दस्तक-विशेष

झारखंड में फिर हेमंत राज

झामुमो-कांग्रेस विधायकों के दबाव में बदला नेतृत्व

-रांची से उदय चौहान

हेमंत सोरेन ने झारखंड केसीएम के रूप में शपथ ले ली है। कुल 154 दिनों के बाद उन्होंने एक बार फिर यह दायित्व संभाला है। राजभवन में आयोजित एक सादे समारोह में राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। बता दें कि हेमंत सोरेन को इसी साल 31 जनवरी को ईडी ने जमीन घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तार किया था और उन्होंने उसी दिन रात 8.30 बजे सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था। उनकी जगह उनके मंत्रिमंडल में शामिल रहे चंपाई सोरेन ने 2 फरवरी को सीएम की कुर्सी संभाली थी। 28 जून को हाईकोर्ट से जमानत मिलने के बाद हेमंत सोरेन जेल से बाहर आए और उसके सातवें दिन ही उन्होंने एक बार फिर सीएम की कुर्सी संभाल ली। मुख्यमंत्री के रूप में यह उनका तीसरा कार्यकाल है। इसके पहले 29 दिसंबर 2019 को उन्होंने विधानसभा चुनाव में झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन की जीत के बाद दूसरी बार सीएम पद की शपथ ली थी। शपथग्रहण से ठीक पहले हेमंत सोरेन ने एक वीडियो संदेश जारी किया, जिसमें उन्होंने भाजपा पर निशाना साधा। उन्होंने अपने वीडियो संदेश में कहा कि पांच महीनों तक मुझे अलग-अलग तरीकों से लंबे समय तक जेल में रखने का प्रयास किया गया। हमने भी कानूनी लड़ाई का रास्ता अख्तियार किया।

अंततोगत्वा न्यायालय ने मुझे पाक-साफ करार देते हुए बरी कर दिया। आज पुन: मैं आपके सामने हूं। 2019 में आपने मुझे मौका दिया था लेकिन हमारे षड्यंत्रकारियों को यह पचा नहीं कि आदिवासी नौजवान कैसे इतने ऊंचे पदों पर जा सकता हैं। 31 जनवरी को झूठे केस बनाकर मुझे मुख्यमंत्री पद से हटाने के लिए मजबूर कर दिया गया। भगवान के घर देर होती है, अंधेर नहीं। लोकसभा चुनाव में आपने जिस झारखंडी एकता का परिचय दिया है, उसका मैं ऋणी रहूंगा। हम झारखंड के गरीब आदिवासी, दलितों की आवाज हैं। आपने मुझे सेवा का मौका दिया, हम आपके दरवाजे तक पहुंचने का प्रयास किये, लेकिन इन लोगों ने हमारे कदम रोकने के लिए एड़ी-चोटी एक कर दी। मैं फिर से आ रहा हूं, मैं हर वर्ग के लिए काम करूंगा।

चंपई सोरेन के सीएम बनने, पद छोड़ने और हेमंत को फिर से मुख्यमंत्री बनाने की कहानी जानने के लिए पीछे जाना होगा। 30 जनवरी 2024 को यह तय हो गया था कि ईडी हेमंत सोरेन को गिरफ्तार कर लेगी। इसके बाद गठबंधन के विधायकों की बैठक बुलाई गई। बैठक में चर्चा हुई थी कि हेमंत सोरेन के बाद सीएम कौन होगा। इस दौरान उनकी पत्नी कल्पना सोरेन का नाम भी आया। इस प्रस्ताव पर बहुमत कल्पना सोरेन के पक्ष में था लेकिन कुछ विधायकों ने बैठक से दूरी बना ली। यह भी संदेश दिया कि उन्हें कल्पना सोरेन पसंद नहीं हैं, इसी क्रम में चंपाई सोरेन का नाम सामने आया था। 31 जनवरी को ईडी ने हेमंत सोरेन को गिरफ्तार कर लिया था।

गिरफ्तारी के पूर्व हेमंत सोरेन ने चंपाई सोरेन का नाम सीएम पद के लिए फाइनल किया और वह मुख्यमंत्री बनाए गए थे। करीब 5 महीने बाद 28 जून को हाईकोर्ट ने हेमंत सोरेन को नियमित जमानत दे दी। हाईकोर्ट ने फैसले में जो टिप्पणी की थी, उससे ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि मामला शायद ही अभी सुप्रीम कोर्ट में जाए। इधर, चंपई सोरेन सरकार में कांग्रेस मंत्रियों विधायकों का काम उतनी सहजता से नहीं हो रहा था, जितना हेमंत सोरेन के कार्यकाल में हुआ करता था। कांग्रेस के साथ झामुमो के विधायकों का भी दबाव बदलाव को लेकर था। कांग्रेस के झारखंड प्रभारी गुलाम अहमद मीर, हेमंत सोरेन से जेल में भी मिले थे।

