कैसे अमेरिकी जासूसों की चीफ बनी प्रिंसेज ऑफ द आरएसएस
बहुत जल्द अमेरिका की राष्ट्रीय खुफिया एजेंसियों की कमान नवनियुक्त निदेशक तुलसी गबार्ड के हाथ में होगी। अमेरिका की पहर्ली हिंदू सांसद तुलसी का आरएसएस और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से पुराना रिश्ता रहा है। संघ परिवार से जुड़े भारतीय मूल के अमेरिर्की हिंदू नागरिक उनके लिए हर चुनाव में लाखों डालर का चंदा जुटाते हैं। आरएसएस के इसी दुलार के कारण अमेरिका में तुलसी ‘प्रिंसेज ऑफ द आरएसएस’ के नाम से चर्चित हैं। पहले तुलसी का डेमोक्रेटिक पार्टी छोड़ना फिर अचानक डोनाल्ड ट्रम्प को समर्थन देना और फिर रिपब्लिकन पार्टी का दामन थामकर इस मुकाम तक पहुंचना हॉलीवुड के किसी हाई प्रोफाइल पॉलिटिकल ड्रामे से कम नहीं। भारतीय मामलों में अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की बेवजह ‘अति सक्रिय’ होने के बाद अचानक खुफिया एजेंसियों की कमान तुलसी गबार्ड को दिए जाने को भारत के कूटनीतिक दांव के रूप में देखा जा रहा है।
–दयाशंकर शुक्ल सागर
अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका की पहर्ली हिंदू सांसद तुलसी गबार्ड को राष्ट्रीय खुफिया विभाग का निदेशक नियुक्त किया है। तुलसी गबार्ड का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से पुराना और गहरा नाता है। नरेंद्र मोदी के निजी निमंत्रण पर तुलसी गबार्ड न केवल भारत आ चुकी हैं बल्कि उन्होंने अमेरिका में नरेन्द्र मोदी की छवि को पुनस्र्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 2015 में तुलसी के विवाह समारोह में आरएसएस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रह चुके व तत्कालीन भाजपा प्रवक्ता, राम माधव, नरेंद्र मोदी की व्यक्तिगत शुभकामनाएं देने हवाई राज्य पहुंचे थे। तब मोदी ने नव-विवाहित जोड़े को न केवल देवों की भूमि में अपना हनीमून मनाने के लिए आमंत्रित किया था बल्कि उनके लिए उपहार में पश्मीना शॉल और एक गणेश प्रतिमा भी भेजी थी। अमेरिका में एक आरएसएस विरोधी वर्ग ने तो उन्हें ‘आरएसएस की राजकुमारी’ तक का तमगा दे दिया है। अब कहा जा रहा है कि अमेरिका में संघ परिवार से जुड़े रसूखदारों की कोशिशों के कारण ही ट्रंप ने यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी तुलसी गबार्ड को दी है। इसे भारतीय कूटनीति और मोदी-ट्रंप की दोस्ती से भारत को होने वाले फायदों की कड़ी के रूप में भी देखा जा रहा है। दिलचस्प बात यह है कि गबार्ड का नामांकन अमेरिका द्वारा पूर्व भारतीय खुफिया अधिकारी विकास यादव के खिलाफ अभियोग लगाने के कुछ महीने से भी कम समय बाद आया है, जिसमें उन पर 2023 में अमेरिका में भारतीय-अमेरिकी सिख अलगाववादी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की नाकाम साजिश का आरोप लगाया गया है। जिस संघीय जांच ब्यूरो (एफबीआई) ने यह तमाशा खड़ा किया है, तुलसी गबार्ड अब उस एफबीआई की बॉस होगी। पश्चिमी मीडिया में संघ परिवार और तुलसी गबार्ड के बीच रिश्तों की चर्चाएं 2014 से ही सुर्खियों में रही हैं।
