अडाणी पर कैसे टूटा मुसीबतों का पहाड़!
रिश्वतखोरी कांड की अमेरिकी जांच की अंदरूनी कहानी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ गौतम अडाणी की निकटता को देखते हुए, यह संगीन आरोप नवनियुक्त राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल में अमेरिकी-भारत संबंधों को जटिल बना सकते हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि यह यह हाल के वर्षों में अमेरिकी जस्टिस डिपार्टमेंट द्वारा चलाए गए सबसे हाई-प्रोफाइल मामलों में से एक है, जिसमें कई अधिकार क्षेत्रों को पार किया गया है।
–दयाशंकर शुक्ल सागर
क्या देश के रसूखदार अरबपति कारोबारी गौतम अडाणी अमेरिका की अंदरूनी राजनीति का शिकार हुए हैं। अमेरिका में इस केस की जांच पिछले कोई तीन साल से चल रही रही थी लेकिन अडाणी की कंपनी के खिलाफ घूस बांटने का अभियोग उस समय समाने आए जब चुनाव हार चुकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के नेतृत्व वाली सरकार अपने आखिरी दिन गिन रही है। इन अभियोगों का खुलासा करने वाले न्यूयॉर्क के पूर्वी जिले (ईडीएनवाई) के अमेरिकी अटॉर्नी ब्रेऑन पीस का कार्यकाल बाइडन के साथ खत्म हो जाएगा। अमेरिका में राष्ट्रपति अटॉर्नी की नियुक्ति करता है। इसी कोर्ट ने अडाणी की कंपनी पर आरोप तय किए हैं कि भारत में सोलर एनर्जी प्रोजेक्ट्स के ठेके हासिल करने के लिए उनकी कंपनी ने भारतीय अधिकारियों को लगभग 2,250 करोड़ रुपये की रिश्वत आफर की थी। अडाणी समूह ने इन प्रोजेक्ट्स के लिए अमेरिकी निवेशकों से फंड जुटाया था। अमेरिका के नवनिर्वाचित डोनाल्ड ट्रम्प के अमेरिकी जस्टिस डिपार्टमेंट से रिश्ते सहज नहीं हैं। वे जस्टिस डिपार्टमेंट में आमूलचूल परिवर्तन की बात पहले कर चुके हैं। पिछले दिनों अडाणी ने सोशल मीडिया पर ट्रंप को जीत पर बधाई देते हुए अमेरिका में 10 अरब डॉलर के निवेश और 15,000 अमेरिकी लोगों को रोजगार का ऐलान किया था। ऐसे में आनन-फानन में अमेरिकी जस्टिस डिपार्टमेंट ने अडाणी ग्रुप के चेयरमैन और संस्थापक गौतम अडाणी समेत आठ लोगों पर आरोप तय कर सारी दुनिया के कारोबारी जगत में हलचल पैदा कर दी। मजे की बात है कि घूस देने और न्याय में बाधा पहुंचाने, इन दो मामलों में अमेरकी एजेंसियों ने गौतम अडाणी और उनके भतीजे सागर अडाणी को सीधे आरोपी नहीं बनाया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ अडाणी की निकटता को देखते हुए, ये गंभीर संघीय आरोप नवनियुक्त राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल में अमेरिकी-भारत संबंधों को जटिल बना सकते हैं।
