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बजट का सही उपयोग होता तो बदल जाती उत्तराखंड की तस्वीर

विकास पर कुंडली मार बैठे कई अफसर

योजनाओं को धरातल पर उतारने और बजट के सदुपयोग का समय जैसे ही आता है, विभाग ढीले पड़ने लगते हैं। बजट खर्च के आंकड़े इस सच से पर्दा उठा रहे हैं। आपदा प्रबंधन से हर वर्ष सबसे अधिक प्रभावित होने के बावजूद विभागीय बजट का उपयोग चौंकाने वाला है। वर्ष 2022-23 में विभाग को 1366.63 करोड़ खर्च के लिए दिए गए, लेकिन मात्र 833.64 करोड़ का उपयोग हुआ। 532.99 करोड़ की राशि का उपयोग होता तो आपदा से प्रभावितों के पुनर्वास और क्षतिपूर्ति के संवेदनशील प्रकरण निस्तारित हो सकते थे।

गोपाल पोखरिया

यह बात तो शत-प्रतिशत सही है कि उत्तराखंड तेजी से विकास की ओर कदम बढ़ा रहा है, लेकिन गति थोड़ी धीमी है। इसमें कहीं न कहीं अफसरशाही का भी बड़ा हाथ है। हर साल प्रदेश के सामने सबसे बड़ी चुनौती वार्षिक बजट के समय पर उपयोग की होती है। उत्तराखंड में अधिकतर दुर्गम भूभाग होने के कारण विकास कार्यों में अधिक लागत आ रही है। ढांचागत विकास के लिए राज्य सरकार के पास स्वयं के वित्तीय संसाधन सीमित हैं। इसलिए केन्द्र सरकार से मिलने वाली सहायता पर उत्तराखंड की निर्भरता अधिक है। इसके बावजूद बजट का समुचित उपयोग नहीं होने से राज्य को हानि उठानी पड़ रही है। प्रदेश के विकास का वार्षिक बजट के सदुपयोग से सीधा नाता है। जितना बेहतर तरीके से बजट खर्च होगा, अवस्थापना सुविधाएं उतनी ही तेज गति से वंचित क्षेत्रों तक पहुंचेंगी। इसके साथ ही यह भी सच्चाई है कि राज्य गठन के बाद से ही अब तक बजट खर्च को लेकर विभागों का रवैया संतोषजनक नहीं रहा है। बजट आकार और खर्च के लिए विभागों को स्वीकृत की जा रही बजट राशि में बड़ा अंतर है। बीते कई वर्षों से यह 20 हजार करोड़ या इससे अधिक रहा है। केन्द्र सरकार की मदद के बावजूद उत्तराखंड विकास की राह में तेज गति नहीं पकड़ पा रहा है। प्रदेश में पेयजल, आवास, सड़कों का जाल समेत ढांचागत सुविधाओं के विस्तार और जन कल्याण के कार्यों का जिम्मा जिन विभागों पर है, वे बजट के शत-प्रतिशत सदुपयोग के मोर्चे पर हाफ रहे हैं। पिछले वित्तीय वर्ष 2022-23 में शहरी विकास 1190 करोड़ की बजट राशि खर्च नहीं कर सका। प्रारंभिक शिक्षा में 267 करोड़, माध्यमिक शिक्षा में 429 करोड़ का उपयोग नहीं हुआ। सरकार ने वार्षिक बजट में से विभागों को जितनी राशि स्वीकृत की, उसमें से 5000 करोड़ से अधिक राशि खर्च नहीं की जा सकी। ये तस्वीर उस देवभूमि की है, जिसे अपने सीमित संसाधनों के कारण दूरस्थ और दुर्गम क्षेत्रों में विकास कार्यों और रहन-सहन की गुणवत्ता से संबंधित सुविधाओं पहुंचाने के लिए केंद्र के दर पर पाई-पाई पाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।

