विरासत ढही, विश्वास जीता, फिर नीतीश, तेजस्वी विपक्ष के भी लायक नहीं

आरजेडी 25 से 26 सीटों में सिमटी, नेता प्रतिपक्ष की शर्त भी पूरी नहीं, महिला वोटिंग से एनडीए को बड़ी बढ़त, एमवाई समीकरण ध्वस्त, कांग्रेस गठबंधन और गलत रणनीति ने बिगाड़ी पूरी तस्वीर, 2010 की पुनरावृत्ति, फिर आरजेडी का पतन, जेडयू – बीजेपी का उभार, राघोपुर में तेजस्वी पिछड़े, तेज प्रताप चौथे नंबर पर खिसके
–सुरेश गांधी
वाराणसी : बिहार की राजनीति में 2025 का जनादेश एक निर्णायक मोड़ लेकर आया है। चुनाव परिणामों ने साफ कर दिया कि राज्य की जनता ने एक बार फिर स्थिरता, अनुभव और विश्वसनीयता को तरजीह दी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर भरोसा बरकरार रखते हुए एनडीए को प्रचंड बहुमत मिला है। जेडयू बीजेपी गठबंधन का यह प्रदर्शन 2010 की याद दिलाता है, जब बिहार ने विकास और सुशासन के नाम पर नीतीश को ऐतिहासिक समर्थन दिया था। इसके उलट तेजस्वी यादव की राजनीति इस बार पूरी तरह धराशायी हो गई। आरजेडी 25 से 26 सीटों के आसपास सिमट गयी है, जो नेता प्रतिपक्ष बनने की न्यूनतम 24 सीटों की शर्त से भी मुश्किल से ऊपर है। यह स्थिति बताती है कि तेजस्वी न तो सत्ता की दौड़ में टिक पाए और न ही एक मजबूत विपक्ष देने की स्थिति में लौट सके। राघोपुर में पिछड़ना और महुआ में तेज प्रताप का चौथे स्थान पर खिसकना “विरासत की राजनीति” के अवसान का संकेत है।
कांग्रेस गठबंधन, सीट बंटवारे की गलतियां, मुकेश सहनी को बढ़ा महत्व देना, और महिलाओं व युवा मतदाताओं तक संदेश न पहुंचना, इन सबने मिलकर आरजेडी का सूपड़ा साफ कर दिया। उधर एनडीए को महिला वोटरों, युवा समर्थन और मोदी – नीतीश की संयुक्त स्वीकार्यता का बड़ा लाभ मिला। जनादेश का संदेश साफ है, बिहार विवाद नहीं, विश्वास चाहता है। इसलिए फैसले की रेखा यही कहती है, “फिर नीतीश, फिर स्थिर सरकार”। मतलब साफ है बिहार के नतीजों ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया कि राजनीति सिर्फ नारों और वादों का खेल नहीं, बल्कि जनविश्वास, स्थिरता, और जमीनी पकड़ का नाम है। इस बार का जनादेश न केवल एनडीए के पक्ष में आया है, बल्कि उसने यह भी स्पष्ट संदेश दिया है कि बिहार की राजनीति में अनुभव और भरोसे के सामने भावनात्मक और आक्रामक राजनीति की सीमा बहुत छोटी है।

तेजस्वी के ‘सीएम’ सपने से आगे बढ़कर अब ‘विपक्ष’ भी दूर
तेजस्वी यादव ने इस चुनाव में मुख्यमंत्री बनने का सपना खुलकर देखा, भाषणों में दावा किया, प्रचार में ऊर्जा झोंकी, लेकिन नतीजों ने उनकी राजनीतिक जमीन को पहले से भी संकरी कर दिया है। आरजेडी 25 – 26 सीटों पर ही सिमट गयी, जबकि नेता प्रतिपक्ष बनने के लिए न्यूनतम 24 विधायकों की आवश्यकता है। यानी हालात ऐसे बन रहे हैं कि तेजस्वी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी तक से दूर हो सकते हैं, जो न केवल राजनीतिक झटका है, बल्कि भविष्य की रणनीति के लिए बड़ा संकेत भी। यह परिदृश्य 2010 की जैसी कड़वी हार की याद दिलाता है, जब आरजेडी 168 सीटों पर लड़कर सिर्फ 22 सीटें जीत सकी थी और नेता प्रतिपक्ष का पद भी हाथ से चला गया था।
नीतीश- मोदी फैक्टर : अनुभव और नेतृत्व का संयुक्त असर
इस चुनाव ने ‘सीएम कौन बनेगा?’ का सवाल लगभग खत्म कर दिया है। एनडीए की प्रचंड विजय और जेडयू बीजेपी के संयुक्त प्रदर्शन ने यह साबित कर दिया है बिहार में “महाराष्ट्र मॉडल” की राजनीति की कोई गुंजाइश नहीं. नीतीश कुमार का अनुभव और स्थिरता आज भी विकल्पहीन. बीजेपी का संगठन मजबूत, पर ‘स्वीकार्य चेहरा’ अभी भी नीतीश कुमार ही, 2020 में जेडयू की सीटें गिरीं, तो नीतीश की स्थिति कमजोर कही गई। लेकिन 2025 में आंकड़ों ने यह भ्रम तोड़ दिया, नीतीश न केवल अपने कोर वोट बैंक को बचाने में सफल रहे, बल्कि बीजेपी जेडयू का सामाजिक समीकरण भी और मजबूत होकर उभरा। बीजेपी इस चुनाव में शानदार स्ट्राइक रेट लेकर आई है, पर बिहार में आज भी देवेंद्र फडणवीस जैसा सर्वमान्य चेहरा नहीं उभर पाया है। यही वजह है कि भाजपा के लिए नीतीश की स्वीकार्यता ही सबसे सुरक्षित और व्यावहारिक विकल्प है।

