कैसे होता है साधु-संतों का अंतिम संस्कार, स्वामी स्वरूपानंद को दी जाएगी भू- समाधि
नरसिंहपुर : ज्योतिर्मठ बद्रीनाथ और शारदा पीठ द्वारका के जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (Jagatguru Shankaracharya Swami Swaroopanand Saraswati) का गत दिवस निधन हो गया और आज यानि सोमवार शाम को झोतेश्वर के परमहंसी गंगा आश्रम में उन्हें भू-समाधि (mausoleum) दी जाएगी।
आपको बता दें कि ज्योतिर्मठ बद्रीनाथ और शारदा पीठ द्वारका के जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का दाह संस्कार करने की बजाय उन्हें जमीन में दफनाया जाएगा। यह प्रक्रिया एक खास तरीके से पूरी की जाती है, जिसे भू-समाधि कहते हैं।
संत परम्परा में अंतिम संस्कार उनके सम्प्रदाय के अनुसार ही तय होता है। वैष्णव संतों को ज्यादातर अग्नि संस्कार दिया जाता है, लेकिन सन्यासी परंपरा के संतों के लिए तीन संस्कार बताए गए हैं। इन तीन अंतिम संस्कारों में वैदिक तरीके से दाह संस्कार तो है ही इसके अलावा जल समाधि और भू-समाधि भी है। कई बार संन्यासी की अंतिम इच्छा के अनुसार उनकी देह को जंगलों में छोड़ दिया जाता है।
विदित हो कि वृंदावन के प्रमुख संत देवरहा बाबा को जल समाधि दी गयी थी, जबकि दूसरे अन्य कई संतों का अंतिम संस्कार भी इसी तरह हुआ। बाबा जयगुरुदेव को अंतिम विदाई दाह संस्कार के जरिए दी गई थी. हालांकि इस पर विवाद भी हो गया था। तब जयगुरुदेव आश्रम के प्रमुख अनुयायियों ने कहा था कि बाबा की इच्छा के अनुरूप ही वैदिक तरीके से उनका दाह संस्कार किया जा रहा है। रामायण, महाभारत और अन्य हिंदू पौराणिक ग्रंथों में भारतीय संतों को जल समाधि देने का ही जिक्र आता है।
संन्यासी परंपरा में जरूर जल या भू-समाधि देने की परिपाटी रही है, लेकिन वैष्णव मत में पहले भी कई बड़े संतों का अग्नि संस्कार किया गया है। वैसे आमतौर पर साधुओं को पहले जल समाधि दी जाती थी, लेकिन नदियों का जल प्रदूषित होने के चलते अब आमतौर पर उन्हें जमीन पर समाधि दी जाती है।
भू समाधि में साधू को समाधि वाली स्थिति में बिठाकर ही उन्हें विदा दी जाती है। जिस मुद्रा में उन्हें बिठाया जाता है, उसे सिद्ध योग की मुद्रा कहा जाता है. आमतौर पर साधुओं को इसी मुद्रा में समाधि देते हैं। साधुओं और संतों को ध्यान और समाधि की स्थिति में बिठाकर भू समाधि देने की वजह ये भी होती है कि साधु संतों का शरीर ध्यान आदि से खास ऊर्जा से युक्त रहता है। इसीलिए भू समाधि देने पर उनके शरीर को प्राकृतिक तौर पर प्रकृति में मिलने दिया जाता है।
वहीं अघोरी साधु जीवित रहते हुए ही अपना अंतिम संस्कार कर देते हैं। अघोरी को साधु बनने की प्रक्रिया में सबसे पहले अपना अंतिम संस्कार करना होता है।