बजट खर्च के सरकारी आंकड़ों के अनुसार पिछले वित्तीय वर्ष 2022-23 के अनुभव भी अच्छे नहीं रहे हैं। बजट आकार 71091.80 करोड़ रहा, जबकि विभागों को खर्च के लिए 49637.05 करोड़ ही स्वीकृत किए गए। बजट आकार और स्वीकृति में 21354.75 करोड़ का बड़ा अंतर रहा है। यह राशि भी पूरी खर्च नहीं हो पाई। विभाग 44549.50 करोड़ ही उपयोग कर सके। 5087.55 करोड़ की राशि स्वीकृति के बावजूद खर्च नहीं होना सरकार के लिए चिंता बढ़ाने वाला है। बजट आकार और स्वीकृति में बड़ा अंतर एवं खर्च को लेकर सुस्ती विभागों की कार्यप्रणाली पर कई सवाल खड़े कर रही है। विकास योजनाओं का खाका तैयार करने और फिर वार्षिक बजट निर्माण में विभागों की सक्रिय भूमिका रहती है। योजनाओं को धरातल पर उतारने और बजट के सदुपयोग का समय जैसे ही आता है, विभाग ढीले पड़ने लगते हैं। बजट खर्च के आंकड़े इस सच से पर्दा उठा रहे हैं। आपदा प्रबंधन से हर वर्ष सबसे अधिक प्रभावित होने के बावजूद विभागीय बजट का उपयोग चौंकाने वाला है। वर्ष 2022-23 में विभाग को 1366.63 करोड़ खर्च के लिए दिए गए, लेकिन मात्र 833.64 करोड़ का उपयोग हुआ। 532.99 करोड़ की राशि का उपयोग होता तो आपदा से प्रभावितों के पुनर्वास और क्षतिपूर्ति के संवेदनशील प्रकरण निस्तारित हो सकते थे।

लोक निर्माण विभाग 170 करोड़ से अधिक राशि खर्च नहीं कर पाया। यह हालत तब है, जब जगह-जगह सड़कें बदहाल हैं। सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से विभागों को सक्षम बनाने, जन सेवाओं की पहुंच बढ़ाने को सरकार प्राथमिकता दे रही है, लेकिन विभाग 50.78 करोड़ में से 24.60 करोड़ खर्च ही नहीं कर पाया। स्वास्थ्य जैसा सर्वाधिक महत्वपूर्ण विभाग स्वीकृत बजट में से 222 करोड़ खर्च करना ही भूल गया। चिकित्सा शिक्षा में 104 करोड़ की राशि का उपयोग नहीं किया जा सका। पेयजल विभाग ने 532 करोड़ की राशि खर्च नहीं की। उत्तराखंड में स्वास्थ्य, शिक्षा, पेयजल, ऊर्जा समेत विभिन्न विभागों की केंद्रपोषित योजनाओं और बाह्य सहायतित योजनाओं की करोड़ों की राशि खर्च की गई होती तो कई क्षेत्रों की सूरत बदली नजर आती। केन्द्र सरकार की सहायता से चलने वाली इन दोनों ही योजनाओं के रूप में बह रही विकास की गंगा के पानी की बड़ी मात्रा व्यर्थ हो रही है। सदुपयोग नहीं होने से अवस्थापना विकास की गति तो प्रभावित हो ही रही है, दूरस्थ दुर्गम स्थानों से मूलभूत सुविधाएं न मिलने से परेशान व्यक्ति पलायन को भी विवश हैं। वित्तीय वर्ष 2022-23 में विभाग इन दोनों ही मद में 2073 करोड़ की राशि का उपयोग नहीं कर पाए। उत्तराखंड समेत 11 हिमालयी राज्यों को प्राप्त विशेष दर्जे का लाभ तब ही है, जब केंद्रपोषित और बाह्य सहायतित योजनाओं के मद में मिलने वाली धनराशि का शत-प्रतिशत उपयोग हो। प्रदेश में सरकारें किसी भी दल की रही हों, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया है। प्रति वर्ष केन्द्र से मिलने वाली करोड़ों रुपये की राशि विभाग खर्च नहीं कर पा रहे हैं। विशेष दर्जे के कारण इन योजनाओं में केन्द्रीय अनुदान की हिस्सेदारी 90 और 80 प्रतिशत तक है। राज्य को मात्र 10 या 20 प्रतिशत अंशदान देना पड़ रहा है। यही कारण है कि इन दोनों ही मदों में धन का सर्वाधिक उपयोग करने पर सरकार जोर देती रही है। विशेष यह भी है कि इन ये दोनों ही योजनाएं ढांचागत विकास और मूलभूत सुविधाओं के विस्तार से जुड़ी हुई हैं।

