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दूसरे देशों के दबाव में रूस से नहीं लेते तेल तो भारत को होता 8 अरब डॉलर का नुकसान

नई दिल्ली : भारत रूसी कच्चे तेल (Crude Oil) का सबसे बड़ा खरीदार रहा है। भारत ने रूस के साथ लंबे समय के लिए तेल खरीद का समझौता किया हुआ है। इन समझौतों में भारत की कई तेल कंपनियां शामिल हैं। भारत ने पश्चिमी दबाव के बावजूद रूस के साथ अच्छे रिश्ते रखे हैं और द्विपक्षीय व्यापार भी ऊंचाईयों पर है। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से भारत ने रूस से कच्चे तेल की खरीद में बेतहाशा बढ़ोतरी की है। वहीं भारत ने अमेरिका को साफ तौर पर बता दिया था कि वह अपनी ऊर्जा सुरक्षा को लेकर जरूरत के हिसाब से किसी भी देश से तेल की खरीदारी कर सकता है। भारत ने पश्चिमी देशों के दबाव में न आकर अच्छा मुनाफा कमाया है। अगर भारत पश्चिमी देशों के दबाव में आकर रूस से तेल नहीं खरीदता तो उसे पिछले वर्ष करीब 8 अरब डॉलर का नुकसान हो गया होता।

आईसीआरए रिसर्च ने बताया कि भारत ने 31 मार्च को समाप्त वित्त वर्ष 2023-24 के 11 महीनों में तेल आयात में अनुमानित 7.9 बिलियन डॉलर की बचत की, जबकि पूरे 2022-23 में 5.1 बिलियन डॉलर की बचत हुई है। इस बचत से 2023-24 में भारत के चालू खाता घाटे-से-जीडीपी अनुपात में 15-22 आधार अंकों का कंप्रेशन होगा। कहा गया है कि अगर छूट के निम्न स्तर कायम रहते हैं, तो भारत का शुद्ध तेल आयात बिल 2023-24 में 96 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2024-25 में 101-104 बिलियन डॉलर हो सकता है, यह मानते हुए कि औसत कच्चे तेल की कीमत 85 डॉलर प्रति बैरल है।

वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के आधार पर, नोट में अनुमान लगाया गया है कि भारत के तेल आयात बास्केट में रूसी कच्चे तेल की हिस्सेदारी अप्रैल 2023-फरवरी 2023 की अवधि के दौरान लगभग 36% तक बढ़ जाएगी, जो 2021-22 में लगभग 2% से 1700% की छलांग है।

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