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खालिस्तानी झंडा हिमाचल विधानसभा पर कैसे मिला

देश में खालिस्तान आंदोलन का इतिहास 40 से 50 साल पुराना है। खालिस्तानियों द्वारा एक नए अलग देश की मांग के साथ जो आंदोलन चलाया गया वो बाद के समय में थमा तो जरूर लेकिन कुछ अराजक और राष्ट्र विरोधी तत्व समय-समय पर इस आंदोलन को हवा देते रहे और सबसे बड़ी बात तो यह है कि पिछले सात आठ वर्षो में खालिस्तान आंदोलन केंद्र सरकार की राजनीतिक विचारधारा के द्वेष में उभारी जाती रही है। ऐसा ही कुछ हिमाचल प्रदेश की विधानसभा के गेट पर खालिस्तान का झंडा लगे मिलने से पता चलता है। स्थानीय लोगों ने खालिस्तान का झंडा विधानसभा भवन के मेन गेट पर लगा देखा तो पुलिस को इसकी सूचना दी। इसके बाद, पुलिस टीम मौके पर पहुंची और विधानसभा के मुख्यद्वार के साथ लगाए गए झंडे को हटाया गया।

विधानसभा भवन के बाहर दीवारों पर ‘खालिस्तान’ लिख दिया गया था, जिसे पुलिस की टीम ने सुबह मिटाया। इस पूरे प्रकरण पर प्रकाश डालते हुए वकांगड़ा के एसपी खुशाल शर्मा ने कहा है कि ,”हो सकता है कि आज देर रात या सुबह-सुबह ये किया गया हो। हमने विधानसभा गेट से खालिस्तान के झंडे हटा दिए हैं। यह पंजाब से आए कुछ पर्यटकों की हरकत हो सकती है। हम इस मामले में केस दर्ज करने जा रहे हैं।”

गौरतलब है कि कुछ रोज पूर्व हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को खालिस्तानी समर्थकों ने धमकी दी थी। प्रतिबंधित झंडे और पोस्टर को लेकर विवाद पर गुरुपतवंत सिंह पन्नू ने सीएम जयराम ठाकुर को धमकी दी थी और कहा था कि 29 अप्रैल को शिमला में खालिस्तान का झंडा फहराएंगे। एक वीडियो जारी कर अलगाववादी समूह के जनरल काउंसल गुरपतवंत सिंह पन्नू ने घोषणा की थी कि एसएफजे 29 अप्रैल को ही वॉलंटियर्स की भर्ती के लिए ‘हरियाणा बनेगा खालिस्तान’ अभियान शुरू करेगा। इस दौरान खालिस्तान जनमत संग्रह के माध्यम से हरियाणा को भारत के कब्जे से मुक्त करने की पैरवी करेगा।  इन सब बातों को देखते हुए अलगाववादी संगठन “सिख फॉर जस्टिस” के खिलाफ़ उचित कार्यवाही होनी जरूरी है।

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