‘द इंटरसेप्ट’ में छपे एक लेख में उन्हें हिंदू राष्ट्रवादियों के समर्थन के बावजूद एक उभरता हुआ प्रगतिशील सितारा’ बताया गया है। गबार्ड पर रिलीजन न्यूज सर्विस में एक विवादित लेख छपा जिसका शीर्षक था- ‘धार्मिक कट्टरता अमेरिकी नहीं है।’ तुलसी गबार्ड ने इसके जवाब में कहा कि उनके आलोचक अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका की पहर्ली हिंदू सांसद तुलसी गबार्ड को राष्ट्रीय खुफिया विभाग का निदेशक नियुक्त किया है। तुलसी गबार्ड का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से पुराना और गहरा नाता है। नरेंद्र मोदी के निजी निमंत्रण पर तुलसी गबार्ड न केवल भारत आ चुकी हैं बल्कि उन्होंने अमेरिका में नरेन्द्र मोदी की छवि को पुनस्र्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 2015 में तुलसी के विवाह समारोह में आरएसएस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रह चुके व तत्कालीन भाजपा प्रवक्ता, राम माधव, नरेंद्र मोदी की व्यक्तिगत शुभकामनाएं देने हवाई राज्य पहुंचे थे। तब मोदी ने नव-विवाहित जोड़े को न केवल देवों की भूमि में अपना हनीमून मनाने के लिए आमंत्रित किया था बल्कि उनके लिए उपहार में पश्मीना शॉल और एक गणेश प्रतिमा भी भेजी थी। अमेरिका में एक आरएसएस विरोधी वर्ग ने तो उन्हें ‘आरएसएस की राजकुमारी’ तक का तमगा दे दिया है। अब कहा जा रहा है कि अमेरिका में संघ परिवार से जुड़े रसूखदारों की कोशिशों के कारण ही ट्रंप ने यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी तुलसी गबार्ड को दी है। इसे भारतीय कूटनीति और मोदी-ट्रंप की दोस्ती से भारत को होने वाले फायदों की कड़ी के रूप में भी देखा जा रहा है। दिलचस्प बात यह है कि गबार्ड का नामांकन अमेरिका द्वारा पूर्व भारतीय खुफिया अधिकारी विकास यादव के खिलाफ अभियोग लगाने के कुछ महीने से भी कम समय बाद आया है, जिसमें उन पर 2023 में अमेरिका में भारतीय-अमेरिकी सिख अलगाववादी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की नाकाम साजिश का आरोप लगाया गया है। जिस संघीय जांच ब्यूरो (एफबीआई) ने यह तमाशा खड़ा किया है, तुलसी गबार्ड अब उस एफबीआई की बॉस होगी। पश्चिमी मीडिया में संघ परिवार और तुलसी गबार्ड के बीच रिश्तों की चर्चाएं 2014 से ही सुर्खियों में रही हैं। ‘द इंटरसेप्ट’ में छपे एक लेख में उन्हें हिंदू राष्ट्रवादियों के समर्थन के बावजूद एक उभरता हुआ प्रगतिशील सितारा’ बताया गया है। गबार्ड पर रिलीजन न्यूज सर्विस में एक विवादित लेख छपा जिसका शीर्षक था- ‘धार्मिक कट्टरता अमेरिकी नहीं है।’ तुलसी गबार्ड ने इसके जवाब में कहा कि उनके आलोचक हिंदू विरोधी भावना को भड़काने की कोशिश कर रहे हैं।’
गैर भारतीर्य हिंदू
दिलचस्प बात यह है कि न तुलसी गबार्ड भारतीय मूल की हैं और न उनके माता पिता। 1970 के दशक में पहले तुलसी की मां कैरोल, फिर बाद में उनके कैथोलिक पिता माइक गबार्ड जगदगुरु सिद्धस्वरूपानंद परमहंस के भक्त बन गए। अमेरिका में योगी सिद्धस्वरूपानंद उर्फ क्रिस बटलर भी भारतीय मूल के नहीं हैं। मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक 40 के दशक में जब उनका जन्म एक ईसाई परिवार में हुआ, तब उनका नाम क्रिस बटलर था। क्रिस की आध्यात्मिक खोज किशोरावस्था में ही शुरू हो गई थी और वे मात्र 20 वर्ष की उम्र में अष्टांग और कुंडलिनी योग के गुरु बन गए। बाद में जगदगुरु परम पूज्य भक्तिवेदांत स्वामी के संपर्क में आए। जगदगुरु साइंस ऑफ आइडेंटिटी फाउंडेशन के संस्थापक हैं जो हरे कृष्ण आंदोलन का एक सहायक संगठन है। वे 45 वर्षों से अधिक समय से दुनियाभर के लोगों को योग का विज्ञान सिखा रहे हैं। परमहंस के भक्त बनने के बाद तुलसी की मां और पिता शाकाहारी बन गए और अपने बच्चों र्को हिंदू नाम दिया। तुलसी की मां कैरोल गबार्ड ने 2000 तक साइंस ऑफ आइडेंटिटी फाउंडेशन के कोषाध्यक्ष के रूप में काम किया।
2002 में केवल 21 वर्ष की उम्र में तुलसी हवाई राज्य विधानमंडल के लिए चुनी जाने वाली सबसे कम उम्र की महिला बनीं। लेकिन 2004 में जब उनकी हवाई नेशनल गार्ड यूनिट को इराक में तैनात किया गया, तो उन्होंने केवल एक कार्यकाल के बाद ही पद छोड़ दिया। उन्हें 2007 में कमीशन मिला और उन्हें अमेरिकी सेना रिजर्व में नियुक्त किया गया। वे 2020 तक हवाई नेशनल गार्ड में लेफ्टिनेंट कर्नल के पद पर काम करती रहीं। इस बीच, 2009 में मध्य पूर्व में अपनी दूसरी तैनाती से घर लौटने के बाद, उन्होंने फिर से हवाई की राजनीति में प्रवेश किया। इस बार उन्होंने होनोलुलु सिटी काउंसिल में एक सीट के लिए चुनाव लड़ा और जीत भी हासिल की।
रग-रग र्में हिंदुत्व
हिंदुत्व तुलसी में कूट-कूट कर भरा है। उन्हें घर पर ही पढ़ाया गया। तुलसी गबार्ड अपनी मां की तरह खुद का धर्र्म हिंदू मानती हैं। किशोरावस्था में ही उन्होंर्ने ंहदू पहचान अपना ली और पवित्र भगवद गीता को अपना मार्गदर्शक बना लिया। 2012 में अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में सीट जीती, तो उन्होंने सदन में चुनी गई पहर्ली ंहदू के रूप में इतिहास रच दिया। उन्होंने अमेरिकी संसद में भगवद गीता पर हाथ रखकर शपथ ली थी। इस शपथ की तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर वायरल हुई थीं। उन्होंने गीता की उसी प्रति को इस्तेमाल किया जो उनके माता-पिता ने उन्हें बचपन में दी थी। तब वह सि़र्फ 31 साल की थीं। 2013 में सांसद बनने के बाद तुलसी ने एक साक्षात्कार में भगवद गीता से सीखी गईं बातों की तारीफ की थी। सवाल था कि भगवद गीता की शिक्षा राजनीति पर कैसे लागू हो सकती है। तुलसी ने जवाब में कहा कि गीता ‘सफलता या असफलता में अपना संतुलन बनाए रखने की कोशिश करना सिखाती है।’ उन्हें सशस्त्र सेवाओं और विदेश मामलों पर सदन की समितियों में नियुक्त किया गया। उनकी पार्टी ने उन्हें डेमोक्रेटिक नेशनल कमेटी में एक शक्तिशाली उपाध्यक्ष का पद दिया। अगले कुछ वर्षों में, उनका राजनीतिक करियर आसमान छूने लगा। नैन्सी पेलोसी और स्टेनी होयर जैसे वरिष्ठ डेमोक्रेटिक नेताओं ने उन्हें ‘असाधारण राजनीतिक प्रतिभा’ के साथ ‘उभरते सितारे’ के रूप में सराहा।
तुलसी गबार्ड जनवरी 2013 से लेकर जनवरी 2021 तक चार बार डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ से सांसद रहीं। साल 2020 में तुलसी ने डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति पद के लिए भी दावेदारी पेश की थी। हालांकि, पर्याप्त समर्थन न मिलने के बाद तुलसी ने अपनी दावेदारी वापस ले ली थी। 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी जब पहली बार अमेरिका गये तो तुलसी गबार्ड मोदी से मिलने न्यूयार्क गईं। इस पहली मुलाकात में ही मोदी ने उन्हें भारत आने का निजी निमंत्रण दिया। तुलसी ने निमंत्रण स्वीकार किया और पहली बार भारत आईं। उनके रॉक-स्टार रिसेप्शन में तुलसी ने गीता की जिस प्रति को बचपन से अपने सीने से लगाए रखा, उसे लेकर उन्होंने संसद में कसम ली, वह प्रति उन्होंने नरेन्द्र मोदी को उपहार में दे दी। मीडिया को दिए गए एक बयान में गबार्ड ने कहा कि उन्होंने और मोदी ने ‘हमारे देशों के बीच कई मुद्दों पर चर्चा की, जिसमें यह भी शामिल है कि कैसे अमेरिका और भारत इस्लामी चरमपंथ द्वारा उत्पन्न वैश्विक खतरे से निपटने के लिए एक साथ काम कर सकते हैं। मैं उन्हें कुछ ऐसा देना चाहती थी जो मेरे लिए सार्थक हो।’ उन्होंने बाद में एक कार्यक्रम में कहा- ‘मैंने उन्हें गीता की अपनी निजी प्रति दी जो मेरे माता-पिता ने मुझे दी थी। गीता की वह प्रति जिसे मैंने मध्य पूर्व में अपनी दोनों नियुक्ति के दौरान अपने साथ रखा, जिसे मैं इराक में अपने टेंट में, अपने बिस्तर पर, अपने स्र्लींपग बैग के नीचे रखती थी और अपनी टॉर्च की रोशनी में देर रात को जब मैं अपना दिन पूरा कर लेती थी, तब उसे पढ़ती थी और गीता की वह प्रति जिस पर हाथ रखकर मैंने पद की शपथ ली थी।’
