क्या ढलने लगा है ‘उत्तराखंड क्रिकेट’ का सूरज? कितनी अपेक्षाएं पूरी और कितनी अधूरी?
देहरादून (गौरव ममगाई): वर्ष 2018, जब उत्तराखंड क्रिकेट के सूरज का उदय हुआ था। सबसे पहले उत्तराखंड क्रिकेट टीम को मान्यता मिली और टीम ने पहली बार डोमेस्टिक क्रिकेट में पदार्पण किया तो उत्तराखंड में लाखों क्रिकेट प्रतिभाओं के सपनों को पंख लगने शुरू हुए थे। उत्तराखंड के क्रिकेटर भी भारतीय टीम में जगह हासिल करने का सपना देखने लगे थे। अगले वर्ष 2019 में क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ़ उत्तराखंड को भी मान्यता मिली तो आस जगी कि अब राज्य के क्रिकेटरों के साथ न्याय भी होगा। आज उत्तराखंड क्रिकेट को मान्यता मिले 5 साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन अब यह जानना भी जरूरी है कि आखिर उत्तराखंड क्रिकेट से क्या-क्या अपेक्षाएं थी ? और ये अपेक्षाएं कितनी पूरी हो सकी हैं ?
चलिये आइये सबसे पहले जानते हैं उत्तराखंड क्रिकेट को मान्यता दिलाने को सालों तक चला संघर्ष के बारे में….
दरअसल, राज्य गठन के समय से ही यहां क्रिकेट को लेकर खासा उत्साह रहा है। राज्य में तीन बड़ी क्रिकेट एसोसिएशन रही हैं, जिनमें एक एसोसिएशन हीरा सिंह बिष्ट व पीसी वर्मा की थी, दूसरी चंद्रकांत आर्य व रामशरण नौटियाल व तीसरी दिव्य नौटियाल की थी। ये तीनों ही एसोसिएशनें बीसीसीआई मान्यता के लिए खुद की दावेदारी करती रहीं। कई बार बीसीसीआई का प्रतिनिधमंडल उत्तराखंड में आया, लेकिन तीनों ही एसोसिएशन के बीच आरोप-प्रत्यारोप चलता देख हर बार बीसीसीआई टीम बैरंग लौटती रही। आखिरकार 2017 में राज्य में त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार बनने के बाद उत्तराखंड क्रिकेट को मान्यता दिलाने के लिए गंभीर व तेज प्रयास हुए।
अंततः 2018 में तत्कालीन खेलमंत्री अरविंद पांडे की सक्रियता के चलते सबसे पहले उत्तराखंड क्रिकेट टीम को मान्यता दिलायी गई थी। 2018 में ही नवंबर में उत्तराखंड टीम ने पहली बार डोमेस्टिक क्रिकेट में पदार्पण किया था। वर्ष 2019 में हीरा सिंह बिष्ट व पीसी वर्मा वाली क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ़ उत्तराखंड को बीसीसीआई की मान्यता भी दिला दी गई, लेकिन इसमें अन्य दो एसोसिएशन का भी आंशिक प्रतिनिधित्व दिया गया। तब से सीएयू ही उत्तराखंड क्रिकेट का संचालन कर रही है।
क्या ठंडा पड़ने लगा है जोश? :
2020 में सीएयू के सचिव महिम वर्मा को बीसीसीआई में उपाध्यक्ष पद की जिम्मेदारी भी मिली, जो उत्तराखंड क्रिकेट व राज्य के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि था। महिम वर्मा के बीसीसीआई में जाने के बाद उत्तराखंड को डोमेस्टिक क्रिकेट की मेजबानी भी मिलनी शुरू हुईए टीम में कई बड़े कोच व गेस्ट प्लेयर शामिल किये गये। इससे उम्मीद थी कि आने वाले दो-चार सालों में उत्तराखंड नई ऊंचाईयों को छुएगा। उत्तराखंड टीम डोमेस्टिक टूर्नामेंट का खिताब जीतेगी और उत्तराखंड प्लेयर भारतीय टीम में जगह बना सकेंगे।
