दिवाली पर कितने दिए जलाना होता है शुभ ? जानिए
भोपाल :हिंदू धर्म में दिवाली का त्योहार बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। दिवाली के पर्व को प्रकाश का उत्सव माना जाता है। इस पर्व में दीये जलाने का बहुत महत्व होता है। रोशनी का पर्व माना जाने वाला यह पर्व साल के सबसे बड़े त्यौहारों में से एक होने के साथ देश में मनाया जाने वाला एक सबसे बड़ा पर्व भी होता है।
पंचांग के अनुसार इस साल दिवाली 12 नवंबर, रविवार को पड़ेगी। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान राम 14 वर्ष के वनवास के बाद देवी सीता और लक्ष्मण जी के साथ अयोध्या लौटे थे। साथ ही इसी दिन समुद्र मंथन के दौरान देवी लक्ष्मी का जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन धन की देवी मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा करने की परंपरा है।
दिवाली उत्सव मुख्य रूप से पांच दिनों तक चलता है। जिसमें महोत्सव की शुरुआत धनतेरस से होती है और ये भाई दूज के दिन समाप्त होता है। दिवाली में मुख्य रूप से दीये जलाने का प्रचलन है। ऐसी मान्यता है कि पांच दिवसीय पर्व दीपावली पर पहला दीपक धनतेरस के दिन यमराज के निमित्त जलाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन जिस घर में दीपदान किया जाता है, वहां अकाल मृत्यु नहीं होती है।
ज्योतिष में ऐसी मान्यता है कि धनतेरस की शाम को मुख्य द्वार पर 13 दीये जलाने चाहिए और घर के भीतर भी हर एक कोने में 13 दीये जलाएं। इन दीयों की कुल संख्या 26 होनी चाहिए। ऐसा करने से माता लक्ष्मी का घर में आगमन होता है।
लेकिन जब आप यम के नाम का दीपक बनाएं तब ध्यान रखें कि यह दीपक परिवार के सभी सदस्यों के घर आने और खाने-पीने के बाद सोते समय जलाएं। इस दीये को जलाने के लिए पुराने दीपक का उपयोग करें। इसमें सरसों का तेल डालें। यह दीपक घर से बाहर दक्षिण की ओर मुख करके नाली या कूड़े के ढेर के पास रखें।
नरक चतुर्दशी के दिन घर में मुख्य रूप से पांच दीये जलाने की प्रथा है। इनमें से एक दीपक घर के पूजा स्थल पर, दूसरा रसोईघर में, तीसरा दीपक जल के स्थान पर, चौथा दीपक पीपल या वट वृक्ष के नीचे रखें। वहीं पांचवां दीपक घर के मुख्य द्वार पर जरूर जलाएं। घर के मुख्य द्वार पर जो दीपक जलाना है वह चौमुखा होना चाहिए और उसमें चार लंबी बत्तियां जलाएं।
दिवाली महोत्सव के तीसरे दिन को दीपावली कहा जाता है जो मुख्य पर्व माना जाता है। इस दिन विशेष रूप से लक्ष्मी गणेश पूजन किया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार कार्तिक माह की अमावस्या को समुद्र मंथन से मां लक्ष्मी प्रकट हुई थीं जिन्हें भगवान विष्णु की अर्धांगिनी होने के साथ धन, वैभव, ऐश्वर्य व सुख समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
दिवाली में मुख्य रूप से माता लक्ष्मी के स्वागत के लिए दीप जलाए जाते हैं ताकि अमावस्या की रात के अंधकार में दीपो से वातावरण रौशन हो जाए। दीपावली की रात पहला दीया लक्ष्मी पूजा के दौरान जलाएं।
दूसरा दीया तुलसी के पास जलाएं, तीसरा दीयामुख्य दरवाजे के बाहर, चौथा दीया पीपल के पेड़ के नीचे, पांचवां दीया घर के पास किसी मंदिर में, छठवां दीया कचरे वाले स्थान पर, सातवां दीया बाथरूम के बाहर, आठवां दीया मुंडेर पर, नौवां दीया दीवारों के आस-पास, दसवां दीया खिड़की के पास, ग्यारहवां दीया किसी चौराहे पर जलाएं।
ऐसी मान्यता है कि दिवाली के दिन पितरों और यम के लिए दीपदान करने के अलावा कुल देवी के नाम का दीपक जलाना न भूलें। दीया जलाने को अच्छाई और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है और ऐसा माना जाता है कि दीये अंधकार को दूर करते हैं। चूंकि दीपावली अमावस्या के दिन मनाई जाती है और हर जगह अंधकार होता है, इसलिए दीये जलाना बहुत शुभ माना जाता है।
दिवाली के दिन दीपक जलाने से क्रोध, लोभ और अन्य दोषों का नाश होता है। दीपक को घर में सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। इस दिन मुख्य रूप से घी और सरसों के तेल के दीपक जलाने से घर में समृद्धि का मार्ग खुलता है।
इस प्रकार यदि आप यदि दिवाली के दिन दीये उनकी शुभ संख्या और स्थान को ध्यान में रखकर जलाएंगी तो आपके घर में सदैव माता लक्ष्मी की कृपा बनी रहेगी।