विशेषज्ञ कहते हैं कि यह यह हाल के वर्षों में अमेरिकी जस्टिस डिपार्टमेंट द्वारा चलाए गए सबसे हाई-प्रोफाइल मामलों में से एक है, जिसमें कई अधिकार क्षेत्रों को पार किया गया है। इसमें मित्र देश के एक ऐसे रसूखदार व्यवसायी को निशाना बनाया गया है जिसका दोनों देशों के आर्थिक और कूटनीतिक संबंधों पर असर पड़ सकता है। जैसा कि पूर्व भारतीय विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने कहा, ‘अमेरिका को अपने घर की सफाई पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।’ इस तरह की अफरातफरी से भारत-अमेरिका संबंधों को नुकसान होगा। व्हाइट हाउस भी यह समझता है, इसलिए उसने सत्ता के संक्रमण काल का सुनहरा मौका देखते हुए बड़ी सावधानी से अपने कंधे पर बैठे बेताल को ट्रंप के कंधे पर शिफ्ट कर दिया। इसीलिए जब व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव जीन पियरे से पूछा गया कि क्या इन आरोपों का अमेरिका-भारत संबंधों पर असर पड़ेगा, तो उन्होंने बेहद कूटनीतिक शब्दावली में कहा, वैश्विक मुद्दों की पूरी श्रृंखला में हमारा रिश्ता सहयोग पर आधारित एक बेहद मजबूत नींव पर खड़ा है।’ अमेरिका में विदेशी भ्रष्ट आचरण एक्ट (एफसीपीए) का इस्तेमाल बेहद दुर्लभ है। इसका अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि अक्टूबर 2020 के बाद से किसी व्यक्ति के खिलाफ अमेरिकी प्रतिभूति और विनिमय आयोग (एसईसी) द्वारा यह पहली प्रवर्तन कार्रवाई है। बताते चलें कि एफसीपीए एक अमेरिकी कानून है जो कंपनियों और व्यक्तियों को व्यावसायिक लाभ हासिल करने के लिए विदेशी अधिकारियों को रिश्वतखोरी या भ्रष्ट आचरण में शामिल होने से रोकता है।
अब ट्रंप आखिरी उम्मीद
जनवरी 2021 में जो बाइडन की सरकार बनने के एक साल बाद ही अडाणी ग्रीन के खिलाफ जांच शुरू हो गई थी। मार्च 2023 में एक एफबीआई एजेंट ने गौतम अडाणी के भतीजे और कंपनी के कार्यकारी निदेशक सागर आर अडाणी से बाकायदा पूछताछ भी शुरू कर दी थी और उनके इलेक्ट्रानिक उपकरण भी जब्त कर लिए थे। इस पूछताछ की जानकारी सागर ने गौतम अडाणी को तुरंत दे दी थी। भारत सरकार से लेकर ट्रंप तक सबको इस जांच के बारे में पता था। गौर करने की बात है कि भारत से तमाम अच्छे कूटनीतिक रिश्तों के बावजूद डेमोक्रेटिक पार्टी नेता व राष्ट्रपति जो बाइडन ने जांच जारी रखी। जाहिर है राष्ट्रपति जो बाइडन मैनेज नहीं हो पाए। इसलिए अमेरिका में सत्ता परिवर्तन की चाह लिए अडाणी की दिलचस्पी अमेरिकी चुनाव के नतीजों में किसी से भी ज्यादा थीं। बीती 6 नवम्बर को जैसे ही अमेरिकी चुनाव के नतीजे आए गौतम अडानी ने ट्रंप को लगभग महामानव बाताते हुए एक्स हैंडल पर बेहद अनूठे अंदाज लिखे बधाई संदेश में कहा, ‘अगर धरती पर कोई एक व्यक्ति है जो अटूट दृढ़ता, अडिग धैर्य, अथक दृढ़ संकल्प और अपने विश्वासों पर अडिग रहने के साहस का प्रतीक है, तो वह डोनाल्ड ट्रंप हैं। अमेरिका के लोकतंत्र को अपने लोगों को सशक्त बनाते हुए और देश के संस्थापक सिद्धांतों को कायम रखते हुए देखना रोमांचक है। 47वें राष्ट्रपति-चुने गए @realDonaldTrump को बधाई।’ इसके एक हफ्ते बाद गौतम अडाणी ने जांच के शिकंजे में फंसी अपनी कंपनी की ओर से अमेरिका के सामने एक शानदार डील उछाली। 