वित्तीय वर्ष 2022-23 में केन्द्रपोषित योजनाओं के लिए बजट आकार 17292.84 करोड़ रखा गया। इसमें से खर्च के लिए विभागों को 13104.10 करोड़ जारी किए गए। इस राशि के उपयोग की बात आई तो इसमें से 1852.90 करोड़ खर्च नहीं किए जा सके। कमोवेश यही स्थिति वाह्य सहायतित परियोजनाओं की भी रही। इस मद में बजट आकार 1550.11 करोड़ तय किया गया, लेकिन विभागों को पूरे सालभर खर्च के लिए 913.63 करोड़ स्वीकृत किए गए। इसमें से भी मात्र 693.35 करोड़ राशि का ही उपयोग हुआ। यानी 220.28 करोड़ खर्च ही नहीं हो सके। ग्राम्य विकास, पेयजल, ऊर्जा विभागों ने कम किया बजट का उपयोग केन्द्रपोषित योजनाओं में समग्र शिक्षा अभियान, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, जल जीवन मिशन, नमामि गंगे, प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना समेत 16 से अधिक महत्वपूर्ण योजनाएं सम्मिलित हैं। इसी प्रकार वाह्य सहायतित योजनाओं में जलागम, वन प्रबंधन व पर्यावरण से संबंधित महत्वपूर्ण परियोजनाएं हैं। पेयजल, ग्राम्य विकास, जलागम प्रबंधन, ऊर्जा और आपदा प्रबंधन जैसे विभाग केन्द्र से प्राप्त धन का अपेक्षाकृत बहुत कम उपयोग कर पाए हैं। यद्यपि, पशुपालन, मत्स्य, लघु सिंचाई, सिंचाई, पंचायतीराज, उद्योग, नागरिक उड्डयन व खेलकूद समेत लगभग 15 विभागों ने स्वीकृत बजट का शत-प्रतिशत उपयोग किया। यह अलग बात है कि इन्हें स्वीकृत बजट राशि बहुत अधिक नहीं थी। कई विभागों ने 90 या 95 प्रतिशत से अधिक स्वीकृत बजट खर्च करने में सफलता पाई, लेकिन पूंजीगत बजट खर्च अपेक्षाकृत कम रहा है।