वहीं बताया जा रहा है कि सोनिया गांधी ने भी हेमंत से बातचीत कर अपनी भावना से अवगत करा दिया था। सोनिया गांधी की सलाह थी कि लोकसभा चुनाव में झारखंड में इंडिया ब्लॉक को जो कामयाबी मिली है उसके पीछे हेमंत सोरेन का ही चेहरा रहा है इसलिए विधानसभा चुनाव भी उनके चेहरे पर लड़ा जाना चाहिए। इंडिया ब्लॉक को लगता था कि चंपाई सोरेन के सीएम रहते वोटरों में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इस प्रकार घटनाक्रम बदलते गए और गठबंधन नेताओं के दबाव में चंपाई सोरेन को पद से इस्तीफा देना पड़ा। सत्ता के गलियारे में यह चर्चा भी है कि हेमंत सोरेन खुद भी मुख्यमंत्री बनना चाह रहे थे। हालांकि यह भी बताया जा रहा है कि सत्ता परिवर्तन के फैसले से चंपाई सोरेन खुश नहीं हैं। विधायक दल की बैठक में उनके चेहरे पर इसका तनाव साफ दिख रहा था लेकिन उन्होंने पार्टी के एक अनुशासित सिपाही के तौर पर बतौर सीएम पांच महीने काम किया और फैसले पर राजी हो गए।

कोल्हान में झामुमो की राजनीति पर पड़ सकता है असर
मुख्यमंत्री पद से चंपाई सोरेन के इस्तीफे के बाद झामुमो की राजनीति को भी झटका लगा है। इसका असर कोल्हान पहुंच सकता है। कोल्हान में झामुमो की राजनीति प्रभावित हो सकती है। चंपाई सोरेन कोल्हान प्रमंडल से आते हैं और कोल्हान के टाइगर भी कहलाते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में कोल्हान में झामुमो ने सबसे बेहतर प्रदर्शन किया था। इस प्रमंडल में भाजपा का खाता तक नहीं खुला था लेकिन चंपाई सोरेन के हटने के बाद उनके समर्थक मतदाताओं और कार्यकर्ताओं का उत्साह कमजोर हुआ तो इसका असर विधानसभा चुनाव पर दिख सकता है। मालूम हो कि पिछले विधानसभा चुनाव में कोल्हान के बाद संथाल परगना ने झामुमो को मजबूत सपोर्ट दिया था। इन्हीं दोनों प्रमंडल में मिली सफलता ने झामुमो को सत्ता की सीढ़ी तक पहुंचने में मदद की थी अन्यथा अन्य प्रमंडलों में झामुमो को एक-दो सीटों पर ही सफलता मिली थी। लेकिन लोकसभा चुनाव परिणाम से झामुमो संथाल परगना को लेकर फिलहाल चिंतित भी बताया जा रहा है। अब उसके सिर पर कोल्हान का अतिरिक्त है दबाव आ सकता है।

सियासी विरासत संभाल रहे हेमंत
महाजनी प्रथा और झारखंड आंदोलन के अग्रणी शिबू सोरेन की दूसरी संतान हेमंत सोरेन को सिसायत विरासत में मिली है। अपनी उच्च शिक्षा बीच में ही छोड़ छात्र जीवन से राजनीति में उतर आए। अपने बड़े भाई दुर्गा सोरेन की अकाल मृत्यु के बाद हेमंत सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा और प्रदेश की सियासत की धुरी बन गये। 2019 विधानसभा में झामुमो द्वारा विशाल जीत हासिल करने के बाद महागठबंधन के साथ मिलकर हेमंत सोरेन ने झारखंड की सत्ता संभाली। कोरोना काल में अपने कार्यों से पूरे देश को प्रभावित करने और नाम कमाने के बाद उनका कद और बढ़ा। साल 2022 में कांग्रेस के तीन विधायकों के पास पैसा मिलना और सरकार को अस्थिर करने की कोशिशों के दौरान हेमंत सोरेन मजबूती के साथ खड़े रहे। इसके 2023 में जमीन घोटाले में उनका नाम आने के बाद प्रदेश की सियासी और झामुमो परिवार में जैसे भूचाल आ गया। इस कारण उन्हें 31 जनवरी 2024 को ईडी द्वारा गिरफ्तार किया गया। अपनी गिरफ्तारी से पहले उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
इन तमाम झंझावातों और कानूनी लड़ाई के बाद 28 जून 2024 को आखिरकार उन्हें जमानत मिली और वे जेल से बाहर आए। जेल से बाहर आने के एक हफ्ते के अंदर एक बार फिर से हेमंत सोरेन की मुख्यमंत्री पद पर वापसी हो रही है।