13 नवम्बर को उसने एक्स पर भविष्य के चमचमाते आधुनिक अमेरिका की एआई निर्मित तस्वीर के साथ एक और संदेश में पोस्ट किया- ‘जैसे-जैसे भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच साझेदारी गहरी होती जा रही है, अडाणी समूह अपनी वैश्विक विशेषज्ञता का लाभ उठाने और अमेरिकी ऊर्जा सुरक्षा और लचीले बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं में 10 बिलियन डॉलर का निवेश करने के लिए प्रतिबद्ध है, जिसका लक्ष्य 15,000 नौकरियां पैदा करना है।’
पिछले बीस साल के अपने शानदार कारोबारी जीवन में भारत में केवल 30,000 लोगों को रोजगार देने वाले दुनिया के सबसे अमीर व्यापारी अडाणी अब मंदी की मार झेल रहे अमेरिकीयों के लिए उम्मीद की किरण बनने को अतुर हो गए। लेकिन न्यूयार्क की जिला अदालत के एक सख्त छवि के अटार्नी ने उससे पहले ग्रीक पौराणिक कथाओं में वर्णित वह पंडोरा बाक्स खोल दिया जो वास्तव में उपहार-स्वरूप दिया गया एक बड़ा जार था जिसमें दुनिया की सभी बुराइयां निहित थीं। एक्स बधाई संदेशों और इस चर्चित घूस कांड के खुलासे के बाद अब तक इस प्रकरण पर डोनाल्ड ट्रंप के खेमे की ओर से कोई प्रतिक्रिया नही आई है। जानकारों का कहना है कि ट्रंप इस मामले को रोक सकते हैं, लेकिन यह अभी तक साफ नहीं है कि क्या ट्रंप इस सबमें शामिल होना चाहेंगे क्योंकि एक के बाद एक दुनियाभर के देश व उद्योगपति भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टालरेंस का नारा देकर अडाणी से किनारा कर रह हैं। फिर राष्ट्रपति के रूप में उनकी शक्तियां उन्हें ऐसा करने देंगी या नहीं। यह भी अपने आप में बड़ा सवाल है।
आम तौर पर न्याय विभाग स्वतंत्र रूप से काम करता है और तकनीकी और पारंपरिक रूप से व्हाइट हाउस के प्रति उत्तरदायी नहीं है। इन हालात में ट्रंप के लिए मामले का रफा दफा करना राजनीतिक तौर पर आसान नहीं होगा। अमेरिकी कोर्ट ने अडाणी के खिलाफ विदेशी भ्रष्ट आचरण एक्ट के उल्लंघन का मामला बनाया है। दिलचस्प तथ्य है कि ट्रंप अपने पहले कार्यकाल में इस एक्ट को खत्म करना चाहते थे क्योंकि उन्होंने इसे अमेरिकी कंपनियों के लिए ‘अनुचित’ माना था। उनका तर्क था कि कोई कंपनी अपने देश में कुछ भी करे उससे हमें क्या लेना देना। लेकिन बाद में वे बदल गए। बेशक अब नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप नेजनवरी में व्हाइट हाउस की सत्ता संभलने के बाद अमेरिका में नए अटॉर्नी जनरल के आने का इंतजार करेंगे।
हर तरफ से मुसीबतें
यूएस की दो स्वतंत्र एजेंसियों, अमेरिकी जस्टिस डिपार्टमेंट और सिक्योरिटी एक्सचेंज कमीशन ने अलग-अलग प्रेस रिलीज जारी कर इस घूसकांड को सार्वजनिक किया। अगले दिन दुनियाभर के अखबारों में यह खबर लीड बनी। इस खुलासे का अडाणी ग्रुप पर चौतरफा असर पड़ रहा है। सबसे पहले अडाणी समूह के सारे शेयर एक-एक करके क्रैश होने लगे। अडाणी ग्रीन एनर्जी को 600 मिलियन डॉलर के बॉन्ड रद्द करने पड़े। केन्या सरकार ने अडानी के नेतृत्व में नैरोबी हवाई