वित्त अपर मुख्य सचिव आनंद बद्र्धन का कहना है कि केन्द्रपोषित और वाह्य सहायतित योजनाओं के अधिकतम उपयोग के लिए विभागों को सतर्क किया गया है। इन दोनों ही मदों में खर्च में बीते वर्ष में अपेक्षाकृत वृद्धि हुई है, लेकिन बजट का पूरा सदुपयोग अब भी चुनौती है। इसके लिए उपाय किए गए हैं। प्रदेश में 65 में 12 विभाग ऐसे हैं, जिन्हें वित्तीय वर्ष 2023-24 के चार माह यानी जुलाई बीतने के बाद भी कुल बजट प्रविधान का 30 प्रतिशत से कम बजट स्वीकृत हो पाया। वहीं एक तिहाई वर्ष बीत गया, लेकिन 30 विभाग स्वीकृत बजट का एक तिहाई से कम खर्च कर पाए हैं। कृषि, ग्राम्य विकास, सिंचाई, लोक निर्माण, युवा कल्याण, चिकित्सा शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण विभाग इसमें सम्मिलित हैं। इसके बावजूद चालू वित्तीय वर्ष में बजट खर्च बढ़ाने को सरकार के प्रयास रंग भी लाए हैं। इसी अवधि में 47.50 प्रतिशत बजट को स्वीकृति दी गई, जबकि इसमें से 36.82 प्रतिशत धनराशि खर्च की जा चुकी है। पहली छमाही यानी 30 सितंबर तक बजट खर्च को लेकर कई वर्षों बाद अच्छी तस्वीर सामने आ सकती है। विकास कार्यों और परिसंपत्तियों के निर्माण से संबंधित पूंजीगत मद में पहली छमाही में 4000 करोड़ खर्च करने का लक्ष्य चंद कदमों की दूरी पर है। अब तक 3200 करोड़ खर्च करने में सरकार को सफलता मिली है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस वित्तीय वर्ष में जुलाई माह तक कुल बजट 77407.08 करोड़ में से विभागों को 36800.11 करोड़ जारी किए गए। इनमें से 13550.71 करोड़ खर्च किए गए हैं। केन्द्रपोषित योजनाओं के कुल बजट 15583.29 करोड़ में से विभागों को 4203.79 करोड़ जारी किए गए। इसमें से खर्च 1758.63 करोड़ हुए हैं। यह स्वीकृति का 41.83 प्रतिशत है। वाह्य सहायतित योजनाओं के मद में कुल 1675.06 करोड़ के बजट में से 233.47 करोड़ विभागों को दिए जा चुके हैं। यह कुल बजट का 13.94 प्रतिशत है। इसमें से 54.87 करोड़ यानी 23.50 प्रतिशत ही खर्च हो पाया है।

हर पखवाड़े अनुश्रवण का विभागों पर प्रभाव

पिछले वित्तीय वर्षों में बजट खर्च की धीमी गति की परंपरा तोड़ने के लिए इस बार सरकार की ओर से विशेष प्रयास किए गए। विभागों को बजट जारी करने और खर्च में तेजी लाने के लिए मासिक के स्थान पर हर पखवाड़े अनुश्रवण की व्यवस्था की गई है। फिलहाल कुल स्वीकृत बजट का एक तिहाई से अधिक खर्च किया गया है। बीते वर्ष नवंबर माह में मसूरी में सरकार ने आला अधिकारियों के साथ चिंतन शिविर में बजट खर्च की गति बढ़ाने पर मंथन किया था। तब यह तय किया गया था कि विभागों को बजट स्वीकृति और खर्च में होने वाली कठिनाइयों से निजात दिलाने को नियमित अनुश्रवण किया जाए। एक अप्रैल, 2023 से नया वित्तीय वर्ष प्रारंभ होने के साथ वित्त के आला अधिकारी इसी रणनीति के साथ काम कर रहे हैं। पिछले वित्तीय वर्ष 2022-23 में अनुपूरक मांगों को सम्मिलित कर बढ़े बजट में से 21354 करोड़ की राशि बगैर स्वीकृति ही बजट प्रस्ताव पर अनावश्यक भार बनकर रह गई। जब यह राशि विभागों को स्वीकृत ही नहीं की गई तो इसके खर्च को सोचना भी व्यर्थ है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में भी अनुपूरक मांगों के साथ बजट का आकार 77407.08 करोड़ से बढ़कर 88728.08 करोड़ हो गया है। जब पहले से निर्धारित बजट का ही सदुपयोग चुनौती बना हो, तब अनुपूरक मांगों के रूप में हर वर्ष हो रहे बजट विस्तार कै औचित्य पर सवाल खड़े होने स्वाभाविक हैं। नए बजट आकार के साथ बजट के उपयोग को लेकर सरकार पर दबाव कम होने के स्थान पर और बढ़ गया है।