तेजस्वी की रणनीति कहाँ चूक गई? पांच बड़े कारण
- कांग्रेस को साथ लेकर की पहली गलती : कांग्रेस का बिहार में न ज़मीन है न नेटवर्क। आरजेडी ने सीट शेयरिंग में कांग्रेस को ज़रूरत से ज़्यादा महत्व दिया, जिसका सीधा नुकसान हुआ। कांग्रेस ने कई जगह आरजेडी के पारंपरिक वोट बैंक को ही काटा, लेकिन खुद जीत नहीं सकी।
- सीट बंटवारे में राहुल – प्रियंका के ‘इंतज़ार’ में समय गंवाया : तेजस्वी महीनों तक कांग्रेस हाईकमान के इशारे का इंतज़ार करते रहे। जमीन छोड़कर दिल्ली के चक्कर लगाने का परिणाम, जमीनी तैयारी कमजोर, संगठन में नाराज़गी, कई मजबूत सीटें हाथ से निकल गईं.
- मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम का ऑफर देकर अपने वोट बैंक को नाराज़ कर दिया, वीआईपी को 10$ सीटें देना और डिप्टी सीएम का वादा करना आरजेडी के लिए भारी पड़ा। सहनी का प्रभाव सीमित है, लेकिन आरजेडी का कोर एमवाई वोट बैंक इस सत्ता-समझौते से असहज हुआ।
- ‘वोट चोरी , ईवीएम हैकिंग जैसे मुद्दों में उलझ गए, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे जनहित मुद्दों की जगह तेजस्वी ने “वोट चोरी”, “वोट हैकिंग” जैसे आरोपों को प्रमुख मुद्दा बनाया, जिसने जनता में यह संदेश दिया कि आरजेडी पहले ही हार मान चुकी है। एनडीए ने इसे जोरदार तरीके से भुनाया।
- महिलाओं की ऐतिहासिक वोटिंग आरजेडी के खिलाफ गई. इस चुनाव में रिकॉर्ड महिला वोटिंग हुई, और इसका सीधा लाभ एनडीए को मिला, शराबबंदी, साइकिल योजना, आरक्षण, सुरक्षा और योजनाओं की विश्वसनीयता, तेजस्वी के ‘10 लाख नौकरी’ का नारा महिलाओं तक नहीं पहुंच पाया, जबकि नीतीश की स्कीमें परिवार तक पहुंच चुकी थीं।
विरासत पर चोट, दोनों भाइयों की हार
तेजस्वी यादव राघोपुर जैसे परंपरागत गढ़ में पिछड़ गए, और महुआ सीट पर तेज प्रताप चौथे स्थान पर खिसक गए। यह न सिर्फ आरजेडी की राजनीतिक गिरावट का संकेत है, बल्कि यादव परिवार की विरासत पर भी प्रश्नचिह्न है।

बिहार से बंगाल तक गूंज, “अब बंगाल की बारी”
बिहार में एनडीए की धमाकेदार वापसी ने बंगाल की राजनीति को भी हलचल में ला दिया है। सुवेंदु अधिकारी का बयान, “एक ही नारा है, बिहार की जीत हमारी है, अब बंगाल की बारी है.” ममता बनर्जी के लिए स्पष्ट संदेश है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में एनडीए पहले से कहीं अधिक आक्रामक होगी।
मोदी का संकेत, ‘14 को विजयोत्सव’
प्रधानमंत्री मोदी ने औरंगाबाद में ही संकेत दे दिया था, “14 तारीख को विजयोत्सव मनाइए” और आज नतीजों ने उस संकेत को पूरी तरह सही साबित कर दिया।
नीतीश की वापसी, एक बार फिर अनुभव और स्थिरता की जीत
2025 के परिणाम 2010 की जीत की याद दिलाते हैं, तब जेडीयू ने 115 सीटें, बीजेपी ने 90$ सीटें जीती थीं, इस बार का मतदान पैटर्न भी वैसा ही दिख रहा है, ग्रामीण से शहरी तक एनडीए को व्यापक समर्थन।
बिहार जनादेश विकास व राष्ट्र प्रथम
बिहार का मतदाता इस बार किसी प्रयोग या अस्थिरता के पक्ष में नहीं था। एनडीए को मिली जीत सिर्फ एक गठबंधन की जीत नहीं, बल्कि, नीतीश के अनुभव, बीजेपी के संगठन और नरेंद्र मोदी की नेतृत्व विश्वसनीयता का संयुक्त परिणाम है। तेजस्वी यादव को अब यह समझना होगा कि राजनीति घोषणा पत्रों और नारों से नहीं, बल्कि रणनीति, विश्वसनीयता और स्थिरता से चलती है। बिहार का जनादेश कह रहा है, “विकास और स्थिरता की राजनीति ही भविष्य का रास्ता है।”



