रांची: राज्य में भूख से कथित मौत के मामले की सुनवाई के दौरान झारखंड हाईकोर्ट ने गुरुवार को कड़ी टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि राज्य के सुदूरवर्ती इलाके में आज भी लोग आदिम युग में जी रहे हैं। राशन लेने के लिए उन्हें आठ किलोमीटर दूर जाना पड़ रहा है। इन लोगों को स्वास्थ्य की सुविधा भी उपलब्ध नहीं है। पीने का शुद्ध पानी भी मयस्सर नहीं है। सरकार की योजनाएं कागज में ही सीमित है। जंगलों में रहने वाले इन लोगों की जमीन से ही सरकार खनिज निकाल रही है और ये लोग आज भी पत्ते और वन के कंद मूल खाकर जीवन यापन कर रहे हैं।
कोर्ट ने टिप्पणी की कि सरकारी योजनाओं का लाभ लोगों को नहीं मिलता, इसलिए नक्सलवाद बढ़ता है। चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन और जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत ने झालसा की रिपोर्ट देखने के बाद यह टिप्पणी की। अदालत ने सरकार को इस मामले पर विस्तृत जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। साथ ही समाज कल्याण सचिव को 16 सितंबर को अदालत में हाजिर होने का निर्देश दिया।
झालसा की रिपोर्ट देखने के बाद अदालत ने कहा कि एक महिला पेड़ पर दिन गुजार रही है, यह कितनी शर्म की बात है। हम उन्हें मानव नहीं जंगली की तरह ट्रीट कर रहे हैं। जबकि उनका ही जंगल है, जहां से खनिज निकाला जा रहा है। खनिज निकालने के बाद हम उन्हें कुछ भी नहीं दे रहे हैं। उन्हें उनके हाल पर छोड़ दे रहे हैं। पीडीएस की दुकान इतनी दूर है। स्कूल में पीने का शुद्ध पानी नहीं है। गांव में चिकित्सा की सुविधा नहीं है। आठ किलोमीटर पर स्कूल है। बच्चों के बदन पर कपड़े नहीं हैं। ऐसा लग रहा है हम आदिम युग में जी रहे हैं।