पशुओं में एंटीबायोटिक के अंधाधुंध इस्तेमाल पर सरकार सख्त, लागू किया नया निगरानी तंत्र

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने पशुओं में एंटीबायोटिक दवाओं के इस्तेमाल को नियंत्रित करने का फैसला किया है। इसके लिए बहुत जल्द एक नया निगरानी तंत्र विकसित करने वाली है। सरकार ने सभी राज्यों के नोडल अधिकारियों और पशु एंटीबायोटिक दवाएं बेचने वाली फार्मा कंपनियों की सूची मांगी गई है।
पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले पशु स्वास्थ्य विभाग ने यह कदम एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (AMR) की बढ़ती चुनौती को ध्यान में रखते हुए उठाया है। AMR वह स्थिति है जब बैक्टीरिया, वायरस या अन्य रोगाणु एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति असरहीन हो जाते हैं, जिससे सामान्य संक्रमण का इलाज भी जटिल हो जाता है। यह संकट अब केवल पशुओं तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इंसानों के लिए भी एक गंभीर स्वास्थ्य जोखिम बन चुका है।
डेयरी-मांस उद्योग में दवाओं से खिलवाड़
सरकार ने यह फैसला डेयरी-मांस उद्योग में बढ़ते दवाओं के दुरुपयोग के बाद लिया है। भारत में दूध उत्पादन बढ़ाने और पशुओं को संक्रमण से बचाने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) पहले ही कई बार आगाह कर चुका है कि पशुओं में एंटीबायोटिक का यह अंधाधुंध प्रयोग इंसानों की सेहत के लिए गंभीर खतरा बन सकता है। अगर समय रहते इस पर नियंत्रण नहीं लगाया गया, तो आने वाले समय में आम संक्रमण भी लाइलाज बन सकते हैं।
राज्यों से मांगी जानकारी
केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने इसके तहत राज्यों से पशु एंटीबायोटिक बनाने, बेचने और वितरित करने वाली सभी फार्मा कंपनियों की लिस्ट मांगी है। साथ ही राज्यों को पशु एंटीबायोटिक दवाएं बनाने, बेचने और वितरित करने वाली कंपनियों की पूरी जानकारी जमा करनी होगी।
भारत में पशु चिकित्सा सेवाओं की स्थिति बेहद चिंताजनक है। उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, देश में हर 40,000 पशुओं पर केवल एक ही पशु चिकित्सक मौजूद है। इस भारी कमी के चलते खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में पशुपालक डॉक्टर की सलाह लिए बिना ही मेडिकल स्टोर्स से एंटीबायोटिक दवाएं खरीद लेते हैं। कई बार दुकानदार भी बिना पर्ची के ही ये दवाएं बेच देते हैं, जिससे इन दवाओं का अंधाधुंध और गलत इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है।