अड्डे के कई मिलियन डॉलर के विस्तार को रद्द कर दिया। फ्रांस की एक बहुत बड़ी ऊर्जा कंपनी टोटल एनर्जीज एसई ने साफ कह दिया है कि वह अडाणी समूह की कंपनियों में तब तक कोई नया निवेश नहीं करेगी, जब तक गौतम अडानी को रिश्वतखोरी के आरोपों से बरी नहीं हो जाते। इस कंपनी की अडाणी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड और अडाणी टोटल गैस लिमिटेड में हिस्सेदारी है। श्रीलंका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके ने पहले ही कह दिया है कि वे पिछली सरकार के 440 मिलियन डॉलर के पवन ऊर्जा प्रोजेक्ट के लिए ‘अडानी डील’ की समीक्षा करेंगे। और तो और तेलंगाना सरकार ने अडाणी का 100 करोड़ का वह डोनेशन ठुकरा दिया जो अडाणी ने यंग इंडिया स्किल यूनिवर्सिटी के लिए ऑफर किया था। मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने कहा, ये डोनेशन लेने से राज्य सरकार और मेरी खुद की छवि को नुकसान पहुंच सकता है। ये वही अडाणी हैं जिन पर कभी अमेरिका ने आंख बंद करके यकीन किया था। 2017 में श्रीलंका ने एक रणनीतिक बंदरगाह का नियंत्रण चीन को सौंप कर नई दिल्ली और वाशिंगटन में अधिकारियों को चिंता में डाल दिया था। तब अमेरिकी सरकार ने घोषणा की थी कि वह श्रीलंका की राजधानी में एक और बंदरगाह टर्मिनल बनाने के लिए अडानी को $500 मिलियन का निवेश करेगी। लेकिन इस खुलासे के बाद खबर है कि इस टर्मिनल में निवेश करने वाली अमेरिकी एजेंसी ‘यूएस इंटरनेशनल डेवलपमेंट फाइनेस कारपरेशन’ अपने प्रस्ताव पर पुनर्विचार कर रही है।
कमजोर सबूतों का पिटारा
अमेरिकी जस्टिस डिपार्टमेंट आमतौर पर 98 प्रतिशत कनवीक्शन का दावा करता है। वह तब तक अभियोग नहीं लगाता जब तक कि उन्हें 100 प्रतिशत यकीन न हो कि वे अदालत से कनवीक्शन प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन ये केस थोड़ा अलग है। अमेरिकी अटॉर्नी ने अपनी 54 पन्ने की प्रेस रिलीज में जो तथ्य और सबूत सामने रखें हैं वह अडाणी और उनकी सहयोगी कंपनी के अफसरों के बयान, उनके कागजी दस्तावेज, वाट्सएप चैट, ईमेल संदेशों, कुछ पीपीटी कुछ एक्सलशीटस पर आधारित हैं। हैदराबाद, भुवनेश्वर या चेन्नई या छत्तीसगढ़ में किस अधिकारी ने कैसे घूस ली इसका कोई ब्योरा रिपोर्ट में नहीं है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘प्रतिवादियों ने अपने भ्रष्ट प्रयासों का व्यापक रूप से दस्तावेजीकरण भी किया।’ जैसे बालीवुड की डॉन फिल्म में अमिताभ बच्चन अपने लेन-देन करने वाले अपराधियों का दस्तावेजीकरण लाल डायरी में करता था। इस रिपार्ट में इस दस्तावेजीकरण के कुछ उदाहरण के दिए गए हैं। ‘जैसे सागर आर अडाणी ने अपने सेल्युलर फोन का इस्तेमाल सरकारी अधिकारियों को दी जाने वाली रिश्वत के विशिष्ट विवरणों को ट्रैक करने के लिए किया। अडानी ग्रीन एनर्जी के सीईओ विनीत एस जैन ने अपने सेल्युलर फोन का इस्तेमाल विभिन्न रिश्वत राशियों का सारांश देने वाले दस्तावेज़ की तस्वीर लेने के लिए किया। सहयोगी कंपनी एज्योर पावर के सीईओ रूपेश अग्रवाल ने पावरपॉइंट और एक्सेल का उपयोग करके कई विश्लेषण तैयार किए और अन्य प्रतिवादियों को वितरित किए, जिसमें रिश्वत और भुगतान को छिपाने के विभिन्न विकल्पों का सारांश दिया गया था।’