आरएसएस ने जुटाया चंदा
अमेरिकी राजनीति में गबार्ड का उदय अचानक उस दौर में हुआ जब भारत में नरेद्र मोदी को बतौर प्रधानमंत्री प्रोजेक्ट किया जा रहा था। अपने पहले कार्यकाल की शुरुआत में वे हाउस इंडिया कॉकस में शामिल हुईं। यह कॉकस ऐसे प्रतिनिधियों का एक गठबंधन है जो भारत समर्थक नीतियों का समर्थन करता है। तुलसी इस निकाय की सह-अध्यक्ष थीं। तुलसी ने 2014 में मोदी के पहली बार प्रधानमंत्री बनने पर न केवल उन्हें फोन कर जीत की बधाई दी बल्कि वे अमेरिका में हुए जीत के जश्न में शमिल भी हुई थीं। इस जश्न को मनाने के लिए ओवरसीज फ्रेंड्स ऑफ बीजेपी द्वारा आयोजित भोज में, तुलसी गबार्ड ने भाजपा का दुपट्टा पहना हुआ था और मोदी पर लिखी गई जीवनी को हाथ में लिए हुए थीं। उन्होंने भाजपा के एक शीर्ष कार्यकारी नेता विजय जॉली के साथ फोटो र्भी खिंचवाई थी। तब इस तरह की खबरें भी सामने आई र्कि ंहदू होने के नाते आरएसएस की अमेरिकी इकाई ने तुलसी के लिए लाखों डालर का फण्ड जुटाया। ‘द कारवां’ नाम की पत्रिका ने अगस्त 2019 के अंक में इस पर एक विस्तृत रिपोर्ट छापी। ‘द कारवां’ के अमेरिकी संवाददाता, पीटर फ्रेडरिक ने अपनी रिपोर्ट में लिखा- ‘संघ के लोग उन्हें तब से चंदा दे रहे हैं जब वह लगभग अज्ञात थीं। उनके कांग्रेस अभियान के पहले भारतीय-अमेरिकी दानकर्ताओं में गैर-हवाईयन लोग भी शामिल थे। ये संयुक्त राज्य अमेरिका में आरएसएस से जुड़े संगठनों की शीर्ष अधिकारी हैं।’
संघीय चुनाव आयोग को दिए गए दस्तावेजों में दिए गए दानकर्ताओं के नाम इस रिपोर्टर ने संघ की वेबसाइटों और प्रचार सामग्री के साथ-साथ मीडिया रिपोर्टों से सूचियों के साथ संकलित किया है। बताते हैं कि ऐसे समूहों के सैकड़ों नेताओं और सदस्यों ने अपने कांग्रेस के कैरियर के प्रारंभिक वर्षों में गबार्ड को लाखों डॉलर दिए। हवाई में एक डेमोक्रेटिक कार्यकर्ता कैली कीथ-अगारन ने भी गबार्ड के दानकर्ताओं का एक डेटाबेस संकलित किया है। गैबार्ड के कई दानदाताओं र्में ंहदू स्वयंसेवक संघ, बीजेपी के ओवरसीज फ्रेंड्स के सदस्यों के अलावा रमेश भुटाडा और विजय पलोद जैसे अमेरिकी संघ के प्रमुख नेता और विश्र्व ंहदू परिषद ऑफ अमेरिका जैसे समूहों के सदस्य भी शामिल हैं।’ रिपोर्ट के मुताबिक दरअसल, 2014 में मोदी के साथ ही गबार्ड की किस्मत भी चमकी। सालभर में, गबार्ड के व्यक्तिगत दान में से 123,000 डॉलर- कुल का लगभग 24 प्रतिशत संघ और मोदी समर्थक स्रोतों से आए। इंटरसेप्ट समाचार साइट ने 2019 में पाया कि गबार्ड के हाउस अभियान र्को ंहदू बहुसंख्यकवादी आंदोलन से जुड़े सौ से अधिक व्यक्तियों से दान प्राप्त हुआ था,जो मोदी की भारतीय जनता पार्टी का हिस्सा थे।
