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Goa Nightclub Fire 2025: पहली नाइट ड्यूटी… और घर वापिस आई लाश! मृतक राहुल तांती की मौत दर्दनाक कहानी सुनकर रो देंगे आप!

नई दिल्ली: गोवा के एक जाने-माने नाइट क्लब में 7 दिसंबर 2025 को लगी भीषण आग से हुए हादसे में 25 लोगों ने अपनी जान गंवा दी। इस दुखद घटना में असम के राहुल तांती (32) की मौत ने सबको झकझोर दिया है। यह उस रात की उनकी पहली नाइट ड्यूटी थी।

एक महीने पहले ही बने थे पिता
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार असम के कछार जिले के रंगिरखारी गांव के रहने वाले राहुल तांती एक महीने पहले ही अपने तीसरे बच्चे (बेटा) के जन्म के बाद परिवार के लिए ज्यादा कमाने की उम्मीद में गोवा आए थे। उनकी पहले से ही 9 और 6 साल की दो बेटियां हैं। राहुल सात भाई-बहनों में सबसे बड़े थे और उनका परिवार चाय बागान की जनजाति से आता है। उन्होंने केवल कक्षा 4 तक पढ़ाई की थी और बचपन से ही अपने पिता के साथ काम करना शुरू कर दिया था।

भाई देवा का बयान-

राहुल के भाई देवा ने बताया कि चाय बागान में सिर्फ ₹200 प्रतिदिन की मजदूरी मिलती है, जो परिवार पालने के लिए पर्याप्त नहीं थी। राहुल अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना चाहते थे ताकि उनका भविष्य बेहतर हो सके। 24 नवंबर को बेटे के जन्म के बाद राहुल ने फैसला किया कि उन्हें और ज्यादा कमाई करनी होगी, जिसके चलते उन्होंने गोवा का रुख किया।

नाइट क्लब में की पहली नाइट शिफ्ट
रिपोर्ट के मुताबिक जिस रात यह दर्दनाक हादसा हुआ, वह राहुल तांती की नाइट क्लब में पहली नाइट शिफ्ट थी। वह दिन में माली की नौकरी भी करते थे। उनके भाई देवा जो खुद करीब आठ साल गोवा में काम करने के बाद 2023 में गांव लौटे थे, ने बताया, “राहुल ने ज्यादा कमाने और जल्द वापस आने के लिए रात की नौकरी भी करने का फैसला किया था, लेकिन यह हादसा उनकी पहली ही ड्यूटी के दौरान हो गया।”

असम के अन्य पीड़ितों की कहानी
इस अग्निकांड में असम के कछार जिले के दो और युवा मनोजीत मल (24) और दिगंता पाटिर (22) की भी जान चली गई। इन सभी की कहानी असम में रोजगार की कमी और बेहतर सैलरी की तलाश को दर्शाती है:

मनोजीत मल भी एक गरीब चाय जनजाति परिवार से थे। पड़ोसी प्रदीप मल ने बताया कि परिवार बहुत गरीब है और चाय बागानों की खराब स्थिति के कारण युवाओं को काम नहीं मिलता। डेढ़ साल पहले बेहतर सैलरी की तलाश में मनोजीत ने असम छोड़ा था।
दिगंता पाटिर (22): धेमाजी जिले के मिसिंग आदिवासी परिवार से थे। चाचा बिस्वा पाटिर के अनुसार, पिता की मौत के बाद 18 साल की उम्र से ही दिगंता परिवार को सपोर्ट करने के लिए बाहर काम कर रहे थे। वह तमिलनाडु में कुक का काम करने के बाद अप्रैल में ज्यादा पैसे कमाने की उम्मीद में गोवा गए थे।
घर बनाने का सपना अधूरा: दिगंता अगले महीने गांव लौटने और अपनी माँ के साथ रहने की योजना बना रहे थे, क्योंकि दोनों भाइयों ने मिलकर घर बनाने के लिए काफी पैसे बचा लिए थे। इस हादसे ने उनकी मां को अब पहले से कहीं ज्यादा अकेला छोड़ दिया है।
इन दर्दनाक कहानियों से स्पष्ट होता है कि असम के युवाओं के लिए अच्छी कमाई करना कितना मुश्किल है, जिसकी वजह से वे घर से दूर जोखिम भरे काम करने को मजबूर हैं।

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