हवनकुंड से कैसे हुआ था द्रौपदी का जन्म? शिवजी से मिला था विशेष वरदान
नई दिल्ली : महाभारत के सभी पात्रों का इतिहास बहुत ही रोचक रहा है. महाभारत में पांडवों और कौरवों के साथ-साथ द्रौपदी भी मुख्य पात्रों में से एक थीं. कई विद्वानों का मानना है कि महाभारत के युद्ध का महत्वपूर्ण कारण द्रौपदी ही थीं. द्रौपदी के अपमान का बदला लेने के लिए पांडवों ने कौरवों के साथ महाभारत का युद्ध किया था.
हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार, आज भी कई गांवों में द्रौपदी को काली का अवतार माना जाता है क्योंकि द्रौपदी का जन्म हवनकुंड से हुआ था, इसलिए भारत के कुछ गांवों में आज भी द्रौपदी की देवी समान पूजा की जाती है.
महाभारत में बताया गया है कि पांचाल देश के राजा द्रुपद ने गुरु द्रोणाचार्य से अपने अपमान का बदला लेने के लिए यज्ञ करवाया था. इसी यज्ञ के हवनकुंड की अग्नि से द्रौपदी प्रकट हुई थीं. यज्ञ से उत्पन्न होने के कारण ही द्रौपदी को यज्ञसेनी भी कहा जाता है. पांचाल देश की राजकुमारी होने के कारण द्रौपदी पांचाली भी कहलाईं.
भगवान शिव से द्रौपदी को आजीवन कौमार्य का वरदान प्राप्त था और द्रौपदी के पूर्वजन्म में मिले शिवजी के आशीर्वाद के कारण ही द्रौपदी पांडवों की पत्नी बनीं. महाभारत के अनुसार, जब कौरवों ने भरी सभा में द्रौपदी को लज्जित करना चाहा, तब क्रोधित द्रौपदी ने कौरवों के समूल वंश के नाश की कसम खाई थी.
दक्षिण भारत के कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु राज्य के कुछ गांवों में देवी द्रौपदी पूजनीय हैं. इन राज्यों के गांवों में द्रौपदी को मां काली का अवतार माना जाता है. इन गांवों में अम्मन नाम से देवी द्रौपदी की पूजा की जाती है. यहां देवी द्रौपदी के 400 से अधिक मंदिर है.
देवी द्रौपदी को ग्राम देवी के रूप में बहुत ही अधिक सम्मान दिया जाता है. इन गांवों के लोगों का विश्वास है कि ग्राम देवी द्रौपदी यहां के सभी गांवों की रक्षा करती हैं.