देहरादून (गौरव ममगाईं)। हिमालयी राज्य उत्तराखंड में एक बार फिर ‘सकल पर्यावरण उत्पाद’ यानी ग्रोस इन्वायरमेंट प्रोडक्ट (जीईपी) का मुद्दा चर्चाओं में आ गया है। पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उत्तराखंड में जीईपी को लागू करने का फैसला लिया था, उसके बाद अब देश के जाने माने पर्यावरणविद् पद्मभूषण व पद्मश्री पुरस्कार प्राप्त डॉ. अनिल प्रकाश जोशी ने एक बार फिर जीईपी को लागू करने की मांग उठाई है। हैस्को के संस्थापक डॉ. अनिल प्रकाश जोशी ने उत्तराखंड में सकल पर्यावरण उत्पाद को लागू करने की जरूरत बताई है। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि जीईपी को उत्तराखंड में पूरी तरह से लागू किया जाए।
क्या है जीईपी ?
जीईपी की अवधारणा जीडीपी की अवधारणा से प्रेरित है। जीडीपी का अर्थ भौगोलिक सीमा के भीतर होने वाले कुल उत्पादन का मौद्रिक मूल्य होता है, इसी तरह जीईपी का अर्थ किसी राज्य की भौगोलिक सीमा के भीतर पर्यावरणीय उत्पादों के मूल्य की गणना करना है। इसमें प्रकृति से जुड़े कई घटकों को शामिल किया जाता है, जैसे-वन, मिट्टी, जल, वायु व अन्य। हर राज्य अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप प्राकृतिक घटकों के संरक्षण पर जोर देते हैं।
उत्तराखंड में क्यों जरूरी है जीईपी ?
दरअसल, उत्तराखंड का 86 प्रतिशत भू-भाग पर्वतीय है। यहां बड़े ग्लेशियर हैं, जिनके कारण 12 मासी नदियां बहती हैं, जो कई राज्यों को सिंचित करती हैं। वन संपदा भी शुध्द वायु, खाद्य एवं आर्थिकी का जरिया बनते हैं। इन प्राकृतिक धऱोहरों का पारिस्थितिकी तंत्र को बनाये रखने में विशेष योगदान रहता है। वहीं, डॉ. अनिल प्रकाश जोशी के अनुसार, आज जलवायु परिवर्तन विश्व की सबसे बड़ी चुनौती के रूप में सामने आया है। जलवायु परिवर्तन का प्रकृति पर बुरा असर पड़ रहा है, विशेषकर हिमालयी राज्यों पर। इसले पारिस्थितिकी तंत्र पर भी बुरा असर पड़ने लगा है। ऐसे में जीईपी उत्तराखंड जैसी हिमालयी राज्यों के लिए बहुत जरूरी है। यह राज्य की प्रकृति के संरक्षण में मददगार साबित होगी।
बता दें कि 2021 में पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उत्तराखंड में सकल पर्यावरण उत्पाद (Gross Environment Product) को लागू करने का फैसला लिया था। जीईपी को लागू करने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन गया था। उत्तराखंड में अपनाये गये जीईपी अवधारणा में चार घटक शामिल किये गये हैं। पहला-जल, दूसरा- वायु, तीसरा- वन, चौथा- मिट्टी। इसी जीईपी को अब लागू करने की मांग पर्यावरणविद् डॉ. अनिल प्रकाश जोशी ने उठाई है।