तीसरी बार हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे हैं। राज्यसभा सदस्य और उपमुख्यमंत्री की कुर्सी से होते हुए उन्हें झारखंड की कमान मिल रही है। शिबू सोरेन के मंझले बेटे हेमंत सोरेन बीआईटी मेसरा के छात्र रहे हैं लेकिन उन्होंने पढ़ाई अधूरी छोड़ दी। राजनीतिक महत्वकांक्षा ने उन्हें सियासी मैदान में उतार दिया। हेमंत पहली बार विधानसभा चुनाव 2005 में दुमका सीट से लड़े लेकिन जेएमएम के बागी स्टीफन मरांडी से हार गए। इसके बाद विधानसभा चुनाव 2009 में उन्होंने जीत दर्ज की। विधानसभा चुनाव 2009 के बाद बीजेपी-जेएमएम के बनते बिगड़ते रिश्तों से राज्य में दो बार राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा। इसी दौरान 2010 में गठबंधन की अर्जुन मुंडा सरकार में वे उपमुख्यमंत्री बनाए गए। हालांकि बाद में उन्होंने समर्थन वापस ले लिया और अर्जुन मुंडा को इस्तीफा देना पड़ा। गठबंधन सरकार से समर्थन वापस लेकर राज्य में संवैधानिक संकट खड़ा करने को लेकर मीडिया में हेमंत सोरेन की खूब किरकिरी हुई। हालांकि हेमंत सरकार बनाने की कोशिश करते रहे और आखिरकार कांग्रेस को समर्थन के लिए राजी कर लिया।

2003 में छात्र राजनीति से की शुरुआत
हेमंत सोरेन ने 2003 में छात्र राजनीति में कदम रखा था। वहीं, 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन दुमका विधानसभा सीट से जेएमएम के अधिकृत प्रत्याशी के रूप में उतरे, लेकिन उन्हें शिबू सोरेन के पुराने साथी स्टीफन मरांडी ने हरा दिया। दुमका विधानसभा सीट से स्टीफन मरांडी जेएमएम के प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ते और जीतते रहे। 2005 में पार्टी ने मरांडी की जगह हेमंत को उतारा। इसी वजह से स्टीफन मरांडी बागी होकर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतर गए और उनकी जीत हुई। वहीं, साल 2009 में हेमंत सोरेन के बड़े भाई दुर्गा सोरेन की मौत हो गई। उसी साल हुए विधानसभा चुनाव में उन्होंने पहली बार दुमका विधानसभा सीट से जीत दर्ज की। उस समय हेमंत राज्यसभा सदस्य थे। विधानसभा चुनाव में जीत के बाद उन्होंने राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया। 2010 में बीजेपी और जेएमएम गठबंधन से बनी सरकार में वह उप मुख्यमंत्री बने।

झारखंड के नौवें मुख्यमंत्री बने हेमंत सोरेन
हेमंत सोरेन 38 साल की उम्र में 2013 में प्रदेश की कमान संभाली थी। राज्य के संथाल परगना इलाके के बरहेट विधानसभा से दूसरी बार विधायक बने सोरेन पूर्ववर्ती भाजपा-झामुमो गठबंधन में उप मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। साथ ही थोड़े समय के लिए राज्यसभा सदस्य भी रहे हैं। सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा के सुप्रीमो और झारखंड आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले शिबू सोरेन की दूसरी संतान हैं। 13 जुलाई 2013 को हेमंत सोरेन ने झारखंड के नौवें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। हेमंत को कांग्रेस, आरजेडी, अन्य छोटे दलों के तीन और चार निर्दलीय विधायकों समेत कुल 43 विधायकों का समर्थन मिला। कांग्रेस ने इससे पहले भी जेएमएम का समर्थन किया था लेकिन कभी खुद सरकार में शामिल नहीं हुई। इस बार हेमंत कांग्रेस को मंत्रिमंडल में शामिल करने में कामयाब हुए। इतना ही नहीं, उन्होंने आरजेडी को भी सरकार में शामिल कर लिया। साल 2009 में कांग्रेस और आरजेडी के अलग होने के बाद यह पहला मौका था, जब दोनों ने हेमंत सरकार की मदद के लिए हाथ मिलाया। हेमंत ने 13 जुलाई 2013 से 28 दिसंबर 2014 तक राज्य में शासन किया।

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