शुरुआती दो साल तक तो उत्तराखंड क्रिकेट को ऊंचाई पर ले जाने के लिए कई गंभीर प्रयास भी किये जाते रहे, लेकिन अंतिम एक से डेढ़ वर्ष में एसोसिएशन के प्रयासों में बड़ी कमी देखने को मिल रही है। उत्तराखंड क्रिकेट में कोई बड़े प्रयोग नहीं देखे जा रहे हैं, जो शुरुआती वर्षों में देखने को मिलते थे। इससे क्रिकेट में भविष्य देख रहे युवा क्रिकेटर निराश भी हैं।
इंटरनेशनल स्टेडियम का रख-रखाव नहीं हो पा रहा हैः
25 नवंबर को देहरादून के राजीव गांधी इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम में लीजेंड्स लीग क्रिकेट के मैच का आयोजन हुआ, जिसमें रोबिन उथप्पा, तिलकरत्ने दिलशान, उपुल थरंगा जैसे बड़े दिग्गज क्रिकेटरों ने हिस्सा लिया था। आपको जानकर हैरानी होगी कि यह मैच करीब एक साल के बाद हो रहा पहला मैच था। इसलिए स्टेडियम का रख-ऱखाव भी ठीक से नहीं हो सका। कई खिलाड़ी डाइव लगाने से भी कतराते दिखे। बता दें कि यह स्टेडियम राज्य सरकार ने एक निजी कंपनी को संचालन के लिए सौंपा है।
उत्तराखंड क्रिकेट के लिए फिर खतरा बनी एसोसिएशन की राजनीति :
उत्तराखंड क्रिकेट को मान्यता मिलने में कई सालों की देरी की मुख्य वजह तीन क्रिकेट एसोसिएशनों के बीच राजनीतिक जंग ही थी। अब सालों की मेहनत के बाद क्रिकेट व एसोसिएशन को मान्यता मिली है तो एसोसिएशन के सभी सदस्यों को राज्य व क्रिकेटरों के हित में एकजुट होकर आगे बढ़ना चाहिए, लेकिन ऐसा होता नहीं दिखता है। सूत्र बताते है कि सीएयू में कई सदस्यों में आपसी हितों के लेकर टकराव देखा जाता रहा है। कई बार ये सदस्य एक-दूसरे के कार्य में बाधा भी उत्पन्न करते हैं। एसोसिएशन के भीतर राजनीति को उत्तराखंड क्रिकेट के लिए सुखद संकेत नहीं है।
आगे की राह क्या होनी चाहिएः:
सुझाव नंबर 1-
सीएयू के सचिव महिम वर्मा बीसीसीआई में उपाध्यक्ष के पद पर रह चुके हैं। उनके बीसीसीआई के सचिव जय शाह के साथ अच्छे संबंध हैं। महिम वर्मा को अपने संबंधों का लाभ उत्तराखंड क्रिकेट को आगे बढ़ाने में करना चाहिए। इसके लिए उत्तराखंड में हर साल ज्यादा से ज्यादा डोमेस्टिक क्रिकेट व आईपीएल की मेजबानी लेने का प्रयास करना चाहिए। इसके अलावा देहरादून के इंटरनेशनल स्टेडियम में इंटरनेशनल मैचों की मेजबानी भी लेनी चाहिए, जिससे स्टेडियम में फाइवस्टार होटल जैसी सुविधाओं का विस्तार हो सके।
सुझाव नंबर 2 –
सीएयू के सभी सदस्यों को उत्तराखंड क्रिकेट को मान्यता मिलने के लंबे संघर्ष को याद करना चाहिए। उन्हें आपसी मनमुटाव मिटाकर राज्य क्रिकेट के हित में साथ आना चाहिए। इसके लिए राज्य सरकार को भी एसोसिएशन के बीच मध्यस्थता की भूमिका निभाते रहनी चाहिए। हर महीने एसोसिएशन के साथ नियमित बैठक आयोजित की जा सकती है, ताकि सभी सदस्यों में समन्वय बनाये रखा जा सके।
उत्तराखंड क्रिकेट को प्रोत्साहन देने से न सिर्फ युवा क्रिकेटरों के हितों की रक्षा होगी, बल्कि यहां क्रिकेट के बड़े आयोजन होने से खेल सुविधाओं का विकास एवं विस्तार भी होता रहेगा। इससे पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा।