उत्तराखंड

उत्तराखंड में दिखाई दिया विलुप्त हो रहे गिद्धों का झुंड, जैवविविधता के लिए सुखद संकेत

उत्तरकाशी(लोकेन्द्र सिंह बिष्ट): आज बात करते हैं विलुप्ति के कगार पर गिद्धों के बारे में। प्रकृति और मानव जीवन के बीच एक स्थायी संबंध है। हम अपने भोजन और स्वास्थ्य के लिए स्वस्थ, विविध प्राकृतिक प्रणालियों पर निर्भर हैं। प्रकृति ने हमे सब कुछ दिया है।हम वास्तव में, प्रकृति से लाभ लेते हैं ।। यह एक तत्काल आवश्यकता है। यह दिन प्रकृति को धन्यवाद देने के लिए भी मनाया जाता है। जैव-विविधता “जैविक” और “विविधता” दो शब्दों से उत्पन्न हुआ है। यह सभी प्रकार के जीवन को संदर्भित करता है जो पृथ्वी पर पाए जाते हैं जैसे पौधों, जानवरों, कवक और सूक्ष्म जीव। इसके अलावा, यह उन समुदायों को भी संदर्भित करता है जो वे बनाते हैं और जिन आवासों में वे रहते हैं।

हम कह सकते हैं कि जैव विविधता एक दूसरे के साथ और बाकी पर्यावरणों के साथ जीवन रूपों और उनके परस्पर संबंधों का संयोजन है जिसने पृथ्वी को मनुष्यों के लिए एक अद्वितीय निवास स्थान बना दिया है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि जैव विविधता हमारे जीवन को बनाए रखने वाली बड़ी संख्या में सामान और सेवाएं प्रदान करती है। तकनीकी प्रगति के बावजूद दुनिया में पूरा समुदाय हमारे स्वास्थ्य, पानी, भोजन, दवा, कपड़े, ईंधन इत्यादि के लिए पूरी तरह से स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र पर निर्भर है। प्रकृति के साथ सद्भाव में जीवन का भविष्य बनाना अनिवार्य है।

उत्तराखंड व उत्तरकाशी में विश्व जैव विविधता दिवस को प्रकृति के साथ सामंजस्य बैठाना व प्रकृति व प्राकृतिक आवास में विचरण करने वाले सभी जीवों की रक्षा करने के साथ गंगा विचार मंच द्वारा मनाया जाता है। बचपन मे पहाड़ों में गिद्धों की संख्या अच्छी खासी थी। ग्रामीण क्षेत्रों में कोई भी घरेलू जानवर या मवेशी जैसे ही मर जाता था आसमान में गिद्ध रेंगने लगते थे, देखते ही देखते गिद्धों की अच्छी ख़ासी फ़ौज मृत जानवर के पास आ जाती थी।

हमारे लिय गिद्धों का आसमान से ज़मीन पर उतरना और बड़े बड़े पंखों को फड़फड़ाते हुए आसमान में उड़ जाना एक कौतूहल पैदा करता था। हम लोग रोमांचित होते थे। देखते देखते गिद्व भी गायब हो गये। इन 30 वर्षों के बाद पिछले 4 -5 वर्षों से पहाड़ों में गिद्ध लौटने लगे हैं। एक गाना है ,,,,पंछी बनूं उड़ के फिरूं मस्त गगन में,,, पंछी तो पंछी है चाहे भले वो गिद्ध ही क्यों न हों,,,जी हां। एक अच्छी खबर,,लगभग विलुप्त प्रायः गिद्ध फिर से दिखने लगे हैं पहाड़ में।

28 जनवरी को देहरादून में भारतीय वन्य जीव संस्थान में एक मीटिंग में जाते समय गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग के नाकुरी के पास बड़ी संख्या में गिद्ध की टोली एक मृत जानवर के आस पास थी जो कि पर्यावरण के लिये एक अच्छी खबर है। दरअसल गिद्ध पिछले 15- 20 वर्षो से गायब ही हो गए थे। पारस्थितिकी तंत्र के लिये गिद्ध का होना बहुत जरूरी है। गिद्ध के विलुप्त होने के कई कारण हैं,, जिनमे एक जहर भी है। दरअसल पहाड़ के लोग बाघ को अपना और अपने मवेशियों के जानी दुश्मन मानते है। आये दिन पहाड़ में बड़ी संख्या में लोगो के घरेलू पशु बाघ का शिकार बनते है,,यही नही इंसान भी बाघ का शिकार होते रहते हैं।

इसलिये बाघ इंसान का जानी दुश्मन है। गुस्से में लोग मृत जानवर पर जहर डाल देते थे ताकि उनका जानी दुश्मन बाघ मर जाय। बाघ मरे न मरे लेकिन गिद्ध जरूर मर गए, विलुप्त हो गए और इस जहर का शिकार हो गए। आज फिर से गिद्धों का दिखना एक सुखद अनुभूति हुई।

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