देहरादून (गौरव ममगाईं)। उत्तराखंड के देहरादून में चारदिवसीय छठवां राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन सम्मेलन आज (एक दिसंबर) को संपन्न हो गया। सम्मेलन में देश-विदेश के बड़े वैज्ञानिक एवं विशेषज्ञों ने आपदा के कारण, स्वरूप एवं प्रबंधन की तकनीकों गहन मंथन किया। यह निष्कर्ष निकला कि आपदा से सबसे ज्यादा प्रभावित हिमालयी राज्य हैं, जिनमें उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, अरूणाचल प्रदेश, सिक्किम जैसे कई राज्य हैं। इन राज्यों में आपदा का मुख्य कारण ‘जलवायु परिवर्तन’ को भी माना गया। विशेषज्ञों ने उत्तराखंड समेत सभी राज्यों में कॉप-26 के लक्ष्यों को पूरा करने पर भी जोर दिया।
आज जलवायु परिवर्तन दुनिया की सबसे बड़ी समस्या बनकर सामने आ रहा है। यह सूखा, बाढ़, भूस्खलन व भूकंप जैसी आपदाओं का कारण बन रहा है। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली जैसे विकसित देश भी इससे अछूते नहीं हैं। भारत पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है, भारत में उत्तर व पूर्वोत्तर राज्य की भौगोलिक संरचना पर्वतीय है। यहां जलवायु परिवर्तन का पर्यावरण पर बुरा असर पड़ता है, जिसका दुष्परिणाम हमें कई तरह की आपदाओं के रूप में देखने को मिलता है। हिमालयी राज्य उत्तराखंड की बात करें तो यह देश का सबसे ज्यादा आपदा प्रभावित राज्य माना जाता है। 2013 में केदारनाथ आपदा भी उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में आई थी, जो देश की सबसे बड़ी एवं विनाशकारी प्रलय थी। उत्तराखंड के सीएम धामी ने कहा कि उत्तराखंड में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान की स्थापना जल्द होगी।
कार्बन उत्सर्जन शून्य करने पर भी जोर दियाः
सम्मेलन में वैज्ञानिकों ने ग्लास्गो सम्मेलन में हुए कॉप-26 सम्मेलन के लक्ष्यों को लागू करने पर भी जोर दिया। कहा कि जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करना है तो कार्बन उत्सर्जन को रोकना होगा। यह भी बल दिया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा निर्धारित 2070 तक देश को कार्बन मुक्त करने के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में अभी से प्रयास करने चाहिए। बता दे कि संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों की 2021 में कॉप-26 बैठक हुई थी, जिसमें अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन जैसे बड़े देशों ने 2050 तक कार्बन शून्य होने का लक्ष्य तय किया था, जबकि भारत ने 2070 तक का लक्ष्य रखा है। आज यानी 1 दिसंबर से यूएई में कॉप-28 शुरू होने जा रहा है, जिसमें भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हिस्सा लेंगे।
उत्तराखंड आपदा की दृष्टि से क्यों है संवेदनशील
दरअसल, उत्तराखंड ऐसा राज्य है जिसका विस्तार हिमालय की चार पर्वत श्रेणियों में है। उत्तरकाशी, चमोली व पिथौरागढ़ का ऊपरी कुछ हिस्सा ट्रांस हिमालय में है, जबकि अधिकांश भाग महान हिमालय (ग्रेट हिमालय) में है। जबकि, रुद्रप्रयाग, अल्मोड़ा, टिहरी का बागेश्वर व कई अन्य पर्वतीय जिलों का आंशिक हिस्सा मध्य हिमालय (लघु हिमालय) व देहरादून, नैनीताल, टिहरी का निचला हिस्सा, नैनीताल, हरिद्वार शिवालिक हिमालय में है। ट्रांस हिमालय व महान हिमालय पर्वत श्रेणी को टेथिस भ्रंश अलग करती है।
इसी तरह महान हिमालय व मध्य हिमालय को मुख्य केंद्रीय भ्रंश (मेन सेंट्रल थ्रस्ट) और मध्य हिमालय व शिवालिक पर्वत श्रेणी को मुख्य सीमांत भ्रंश (मेन बाउंड्री थ्रस्ट) अलग करती है। भ्रंश को भूकंप की दृष्टि से अतिसंवेदनशील माना जाता है। वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार, टिहरी बांध के नीचे मुख्य सीमांत भ्रंश गुजरती है, जो कि आपदा की दृष्टि से चिंता का विषय है। यही सब कारण हैं कि उत्तराखंड के 5 जिलों को राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने कैटेगरी-5 (सबसे खतरे वाले जिले) मे रखा है।
जाहिर है कि उत्तराखंड जैसे सबसे ज्यादा आपदा प्रभावित राज्य उत्तराखंड में छठवें राष्ट्रीय आपदा सम्मेलन का होना इसके उद्देश्य को और सार्थक बनाता है। वहीं, सम्मेलन में हुए मंथन से निकला निष्कर्ष देश ही नहीं, दुनिया के लिए भी सार्थक सिध्द होगा। यहां हिमालयी राज्यों में आपदा से निपटने की तकनीक एवं रणनीति तैयार होगी, जो पर्वतीय भौगोलिक परिस्थिति वाले अन्य देशों के लिए भी आपदा प्रबंधन में मददगार साबित होगी।