तुलसी से इस बारे मे पश्चिमी मीडिया ने कई बार तीखे सवाल पूछे। अपने प्रमुख दानकर्ताओं की पहचान के बारे में पूछे जाने पर तुलसी गबार्ड इसे हिंदूफोबिया’ कह कर खारिज करती रहीं। पीटर फ्रेडरिक ने अपनी रिपोर्ट में आगे लिखा- ‘मोदी के साथ उनके जुड़ाव की सीमा ने कई लोगों को चौंका दिया। खुद तुलसी ने एक लेख में लिखा कि कैसे मोदी के साथ उनकी मुलाकातों को ‘किसी तरह से असामान्य या किसी तरह से संदिग्ध के रूप में चित्रित किया जाता है, जबकि राष्ट्रपति ओबामा, सचिर्व क्लिंटन, राष्ट्रपति ट्रम्प और कांग्रेस में मेरे कई सहयोगियों ने उनसे मुलाकात की है और उनके साथ काम किया है।’ फिर भी वह 2014 और 2016 के बीच चार बार मोदी से मिलीं। सितंबर 2014 में न्यूयॉर्क में पहली मुलाकात में, वह सामान्य राजनयिक शिष्टाचार से कहीं अधिक स्नेह का प्रदर्शन करती दिखीं।’
देवभूमि में हनीमून का निमंत्रण
2015 की वसंत ऋतु में तुलसी गबार्ड ने एक पारंपरिक वैदिक विवाह समारोह में फ्रीलांस सिनेमेटोग्राफर और संपादक, अब्राहम विलियम्स से शादी कर ली। 2012 में विलियम्स प्रतिनिधि सभा में सीट के लिए तुलसी गबार्ड के अभियान में स्वयंसेवक थे। विलियम्स फोटोग्राफर थे और उसी दौरान तुलसी की कई प्रसिद्ध तस्वीरें लीं। तुलसी ने बताया कि डेढ़ साल बाद एक मित्र ने उनके लिए जन्मदिन की पार्टी रखी, जहां विलियम्स ने उनसे बाहर चलने के लिए कहा और फिर प्रपोज किया। इस जोड़े ने 2015 में हवाई के काहलु के पूर्वी तट पर पारंपरिक वैदिक समारोह में विवाह किया। तुलसी इस मौके पर नीले रंग का लहंगा-चोली पहन रखी थी। उनके गले में सफेद खुशबूदार फूल की मालाएं थीं। देश-विदेश से करीब तीन सौ मेहमान इस विवाह समारोह में शामिल हुए। इनमें उस समय अमेरिका में भारत के कार्यवाहक राजदूत तरनजीत संधू और तत्कालीन भाजपा प्रवक्ता राम माधव भी शामिल थे, जो नरेद्र मोदी का बधाई संदेश और तोहफे साथ लाए थे। मीडिया रिपोट्र्स के मुताबिक समारोह के दौरान माधव ने पीएम नरेंद्र मोदी की व्यक्तिगत शुभकामनाएं देने के लिए मंच संभाला। उन्होंने मोदी के पत्र से पढ़ा, ‘हम सभी इस महत्वपूर्ण दिन पर आपके परिवार और प्रियजनों की खुशी में शामिल हैं।’ उन्होंने कहा, ‘हमारे प्रधानमंत्री की ओर से, मैं नवविवाहित जोड़े को देवों की भूमि में अपना हनीमून मनाने के लिए आमंत्रित करता हूं।’ इसके बाद उन्होंने मोदी की ओर से दंपति को एक पश्मीना शॉल और एक गणेश प्रतिमा भेंट की। विवाह के बाद गबार्ड ने जनवरी 2015 में संसद का अपना दूसरा कार्यकाल शुरू किया था। तब वह भारत के तीन सप्ताह के दौरे से हाल ही में लौटी थीं।
दरअसल नरेंद्र मोदी सरकार के निमंत्रण पर तुलसी 16 दिसंबर 2014 को पहली बार भारत आईं। तुलसी ने अपने दौरे की शुरुआत प्रधानमंत्री, तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, तत्कालीन गृह मंत्री राजनाथ सिंह और सेना प्रमुख से मुलाकात की। अपनी यात्रा के अंत में वे तत्कालीन वित्तमंत्री अरुण जेटली से मिलीं। अपनी इस पहली भारत यात्रा में उन्होंने गोवा से लेकर बंगलुरू तक आएसएस के कई संवाद कायक्रमों में हिस्सा लिया। नई दिल्ली से छपने वाले अंग्रेजी अखबार ‘द टेलीग्राफ’ ने 4 जनवरी 2015 के अंक में ‘संघ को अमेरिकी तुलसी में अपना शुभंकर मिला’ हैडिग से खबर छापी- ‘तीन सप्ताह तक भारत में रहने के दौरान तुलसी का स्वागत किसी शीर्ष अतिथि नेता की तरह किया गया। यह स्वागत समारोह किसी भारतीय सांसद- भारत में उनके समकक्ष को विदेश में दिए जाने वाले औपचारिक शिष्टाचार से कहीं बढ़कर था। अमेरिका वापस जाने से कुछ घंटे पहले तुलसी ने संघ से संबद्र्ध थिंक टैंक इंडिया फाउंडेशन द्वारा आयोजित ‘भारत-अमेरिका संबंधों के भविष्य’ विषय पर एक परिचर्चा में हिस्सा लिया, भाषण दिया और सवालों के जवाब दिए। द टेलीग्राफ ने लिखा- ‘तुलसी संघ के लिए अपने घर वापसी एजेंडे के लिए सबसे बढ़िया विज्ञापन है, जिसे सरकार को और अधिक शर्मिंदगी से बचाने के लिए चतुराई से किनारे रखा गया है।