अमेरिकी कानून के जानकारों का कहना है कि बचाव पक्ष इन दस्तावेजों को अपने पक्ष में पेश करने का प्रयास कर सकता है। बचाव पक्ष का यह तर्क हो सकता है कि वे पारदर्शी थे इसलिए हर चीज का रिकार्ड रखा गया और यह सरकार के इस तर्क के खिलाफ जाता है कि वे जान-बूझकर कानून तोड़ रहे थे। अमेरिकी अभियोजकों को अपेक्षित आपराधिक इरादे को साबित करना होगा। विदेशी भ्रष्ट आचरण एक्ट के तहत सरकार को यह साबित करना होगा कि प्रतिवादियों को पता था कि वे जो भुगतान कर रहे हैं, वह दरअसल घूस है। सबसे बड़ी बात यह कि इस रिपोर्ट में एफसीपी ऐक्ट के उल्लंघन और न्याय में बाधा पहुंचाने के मामलों में गौतम अडाणी और उनके भतीजे सागर अडाणी को सीधे आरोपी नहीं बनाया गया है। इन दोनों मामलों में सहयोगी कंपनी एज्योर पावर के अधिकारी रंजीत गुप्ता, साइरिल कैबेनिस, सौरभ अग्रवाल, दीपक मल्होत्रा और रूपेश अग्रवाल को आरोपी बनाया गया है। जैसा कि भारत के जाने माने वकील मुकुल रोहतगी ने कहा जाहिर है उन्हें अडाणी परिवार के खिलाफ कोई ठोस साक्ष्य नहीं मिले। दिलचस्प है कि गौतम अडाणी ने खुद एक अमेरिकी कानूनी फर्म से अपनी कंपनी में हुए लेन-देन की आंतरिक जांच शुरू की थी। इस जांच के दौरान अडाणी ने कथित रिश्वतखोरी में अपनी भूमिका का खुलासा किया। अपनी रिपोर्ट में अटार्नी ने इसे ‘एक रणनीति’ कहा है। रिपोर्ट के मुताबिक ‘यह सब दिखावा करने के लिए डिजाइन किया गया था कि सह-साजिशकर्ता कदाचार को अंजाम देने के बजाय कदाचार की रिपोर्ट कर रहे थे, जो बदले में, सह-साजिशकर्ताओं की सहायता कर रहा थे।’ लेकिन अडाणी के वकील इस इंटरपटेशन की धज्जियां उड़ाने में कोई कसर नहीं छोडें़गे। इसके अलावा जांच एजेंसियों ने उन्हें गवाह बनाया है जो कंपनी को सालभर पहले ही छोड़ चुके थे। कोर्ट में उनकी गवाही कितना मायने रखती है यह अलग सवाल है। कुल मिलकर अमेरिकी एजेंसियों ने गुब्बारे में इतनी हवा भर दी है कि ये कभी भी तेज धमाके के साथ फूट सकता है।
अब आगे क्या होगा
अरबपति कारोबारी गौतम अडानी से जुड़े मामले में अमेरिका में अरेस्ट वारंट जारी किया जा चुका है। अमेरिकी अभियोजक अब इन अरेस्ट वारंटों को विदेशी कानून प्रवर्तन महकमे को मुहैया कराएंगे। अमेरिका मुकदमा चलाने के लिए भारत से सभी प्रतिवादियों को प्रत्यर्पित करने की मांग करेगा। लेकिन यह साफ नहीं है कि भारत सरकार इसकी इजाजत देगी या नहीं। अमेरिका और भारत के बीच प्रत्यर्पण संधि के तहत दोनों देशों में ऐेसे अपराधों के आरोपियों का प्रत्यर्पण किया जा सकता है जिनमें एक वर्ष से अधिक कारावास की सजा हो सकती है। भारत में कुल मिला कर वेट एंड वाच की स्थिति है।