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जमानत तो मिल गई लेकिन बाहर नहीं आ पा रहे यूपी की जेलों के बंदी, ये है कारण

लखनऊ: मुकदमा दर्ज होने के बाद गिरफ्तारी हुई, कोर्ट में ट्रायल हुआ, अदालत से जमानत मिली, इसके बाद भी जेल से बाहर नहीं आ सके। जिला कारागार में वाराणसी के ऐसे 15 बंदी हैं। इन्हें जमानतदार नहीं मिल रहे। अपनों ने किनारा कर लिया तो बाहरी कोई जमानतदार नहीं बनना चाहता। आर्थिक अभाव में इनका बांड नहीं भरा जा सका है। जिला कारागार प्रशासन ने ऐसे बंदियों की सूची मुख्यालय भेजी है। इनमें ऐसे बंदी भी हैं, जो दो से तीन साल से सलाखों के पीछे हैं। कानूनी पेच के कारण जेल से बाहर नहीं आ सके हैं। इनमें चंदौली के भी पांच बंदी हैं। इन पर दुराचार, धोखाधड़ी, एनडीपीएस एक्ट, हत्या, पॉक्सो, चोरी, अपहरण के आरोपित हैं।

वाराणसी में दर्ज मुकदमों के ये बंदी अनिल राजभर को हाईकोर्ट से 18 अक्तूबर 2021 से जमानत मिली है। जिला कोर्ट से रवि गोंड उर्फ नेपाली को 23 अक्तूबर 2019 को, नसीर उर्फ समीर उर्फ मोटे को 17 जनवरी 2020 को, चंचल को तीन जून 2022 को, गोकुल यादव को 18 जनवरी 2022 को, अब्दुल्ला राशिद को आठ जुलाई 2022 को, हाईकोर्ट से आबिद अब्दुल्ला को 23 मार्च 2021 को, छोटू कुमार पांडेय उर्फ ठाकुर को 31 अक्तूबर 2018 को, रवि कुमार कसेरा को 20 दिसंबर 2019 को, नीलू शुक्ला को 26 अक्तूबर 2018 को जमानत मिल चुकी है।

संजय खरवार को जिला कोर्ट से 22 जून 2021 को, हाईकोर्ट से शिवम गौड़ को 18 जनवरी 2021 को, सुंदर मुसहर को 18 सितंबर 2019, आदेश परीसा को 10 अप्रैल 2019 को, विजय चौहान उर्फ बौना को 18 फरवरी 2020 को जमानत मिल चुकी है। रिहाई के लिए दो जमानतदारों की जरूरत होती है। दो के न मिलने पर कोर्ट ने एक जमानतदार की छूट दी, इसके बावजूद नहीं मदद मिल सकी। ना ही किसी संस्था से बॉन्ड भरा जा सका। जिला जेल अधीक्षक अरुण कुमार सक्सेना ने बताया कि अब शासन स्तर से कोई गाइड लाइन जारी होने के बाद इनकी रिहाई संभव हो सकेगा। या कानूनी मदद कर कोई इनकी रिहाई करा सकेगा।

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