नगर निकाय चुनाव में निराशाजनक प्रदर्शन से बसपा के पुनरुत्थान की उम्मीदें धराशायी
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में नगरपालिका चुनाव के नतीजों ने बहुजन समाज पार्टी के पुनरुत्थान की उम्मीदों को धराशायी कर दिया है। बसपा को शहरी स्थानीय निकाय चुनाव में करारा झटका लगा। वह मेयर की एक भी सीट जीतने में विफल रही। नगर पालिका परिषद (एनपीपी) और नगर पंचायत (एनपी) अध्यक्ष पदों पर भी पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा।
2017 के निकाय चुनावों में, बसपा ने मेरठ और अलीगढ़ मेयर की सीटों पर जीत हासिल की थी, लेकिन 2023 के चुनाव में दोनों सीटों पर वह तीसरे स्थान पर रही। पार्टी के लिए एकमात्र राहत की बात यह रही कि उसके उम्मीदवार आगरा, सहारनपुर और गाजियाबाद मेयर की सीटों पर दूसरे स्थान पर रहे।
बसपा ने शहरी स्थानीय निकाय चुनाव में दलित-मुस्लिम कार्ड खेला था। मेयर पद की 17 सीटों में से बसपा ने 11 पर मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था। बसपा प्रमुख मायावती ने ज्यादा से ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देकर निकाय चुनाव में मुस्लिम समुदाय का समर्थन हासिल करने और 2024 के लोकसभा चुनाव में इस रुझान को जारी रखने की योजना बनाई थी।
2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अपने निराशाजनक प्रदर्शन पर मायावती ने मुसलमानों को जिम्मेदार ठहराया था।
उन्होंने कहा था, बसपा ने 2022 के विधानसभा चुनाव में 12 फीसदी वोट हासिल किया था, जो उसके मुख्य दलित समर्थक हैं। अगर मुस्लिम समुदाय ने चुनाव में बसपा का समर्थन किया होता, तो वह भाजपा को हरा सकती थी।
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि इन चुनावों में बसपा को जिस तरह के नतीजे मिले हैं, उसके लिए मुख्य रूप से पार्टी कार्यकर्ताओं का नेतृत्व से मोहभंग होना कारण है।
पार्टी ने विचारधारा के संदर्भ में दिशा खो दी है और कोई दूसरी पंक्ति का नेतृत्व नहीं है जो जमीनी कार्यकर्ताओं के साथ कनेक्ट कर सके। ऐसे में कैडर राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेने से इनकार कर रहे हैं और अपने घरों में बैठ रहे हैं।