आर्टिकल 370 पर सुनवाई करते बोला सुप्रीम कोर्ट, ‘पूरे देश के लिए एक ही संविधान लागू है’
नई दिल्ली : जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 (Article 370) हटाने के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर बुधवार को चौथे दिन भी सुनवाई हुई। इस दौरान संविधान पीठ ने कहा कि 1947 में भारत में शामिल हुए जम्मू-कश्मीर सहित पूरे देश के लिए एक ही संविधान लागू है। अनुच्छेद-370 पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सवाल पूछा कि ‘क्या 1957 के बाद विधानसभा और संसद ने राज्य के संविधान को भारतीय संविधान के दायरे में लाने के बारे में कभी नहीं सोचा?’ इसका जवाब देते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यम ने पीठ से कहा कि जम्मू-कश्मीर का संविधान अलग है। यह राज्य का अपना संविधान है क्योंकि इसे जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा ने बनाया था।
मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के संविधान में बदलाव करने की शक्ति सिर्फ उस निकाय के पास हो सकती है जिसने उसे (संविधान) बनाया। जम्मू कश्मीर का संविधान वहां की संविधान सभा ने बनाया था। वरिष्ठ अधिवक्ता व पूर्व सॉलिसिटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम याचिकाकर्ताओं में से एक एम. इकबाल खान की ओर से पक्ष रख रहे थे। पीठ ने मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ के अलावा न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत भी शामिल हैं।
वरिष्ठ अधिवक्ता सुब्रमण्यम के इस जवाब पर जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा ‘1954 के आदेश के पहले भाग को पढ़ने से तो यह स्पष्ट हो गया कि जम्मू कश्मीर में भारतीय संविधान को अपवादों और संशोधनों के साथ अपनाया गया था। उन्होंने कहा कि आप इसे जम्मू कश्मीर का संविधान कह सकते हैं, लेकिन जो अपनाया गया था वह भारतीय संविधान था। जस्टिस खन्ना ने कहा कि अनुच्छेद-370 बहुत लचीला है। उन्होंने कहा कि आमतौर पर संविधान समय और स्थान के साथ लचीले होते हैं क्योंकि संविधान एक बार बनते हैं लेकिन लंबे समय तक बने रहते हैं। उन्होंने कहा कि यदि आप अनुच्छेद 370 को ही देखें जो यह कहता है कि इसमें संशोधन किया जा सकता है और जम्मू-कश्मीर पर लागू होने वाले भारत के संविधान में जो कुछ भी हो रहा है उसे आत्मसात कर लिया जाए।’
इसके जवाब में वरिष्ठ अधिवक्ता सुब्रमण्यम ने कहा कि अनुच्छेद-370 के प्रावधानों की एकतरफा व्याख्या करना संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप नहीं होगा। उन्होंने कहा कि मामले को देखने के कई नजरिये हो सकते हैं। पहला ऐतिहासिक, दूसरा लिखित, तीसरा सैद्धांतिक और आखिरी ढांचागत। सुब्रमण्यम ने कहा कि ये सभी संवैधानिक व्याख्या के तरीके हैं, आप जिस भी नजरिए से देखेंगे, इसका परिणान एक ही होगा। इस पर याचिकाकर्ताओं की ओर से एक अन्य वरिष्ठ अधिवक्ता जफर शाह ने कहा कि अनुच्छेद-370 को समझने के लिए अलग-अलग नजरिया है। वरिष्ठ अधिवक्ता शाह ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के महाराजा ने जब भारत के साथ समझौता किया था तो उन्होंने रक्षा, संचार और विदेश मामलों के अलावा बाकी सभी शक्तियां अपने पास रखी थीं। उन्होंने कहा कि इसमें संप्रभुता यानी कानून बनाने की शक्ति भी शामिल है। वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि एक तरह से यह दो देशों के बीच समझौता था।
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यम ने कहा कि ‘राष्ट्रपति के पास अनियंत्रित शक्ति नहीं है।’ उन्होंने संविधान पीठ को बताया कि अनुच्छेद-370 खंड 1 के तहत शक्ति का उद्देश्य आपसी समझ के सिद्धांत पर आधारित है। उन्होंने पीठ को बताया कि विलय के समक्ष जम्मू कश्मीर अन्य राज्यों की तरह नहीं था, उसका अपना संविधान था। वरिष्ठ अधिवक्ता सुब्रमण्यम ने कहा कि हमारे संविधान में विधानसभा और संविधान सभा दोनों मान्यता प्राप्त है। उन्होंने कहा कि मूल ढांचा दोनों के संविधान से निकाला जाएगा। सुब्रमण्यम ने कहा कि डॉ. भीम राव अंबेडकर ने संविधान के संघीय होने और राज्यों को विशेष अधिकार की वकालत की थी।
वरिष्ठ अधिवक्ता सुब्रमण्यम ने कहा कि जम्मू-कश्मीर और भारत के बीच यह व्यवस्था संघवाद का एक समझौता था। उन्होंने कहा कि संघवाद एक अलग तरह का सामाजिक अनुबंध है और अनुच्छेद-370 इस संबंध का ही एक उदाहरण है। वरिष्ठ अधिवक्ता ने पीठ से कहा कि इस संघीय सिद्धांत को अनुच्छेद-370 के अंतर्गत ही पढ़ा जाना चाहिए। इसे (अनुच्छेद 370) निरस्त नहीं किया जा सकता है। सुब्रमण्यम ने पीठ को बताया कि मामले में राष्ट्रपति द्वारा शक्ति का एकतरफा प्रयोग था।
370 का जम्मू-कश्मीर व भारत के बीच विशेष रिश्ता
वरिष्ठ अधिवक्ता जफर शाह ने पीठ को बताया कि अनुच्छेद-370 व इसके प्रावधानों का जम्मू कश्मीर और भारत के बीच एक विशेष रिश्ता है और इसे कायम रखा जाना चाहिए था।