ज्ञानवापी मस्जिद का खंडवा के शिव मंदिर से है खास कनेक्श, जानिए पूरा मामला
खंडवा : उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद मामले में आए कोर्ट के फैसले के बाद खंडवा के शिव मंदिर की यादें एक बार फिर ताजा हो गईं। कुछ ऐसा ही मामला मध्यप्रदेश के खंडवा में भी सामने आया था। ASI के सर्वे के आधार पर एक शिव मन्दिर का सर्वे कर कार्बन डेटिंग के आधार पर इसे रहवीं सदी का बताया था।
बता दें कि ASI के सर्वे के आधार पर मध्यप्रदेश के खण्डवा में स्थित एक शिव मन्दिर का फैसला हुआ था, खण्डवा में भी ASI ने सर्वे कर कार्बन डेटिंग कर एक शिव मंदिर को बारहवीं सदी का बताया था , इसी मामले की जानकारी लेने ज्ञानवापी मस्जिद मामले में हिंदू धर्म के पक्षकार वकील खण्डवा पहुंचे थे।
दरअसल, 12वी सदी में बना मन्दिर समय के साथ अपना अस्तित्व खो चुका था , खुले आसमान के नीचे चट्टान में उत्कीर्ण शिवलिंग के नजदीक कुछ लोगो ने भैंसों का तबेला बना रखा था, जब इस शिवलिंग के रखरखाव की बात सामने आई तो मोहम्मद लियाकत द्वारा हाईकोर्ट में याचिका लगा दी गई।
याचिकाकर्ता मोहम्मद लियाकत पवार ने बताया कि मंदिर के नाम पर अतिक्रमण किया जा रहा है और इसे हटाया जाए , मामला कोर्ट में पहुंचा तो जिला प्रशासन से जवाब मांगा गया , तब जिला प्रशासन ने इसके प्राचीन होने का सर्वे पुरातत्व विभाग से करवाया।
कार्यालय उपसंचालक पुरातत्व इंदौर के तकनीकी सहायक डॉ जीपी पांडेय ने जांच के बाद 13 फरवरी वर्ष 2015 को कलेक्टर कार्यालय को जो रिपोर्ट सौंपी, उसके अनुसार नगर के इतवारा बाजार में स्थित कुंडलेश्वर महादेव का प्राचीन शिवलिंग 12वीं सदी के होने जिक्र किया।
पुरातत्व विभाग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि प्राचीन मंदिर का धार्मिक के अलावा पुरातत्व की दृष्टि से बहुत महत्व है। 12वीं 13वीं सदी में निर्मित प्राचीन अवशेष में मंदिर के गर्भ गृह में बलुआ प्रस्तर जलाधारी सहित शिवलिंग है। प्राचीन मंदिर का एकमात्र खंभा आज भी अवशेष के रूप में है , जबकि शिवलिंग के कुछ हिस्सों का क्षरण हो चुका है।
यह मंदिर शिवलिंग के पास प्राचीन चट्टानों को काटकर जलाधारी बनी हुई है। शिवलिंग के पास प्राचीन खंडित नंदी की प्रतिमा है। नंदी के गर्दन पर मणि माला, पीठ पर और नितंबों पर घंटी के माला का अलंकरण है जो परमार काल की कलाओं का स्मरण कराता है ।
पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट देख कोर्ट ने माना की यहां प्राचीन मंदिर था , जिला प्रशासन ने लिखा था की यह भूमि नगर को जल प्रदाय करने वाली कंपनी द्वारा निर्मित बाउंड्री वॉल के भीतर पश्चिम दिशा में स्थित है। इस बाउंड्री वॉल के भीतर एक शिवलिंग एवं नंदी है जहां हिन्दू धर्मावलम्बियों के द्वारा पूजा अर्चना की जाती है। शिवलिंग अस्थाई रूप से टीन व बल्ली से अच्छादित है। तथा इस बाउन्ड्रीवॉल में किसी प्रकार का स्थाई अतिक्रमण नहीं है। तब जाकर विवाद का अंत हुआ ।
ज्ञानवापी केस में हिंदू पक्ष की पैरवी कर रहे सुप्रीम कोर्ट के वकील विष्णु शंकर जैन ने सोशल मीडिया पर महादेव गढ़ मंदिर की फोटो के साथ आर्टिकल शेयर कर सवाल भी उठाया था, उन्होंने अपने ट्विटर अकाउंट पर ट्वीट किया था कि जब एएसआई खंडवा में शिवलिंग की जांच कर उसके ऐतिहासिक महत्व को बता सकता है तो ज्ञानवापी में क्यों नहीं? इस ट्वीट को हजारों लोगों ने लाइक किया और सैकड़ों लोगों ने रिट्वीट भी किया था
खण्डवा के शिव मंदिर के अस्तित्व की लड़ाई लड़ने वाले महादेवगढ़ मन्दिर के संरक्षक अशोक पालीवाल इस बात को लेकर खुश है कि अब खण्डवा की ही तरह ज्ञानवापी का सर्वे होकर हिंदुओं के पक्ष में उचित फैसला आएगा। इसे उन्होंने सनातन धर्म की जीत बताया। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि किस तरह खण्डवा के शिव मंदिर के मामले से ASI की रिपोर्ट के बाद ही यह साबित हुआ था कि यह बारहवीं सदी का शिव मंदिर है।