एक अप्रैल से वित्तीय वर्ष की शुरुआत से पहले ही जनाकांक्षाओं को लुभावना रूप देकर बड़ा बजट बनाने की परंपरा लंबे समय से चल रही है। इसी के साथ वित्तीय वर्ष के छह महीने से पहले या कुछ समय बाद ही अनुपूरक बजट भी इस परंपरा का अंग बना हुआ है। अनुपूरक मांगों के रूप में बजट बढ़ाने की इस उपयोगिता पर कैग भी अपनी रिपोर्ट में कई बार सवाल खड़े कर चुका है। बजट खर्च की हालत देखिए, पहली छमाही यानी 30 सितंबर तक कुल बजट प्रविधान में से 50 प्रतिशत धनराशि खर्च करना सपने की तरह है। स्वीकृत राशि में से ही विभाग बहुत कम खर्च कर पा रहे हैं। यह उस प्रदेश की हालत है, जिसके लिए ढांचागत विकास और निर्माण कार्यों को हर वर्ष तेजी से पूरा करना अत्यंत आवश्यक है। पलायन, रोजगार और आजीविका जैसी ज्वलंत समस्याओं के समाधान की राह सीधे तौर पर बजट के तेजी से उपयोग पर टिकी हुई है। हिमालयी राज्य के रूप में उत्तराखंड की इसी कठिनाई को देखते हुए उसे विशेष राज्य का दर्जा दिया गया है, ताकि यह क्षेत्र केन्द्र से मिलने वाली अतिरिक्त सहायता से शीघ्र अपने पैरों पर खड़ा हो सके। बजट खर्च के आंकड़े इस सच को मुंह चिढ़ाते हैं। पिछले वित्तीय वर्ष 2022-23 में 65571.80 करोड़ रुपये का बजट आकार अनुपूरक मांगों को सम्मिलित करने के बाद बढ़कर 71091.80 करोड़ हो गया था। प्रथम अनुपूरक के रूप में इसमें लगभग 5440 करोड़ रुपये की वृद्धि तो की गई, लेकिन बजट खर्च में वृद्धि नहीं हो पाई। इसमें से 21 हजार करोड़ से अधिक राशि का प्रावधान विभागों के काम नहीं आया। इसमें से पूरे वर्षभर मात्र 44549.50 करोड़ रुपये ही खर्च किए जा सके। बजट आकार से तुलना की जाए तो यह मात्र 62.66 प्रतिशत है।

वित्तीय वर्ष 2023-24 में पहले बजट आकार 77207.08 करोड़ रहा। तब राजस्व मद में 52748 करोड़ और पूंजीगत मद में 24659 करोड़ की राशि रखी गई। इसमें से सिर्फ पूंजीगत परिव्यय के अंतर्गत 13000 करोड़ रुपये रखे गए हैं। अब 11321 करोड़ की अनुपूरक मांगों को सम्मिलित करने के बाद यह बढ़ कर 88 हजार करोड़ के पार पहुंच गया है। विशेष बात यह है कि अनुपूरक मांगों में बजट में वृद्धि राजस्व की तुलना में पूंजीगत मद में अधिक हुई है। यह अवस्थापना विकास के कार्यों के प्रति सरकार के संकल्प को दर्शाता है। इस संकल्प की पूर्ति इस पर निर्भर करेगी कि खर्च के लिए विभागों को समय पर कितना बजट जारी किया जाता है और विभाग बजट सदुपयोग के मोर्चे पर कितना सफल रहते हैं। पूंजीगत मद में 7790 करोड़ अनुपूरक में रखने से चालू वित्तीय वर्ष में इस मद में कुल बजट 32449 करोड़ हो गया है। वहीं राजस्व मद में 3290 करोड़ की अनुपूरक मांगों को शामिल करने से यह राशि 56278 करोड़ तक पहुंच गई है। पूंजीगत परिव्यय यानी महत्वपूर्ण अवस्थापना विकास योजनाओं के लिए अनुपूरक में 3290 करोड़ रखे गए हैं। अब सरकार को इस वित्तीय वर्ष में 16290 करोड़ इस मद में खर्च करने पड़ेंगे। यही सरकार के लिए बड़ी चुनौती भी है। वित्त सचिव दिलीप जावलकर ने कहा कि बजट के सदुपयोग में आ रही बाधाओं को दूर किया जा रहा है। अब तक कई कदम उठाने से लाभ भी दिखाई दिया है।

