देहरादून (गौरव ममगाई)। अजयपाल, पंवार वंश का वह प्रतापी शासक जिसने उत्तराखंड को नई भौगोलिक पहचान दिलायी। 52 गढ़ों को जीतकर गढ़वाल नाम की उत्पत्ति हुई, जो अजयपाल के शौर्य एवं पराक्रम की आज भी गाथा बयां करता है। यही वजह है कि इतिहासकारों ने अजयपाल को गढ़वाल का अशोक की संज्ञान दी है। आइए आपको बताते हैं इस महान शासक के बारे में…
उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में शासन करने वाले पंवार राजवंश के 37वें शासक अजयपाल थे। अजयपाल ने जब पंवार वंश की बागडोर संभाली, तब उनके पास 3-4 गढ़ थे। वर्ष 1515 में अजयपाल ने गढ़वाल के सभी 52 गढ़ों को एक-एक करके जीत लिया और इन गढ़ क्षेत्रों का विलय करके इसका नाम गढ़वाल रखा। तब से आज तक उत्तराखंड का 7 जिलों के एक बड़े हिस्से को गढ़वाल के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि युध्द में अजयपाल अपने दुश्मन पर बुरी तरह से टूट पड़ते थे। अन्य राजवंशों के शासक अजयपाल से खौफ खाते थे। कई इतिहासकारों ने अजयपाल का काल वर्ष 1490 से 1519 तक बताया है। हालांकि, अजयपाल के काल वर्ष को लेकर इतिहासकारों में मतभेद भी देखने को मिले हैं।
अजयपाल गोरखनाथ पंथ का अनुयायी था, जिसे गोरखनाथ पंथ के अनुयायी बृहथहरि व गोपीचंद के समान माना गया है। अजयपाल ने सरोला ब्राह्मणों की नियुक्ति की थी। अजयपाल ने धूली-पाथा (माप-तौल प्रथा) शुरू की। अजयपाल ने श्रीनगर में श्रीकालिका मठ की स्थापना की। इसे गढ़वाल का अशोक व कृष्ण भी कहा गया है। सावरी-ग्रंथ (तंत्रिका विद्या) में अजयपाल के लिए आदिनाथ शब्द का उल्लेख मिलता है।
अंतिम युध्द में स्वीकार की थी हारः अजपाल का अंतिम युध्द उप्पुगढ़ (रैका गढ) था, जिसमें उसे राजा कफ्फू चौहान ने हराया। इस युध्द में हार के बाद अजयपाल ने कफ्फू चौहान के लिए वाक्य कहा- “वीर तुम जीत गए, मैं हार गया।” युध्द परिणाम के बाद अजयपाल व कफ्फू चौहान के बीच हुआ यह संवाद उत्तराखंड के इतिहास में बेहद चर्चित है। अजयपाल ने न सिर्फ अपने वंश का 52 गढ़ों में विस्तार कियाए बल्कि पूरे गढ़वाल में सैन्य एवं राजस्व सुधार की दिशा में ऐतिहासिक कार्य भी किये। इसलिए इतिहासकारों ने अजयपाल को गढ़वाल का अशोक भी कहा है तो साथ ही गढ़वाल का कृष्ण की संज्ञा भी दी।