जनवरी 2019 में, गबार्ड उत्तर प्रदेश के वाराणसी में आयोजित भारत सरकार के वार्षिक प्रवासी आउटरीच कार्यक्रम, प्रवासी भारतीय दिवस में मुख्य अतिथि थीं। भारत से लौटकर तुलसी गबार्ड ने राष्ट्रपति पद के लिए डेमोक्रेटिक पार्टी के नामांकन के लिए प्रचार शुरू कर दिया। इसी दौरान उनका विरोध शुरू हो गया। मार्च 2019 में, लगभग दो दर्जन भारतीय अमेरिकियों ने लॉस एंजिल्स के फस्र्ट यूनिटेरियन चर्च के बाहर विरोध प्रदर्शन किया। उनके हाथों में तख्ती थी जिस पर लिखा था- ‘तुलसी प्रिंसेज ऑफ द आरएसएस’। यानी तुलसी आरएसएस की राजकुमारी। 22 सितंबर, 2019 को संयुक्त राज्य अमेरिका के टेक्सास के ह्यूस्टन में एनआरजी स्टेडियम में हाउडी मोदी का आयोजन किया गया। यह एक सामुदायिक शिखर सम्मेलन और मेगा इवेंट था। यह कार्यक्रम भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और संयुक्त राज्य अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के संयुक्त संबोधन के लिए चर्चित हुआ, जिसमें दोनों देशों के बीच मजबूत संबंधों और रणनीतिक साझेदारी को प्रदर्शित किया गया था। तुलसी तब डेमोक्रेट सांसद थीं, इसलिए चाहकर भी वह इस इवेंट में शामिल नहीं हो सकीं। लेकिन जब वे डेमोक्रेटिक पार्टी से इस्तीफा देकर खुद राष्टृपति चुनाव में उतरीं तो उन्होंने इस इवेंट में शामिल न होने के लिए बाकायदा वीडियो जारी कर सार्वजनिक तौर पर मोदी से माफी भी मांगी।
हमेशा विवादों में रहीं तुलसी
तुलसी गबार्ड की राय अक्सर दुनियाभर में संघर्षों के मामले में अमेरिकी सरकार से अलग रही है, जिसके कारण वह अक्सर विवादों में घिर जाती हैं। याद कीजिए रूस ने 24 फरवरी, 2022 को यूक्रेन पर बड़े पैमाने पर आक्रमण शुरू कर दिया था। इसके ठीक तीन दिन बाद तुलसी गबार्ड ने अपने एक्स अकाउंट पर एक वीडियो पोस्ट किया जिसमें अमेरिका, रूस और यूक्रेन से ‘भू-राजनीति को अलग रखने’ की बात कही। तुलसी ने अपनी सरकार को यह स्वीकार करने का आग्रह किया गया कि यूक्रेन नाटो जैसे सैन्य गठबंधनों का सदस्य बने बिना ‘एक तटस्थ देश रहेगा।’ रूस शुरू से यही चाहता था। यह युद्ध छिड़ा ही इसी सवाल पर था। इस बयान के साथ ही तुलसी विवादों में आ गईं। यह विवाद अभी थमा भी नहीं था कि मार्च 2022 में उन्होंने एक्स पर एक और विस्फोटक वीडियो पोस्ट कर दिया, जिसमें तुलसी ने कहा कि यूक्रेन में 25 से ज्यादा यूएस-वित्तपोषित बायोलैब हैं। उन्होंने इसे मॉस्को में एक दावे के बाद लिखा था कि यूक्रेन में यूएस-समर्थित बायोवेपन लैब चल रही हैं। इस दावे का यूएस और यूक्रेन दोनों ने खंडन किया था। दिलचस्प है कि इस दावे का समर्थन करने के लिए रूस या तुलसी के पास कोई स्वतंत्र सबूत नहीं है। तुलसी पर आरोप लगा कि वह रूसी राष्ट्रपति पुतिन की अमेरिकी एजेंट हैं।
इस पोस्ट के कारण कांग्रेस में रिपब्लिकनों ने उनकी आलोचना की, जिसमें पूर्व प्रतिनिधि एडम किंजगर भी शामिल थे, जिन्होंने गैबार्ड के बयान को ‘देशद्रोही’ कहा और कहा कि वह ‘रूसी दुष्प्रचार’ को बढ़ावा दे रही हैं। सीनेटर मिट रोमनी ने कहा कि वह ‘नकली रूसी दुष्प्रचार’ को बढ़ावा दे रही हैं। एक अन्य एक्स पोस्ट में, उन्होंने स्पष्ट किया कि ‘बायोलैब्स’ और ‘बायोवेपन्स लैब्स’ अलग-अलग चीजें हैं और कहा कि उनकी मूल पोस्ट को गलत समझा गया है।
संघ परिवार ट्रम्प के ज्यादा करीब
