जिसका ख्वाब पीएम नरेंद्र मोदी काफी दिनों से देख रहे हैं और बीते 9 सालों में देश दर देश का दौरा करते आ रहे हैं? सवाल काफी कठिन है, लेकिन जवाब भी इन्हीं सवालों के अक्स तले छिपा है. तो आइए परत दर परत उन पन्नों को खोलकर पीएम मोदी के इस मास्टर स्ट्रोक को समझने की कोशिश करते हैं, जो इन 12 देशों के सहारे खेलना चाहते हैं.
वास्तव में कॉमर्स एंड इंडस्ट्री मिनिस्ट्री ने बिजनेस और इंवेस्टमेंट को बढ़ावा देने के लिए एक डिटेल्ड प्लान तैयार किया है. इस प्लान के तहत 12 देशों की एक लिस्ट तैयार की गई है, जिनके साथ भारत प्रायोरिटी लेवल पर बिजनेस करेगा. इस लिस्ट को तैयार करने के लिए कॉमर्स डिपार्टमेंट, डिपॉर्टमेंट फोर प्रमोशन ऑफ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड, भारतीय दूतावास और इन्वेस्ट इंडिया के अधिकारियों ने काफी मेहनत और मशक्कत की है.
इस लिस्ट में अमेरिका, ब्राजील, कनाडा, यूएई, सऊदी अरब, ब्रिटेन, जर्मनी, स्वीडन, जापान, ताइवान, दक्षिण कोरिया और रूस को शामिल किया है. ताइवान से सेमीकंडक्टर और रूस से तेल, इस पूरे खेल को साधने और चीन को पूरी तरह से बाहर करने के लिए इस टीम को काफी सोच समझकर तैयार किया गया है. अलग-अलग विभागों के अधिकारियों ने इस टीम को बनाने के लिए करीब 20 देशों के साथ चल रहे एक्सपोर्ट इंपोर्ट और एक्सटरनल इंवेस्टमेंट ट्रेंड और स्ट्रैटिजिक इंगेजमेंट का डीप एनालिसस किया है. उसके बाद इन 12 देशों के नाम निकलकर सामने आए.
इन 12 देशों के साथ ट्रेड स्ट्रैटिजिक प्लान भी तैयार हुआ है और संबंधों को और मजबूत करने के लिए कॉमर्स और इंडस्ट्री मिनिस्ट्री इन 12 देशों में रोड शो आयोजित करने की प्लानिंग की है, जिसमें इंवेस्टमेंट और ट्रेड प्रमोशन प्रोग्राम भी शामिल होंगे. दूसरी ओर मिनिस्ट्री देश की इंडस्ट्रीज और एक्सपोर्ट को कहा है कि भारत में वर्ल्ड लेवल के ट्रेड फेयर्स का आयोजित करें और इन 12 देशों में होने वाले फेयर्स में भाग लेने के लिए भारत की हिस्सेदारी ज्यादा से ज्यादा हो. पिछले महीने कॉमर्स सेकेट्री सुनील बर्थवाल ने जानकारी देते हुए बताया था कि मंत्रालय एक्सपोर्ट को बढ़ावा देने के लिए ट्रेड पॉलिसी पर काम कर रहा है. जिसमें डिपार्टमेंट ऑफ कॉमर्स, डिपार्टमेंट फोर प्रमोशन ऑफ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड और विदेश में भारतीय दूतावास का पूरा फोकस इन 12 देशों में रहेगा.
अगर बात भारत और चीन ट्रेड की बात करें तो बीते वित्त वर्ष में चीन भारत के लिए सबसे बड़ा एक्सपोर्टर रहा. चीन की ओर से भारत में भेजी गई शिपमेंट में 4.16 फीसदी की बढ़ोतरी देखने को मिली थी जो कुल 98.51 बिलियन डॉलर हो गया. कॉमर्स मिनिस्ट्री की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार इंपोर्ट में इजाफा और एक्सपोर्ट में गिरावट देखने को मिली है. जिसकी वजह से देश का ट्रेड डेफिसिट में जबरदस्त इजाफा देखने को मिला. चीन को भारत का एक्सपोर्ट 28 फीसदी घटकर 15.3 अरब डॉलर रह गया. वित्त वर्ष 2023 में व्यापार घाटा बढ़कर 77.6 अरब डॉलर हो गया, जो 2022 में 72.9 अरब डॉलर था.
दूसरी ओर भारत का मई के महीने में ओवरऑल एक्सपोर्ट भी काफी गिरा है. मई के महीने में भारत का एक्सपोर्ट 10 फीसदी से ज्यादा गिरकर 34.98 बिलियन डॉलर पर आ गया था. वैसे इंपोर्ट में भी 6 फीसदी से ज्यादा की गिरावट देखने को मिली थी जोकि 57 बियियन डॉलर पर आ गया था, इसका मतलब है कि ट्रेड डेफिसिट 22 बिलियन डॉलर के साथ 5 महीने के हाई पर चला गया था.
अब पीएम नरेंद्र मोदी के सामने कुछ सवाल खड़े हैं. क्या पीएम मोदी का ये मास्टर स्ट्रोक कामयाब हो पाएगा? क्या चीन को अलग कर भारत का काम चल पाएगा, तब जब भारत का इंपोर्ट चीन से लगातार बढ़ रहा है? भारत या यूं कहें पीएम मोदी के इस कदम से चीन किस तरह से रिएक्ट करेगा? क्योंकि अमेरिका और यूरोप के बाद भारत ने जो चीन खिलाफ मोर्चा खोला है, उसका जवाब चीन भी जल्द दे सकता है और उसके लिए भारत को पहले से ही तैयार रहना होगा.