हालांकि इन सबके बाद अब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इसे लेकर नाराजगी जताई और अधिकारियों को निर्देशित किया था कि वह विकास खर्चों मे तेजी लाएं। धामी सरकार का संकल्प असर दिखाने लगा है। वित्तीय वर्ष की पहली छमाही तक बजट खर्च को लेकर फिसड्डी साबित होते रहे विभागों की कार्यप्रणाली में नियमित अनुश्रवण से परिवर्तन हो रहा है। इसका सुखद परिणाम यह है कि वित्तीय वर्ष 2034-24 में पहली छमाही पूरी होने से पहले गुरुवार तक पूंजीगत बजट खर्च 3600 करोड़ को पार कर गया। राज्य बनने के बाद ऐसा पहली बार हुआ है। 30 सितंबर तक 4000 करोड़ बजट खर्च करने का लक्ष्य शेष दिनों में पूरा होने की उम्मीद बंधी है। ऐसा हुआ तो उत्तराखंड केन्द्र सरकार से 450 करोड़ की अतिरिक्त सहायता पाने का हकदार हो जाएगा। प्रदेश के सामने सबसे बड़ी चुनौती वार्षिक बजट के सदुपयोग की रही है। राज्य सरकार राजस्व के अपने स्रोतों और केन्द्र सरकार से मिल रही सहायता के बल पर लोकलुभावन बड़ा बजट तैयार तो करती है, लेकिन बजट की बड़ी धनराशि खर्च नहीं होने से धरातल पर उसका अपेक्षित लाभ आमजन को नहीं मिल सका। राज्य बनने के बाद से ही बजट खर्च की लचर हालत अब तक सरकारों को सुखद अहसास नहीं करा पाई है। यद्यपि, बीते वर्ष नवंबर माह में मसूरी में हुए चिंतन शिविर में सरकार और प्रदेश के आला अधिकारियों ने इस समस्या के समाधान का फार्मूला तैयार किया। इसमें बजट की स्वीकृति की प्रक्रिया के सरलीकरण पर विशेष जोर दिया गया। वित्तीय वर्ष 2023-24 की शुरुआत से ही धामी सरकार ने इस पर अमल भी किया, लेकिन इसकी गति धीमी रही।

इस बीच डबल इंजन के रूप में केन्द्र सरकार ने राज्य के बजट खर्च के लिए अतिरिक्त दबाव बनाया है। राज्य को पूंजीगत मद की 13 हजार करोड़ की राशि में से 45 प्रतिशत यानी 4000 करोड़ 30 सितंबर तक खर्च करने का लक्ष्य दिया गया है। अब इस लक्ष्य से मुंह मोड़ना आसान नहीं है। इसे प्राप्त करने पर केन्द्र सरकार की स्कीम टू स्टेट्स स्पेशल असिस्टेंस फार कैपिटल इन्वेस्टमेंट के अंतर्गत 450 करोड़ की अतिरिक्त सहायता मिलेगी। इस चुनौती से निपटने के लिए अपनाई गई रणनीति ने प्रदेश में पहली छमाही में पूंजीगत मद में तेजी से बजट खर्च करने की राह तैयार कर दी। बजट खर्च की गति बढ़ाने के मोर्चे पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी डटे। मुख्य सचिव डा एसएस संधु, अपर मुख्य सचिव वित्त आनंद बद्र्धन और वित्त सचिव दिलीप जावलकर की ओर से बजट खर्च का मासिक और हर पखवाड़े अनुश्रवण के बाद बजट खर्च ने रफ्तार पकड़ी। पूंजीगत परिव्यय इस वित्तीय वर्ष के पहले महीने यानी अप्रैल में मात्र पांच लाख रुपये रहा। इसके बाद मई में यह 477 करोड़ और जून में बढ़कर 1291 करोड़ तक पहुंचा। जुलाई माह में 2263 करोड़ और अगस्त माह में यह 2835 करोड़ हो गया। चालू माह सितंबर में पूंजीगत परिव्यय 3613 करोड़ हो चुका है।

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