अमेरिकी राजनीति पर पकड़ रखने वाले सूत्र बताते हैं कि संघ परिवार के ही अपने शुर्भंचतकों की सलाह पर 2022 में उन्होंने डेमोक्रेटिक पार्टी छोड़ दी और स्वतंत्र उम्मीदवार बन गईं। अक्टूबर 2022 में अपने यू ट्यूब चैनल और ट्विट्रर अकाउंट पर पोस्ट किए गए एक वीडियो संदेश में उन्होंने कहा, ‘मैं अब आज की डेमोक्रेटिक पार्टी में नहीं रह सकती, जो अब कायरतापूर्ण जागरूकता से प्रेरित युद्धोन्मादी लोगों के एक कुलीन गुट के पूर्ण नियंत्रण में है।’ उन्होंने पार्टी पर ‘श्वेत-विरोधी नस्लवाद’ को बढ़ावा देने का भी आरोप लगाया। इसी बीच तुलसी फॉक्स न्यूज की सबसे बड़ी राजनीतिक टिप्पणीकारों में से एक बन गईं, जहां उन्होंने एक महीने से भी कम समय पहले आधिकारिक रूप से रिपब्लिकन पार्टी में शामिल होने से काफी पहले ट्रम्प और उनकी नीतियों के प्रति मुखर समर्थन व्यक्त किया था। अमेरिका के संघ परिवार के करीबी जो बाइडन की डेमोक्रेटिक पार्टी के बजाए खुद को ट्रम्प के नेतृत्व वाली रिपब्लिकन पार्टी के ज्यादा करीब पाते हैं। इसलिए कोई हैरत नहीं कि इसी साल अगस्त में अमेरीका में चुनाव के दौरान तुलसी गबार्ड ने तकरीबन सबको चौंकाते हुए औपचारिक रूप से ट्रम्प को राष्ट्रपति पद के लिए अपना समर्थन दे दिया। ट्रम्प का समर्थन करने के लिए तुलसी ने अपनी छवि युद्धविरोधी बना ली क्योंकि वह समझ गईं थी कि अमेरिकी जनता यूक्रेन या इस्राइल हमास जैसी बेवजह की जंगों से आजिज आ चुकी है।
मिशिगन के डेट्रॉयट में नेशनल गार्ड एसोसिएशन के सम्मेलन में तुलसी गबार्ड ने ट्रम्प की मौजूगी में कहा, ‘इस जो बाइडन प्रशासन ने हमें दुनियाभर के क्षेत्रों में कई मोर्चों पर कई युद्धों का सामना कराया है और हम पहले से कहीं अधिक परमाणु युद्ध के कगार के करीब हैं। बस इसीलिए मैं राष्ट्रपति ट्रम्प को व्हाइट हाउस वापस भेजने के लिए हरसंभव प्रयास करने के लिए प्रतिबद्ध हूं, जहां वे एक बार फिर हमारे कमांडर-इन-चीफ के रूप में हमारी सेवा कर सकते हैं, क्योंकि मुझे विश्वास है कि उनका पहला काम हमें युद्ध के कगार से वापस लाने का काम करना होगा।’ और अब संयुक्त राज्य अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने तुलसी गबार्ड को इसी सहयोग और वफादारी के लिए राष्ट्रीय खुफिया निदेशक का तोहफा दिया जो पूरी दुनिया में चर्चा में है।
भारत का कूटनीतिक दांव
हाल में अमेरिकी खुफिया विभाग के भारत से रिश्तों में उस वक्त खटास आ गई जब अमेरिका की सुरक्षा एजेंसी यानी एफबीआई ने भारत की खुफिया एजेंसी रॉ के एक पूर्व अधिकारी को मोस्ट वांटेड घोषित करते हुए दुनियाभर में उसका पोस्टर जारी कर दिया। इस साजिश का पर्दाफाश करने में अमेरिकी कानून प्रवर्तन एजेंसियों की भूमिका शामिल थी, जिसमें ड्रग प्रवर्तन प्रशासन और एफबीआई भी शामिल थी। एफबीआई ने इस पोस्टर में विकास यादव को खालिस्तानी आतंकी, गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की कोशिश में मुख्य साजिशकर्ता बता दिया। जारी पोस्टर में एफबीआई ने सबसे ऊपर लिखा है, हअठळएऊ इ ळऌएाइक यानी एफबीआई को इस व्यक्ति की तलाश है। एफबीआई ने रॉ के इस पूर्व अधिकारी का नाम विकास यादव और इसका कोडनेम ‘अमानत’ बताया है, इसमें विकास यादव की कुल 3 तस्वीरें लगाई गई हैं, जिनमें एक तस्वीर में वह सेना की वर्दी में नजर आ रहे हैं, और इस पोस्टर के मुताबिक विकास यादव हरियाणा के रेवाड़ी ज़िले के रहने वाले हैं और उनकी उम्र 39 वर्ष है। इसमें ये भी लिखा है कि विकास यादव ही वो शख्स हैं, जिन्होंने ‘अमेरिका’ की जमीन पर उसके एक भारतीय मूल के वकील और राजनीतिक कार्यकर्ता की हत्या कराने की साजिश रची थी। एफबीआई के मुताबिक ‘जब यह साजिश रची जा रही थी तब विकास यादव भारत सरकार के कैबिनेट सचिवालय में कार्यरत थे जहां भारत की विदेशी खुफिया सेवा, रिसर्च एंड एनालिसिर्स विंग का मुख्यालय है।’ अमेरिकी खुफिया एजेंसियां पन्नू की कथित हत्या की साजिश के मामले में भारत सरकार को भी लपेट रही थी। एफबीआई ने अपनी रिपोर्ट में लिखा- 18 जून, 2023 को या उसके आस-पास, भारतीय प्रधानमंत्री की संयुक्त राज्य अमेरिका की राजकीय यात्रा से लगभग दो दिन पहले, नकाबपोश बंदूकधारियों ने कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया में एक सिख मंदिर के बाहर हरदीप निज्जर की हत्या कर दी।
निज्जर पीड़ित (गुरपतवंत सिंह पन्नू) का सहयोगी था और पन्नू की तरह ही सिख अलगाववादी आंदोलन का नेता और भारत सरकार का मुखर आलोचक था। निज्जर की हत्या के अगले दिन 19 जून, 2023 को या उसके आस-पास, निखिल गुप्ता (विकास यादव के सहयोगी) ने एक यूसी (अंडर कवर) को बताया कि निज्जर ‘भी लक्ष्य था’ और ‘हमारे पास बहुत सारे लक्ष्य हैं।’ गुप्ता ने कहा कि निज्जर की हत्या के मद्देनजर, पीड़ित (पन्नू) को मारने के लिए ‘अब इंतजार करने की कोई जरूरत नहीं है”। 20 जून, 2023 को या उसके आस-पास, यादव ने गुप्ता को पीड़ित (पन्नू) के बारे में अखबार मे छपा लेख भेजा और गुप्ता को संदेश दिया, ‘यह अब’ प्राथमिकता है।’
एफबीआई के इस कदम ने भारत सरकार को मुश्किल में डाल दिया था। विरोधी दल ने इसे लेकर भारत की कूटनीति पर सवाल उठाए थे। सोशल मीडिया के एक तबके ने अमेरिका से दोस्ताना रिश्ते बताने वाली मोदी सरकार का मजाक तक उड़ाया। ऐसे में मोदी और आरएसएस से इतनी करीबी रखने वाली शख्स को सीधे राष्ट्रीय खुफिया निदेशक (डीएनआई) बना देने को भारत का कूटनीतिक दांव बताया जा रहा है। दरअसल राष्ट्रीय खुफिया निदेशक (डीएनआई) अमेरिकी खुफिया समुदाय का प्रमुख होता है, जो राष्ट्रीय खुफिया कार्यक्रम की देखरेख करता है और राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में राष्ट्रपति, राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद और होमलैंड सुरक्षा परिषद के सलाहकार के रूप में कार्य करता है। अमेरिकी खुफिया समुदाय में 18 संगठन शामिल हैं, जिनकी देखरेख डीएनआई करता है। सीआईए, संघीय जांच ब्यूरो (एफबीआई) और राष्ट्रीय खुफिया निदेशक के कार्यालय के अलावा इसमें वायु सेना, सेना, तट रक्षक इंटेलीजेंस, रक्षा खुफिया एजेंसी, ऊर्जा विभाग, गृह भूमि सुरक्षा विभाग, राज्य विभाग, राजकोष विभाग, ड्रग प्रवर्तन प्रशासन, मरीन कॉप्र्स खुफिया, राष्ट्रीय भू-स्थानिक-खुफिया एजेंसी, राष्ट्रीय टोही कार्यालय, राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी, नौसेना खुफिया और अंतरिक्ष बल खुफिया शामिल हैं। राष्ट्रीय खुफिया कार्यक्रम कई संघीय विभागों और केंद्रीय खुफिया एजेंसी (सीआईए) में खुफिया गतिविधियों को वित्तपोषित करता है। वर्तमान डीएनआई एवरिल हेन्स हैं , जिन्हें राष्ट्रपति जो बाइडन ने नियुक्त किया था और जनवरी 2021 में उन्होंने कार्यभार संभाला था। हेन्स डीएनआई के रूप में सेवा करने वाली पहली महिला थीं। गबार्ड अगर शपथ लेती हैं तो वे आठवीं डीएनआई होंगी। यह पद अमेरिका पर 11 सितंबर, 2001 को हुए हमलों के बाद बनाया गया था। पहले डीएनआई की नियुक्ति 2005 में पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने की थी।