उत्तराखंड

कैसे काम करते हैं ये नाबालिक चूहे (रैट माइनर्स), दस्तक टाइम्स पर जानें

देहरादून (हरीश थपलियाल)। उत्तरकाशी के सुरंग में 41 मजदूर पिछले 17 दिनों से फंसे हुए हुए थे। जिन्हें रैट माइनर्स की मदद से सुरक्षित बाहर निकाला गया है,रैट माइनर्स ने मलबा हटा कर दूसरे छोर पर रास्ता बनाने का काम किया और देश के सबसे बड़े रेस्क्यू ऑपरेशन को सफल बनाया। हम आपको बताएंगे की रैट माइनर्स कौन होते हैं और किस तरह काम करते हैं।

रैट माइनर्स कौन होते हैं?

इस बचाव अभियान में सहायता करने के लिए सिल्क्यारा पहुंचे रैट माइनर्स में से एक झांसी के रहने वाले परसादी लोधी ने हमें बताया कि वह पाइपों के जरिए भीतर गए और मलबे को साफ किया,उनके हाथों में कुदाल जैसे उपकरण थे,यह काफी गंभीर तरीका भी माना जाता रहा है। उन्होंने कहा, मैं पिछले 10 सालों से दिल्ली और अहमदाबाद में यह काम कर रहा हूं। लेकिन फंसे हुए लोगों को बचाने का काम मेरे लिए सबसे बड़ी प्राथमिकता दी , हमारे लिए डरने का कोई कारण नहीं है। सिलक्यारा टनल 800 मिमी चौड़ा पाइप था और हमने 600 मिमी छेद में काम किया है।

वहां करीब 12 मीटर तक मलबा था, इसको हटाने में 28 घंटे का वक्त लगा। झाँसी से आए विपिन राजपूत ने बताया कि वह पिछले 2-3 सालों से यह काम कर रहे हैं। यह कोयला निकालने की एक विधि है। जिसे चूहे के बिल बनाने और मलबा खोदने के तरीके से लिया गया है। ठीक चूहे की तरह एक आदमी के जरिए मलबा निकाला जाता है।

काफी खतरनाक माना जाता है तरीका

रैट माइनिंग के इस तरीके को काफी खतरनाक माना जाता रहा है और माना जाता रहा है यहां उचित वेंटिलेशन और सुरक्षा उपायों का अभाव होता है। जो मजदूर भीतर गए होते हैं उनके लिए भी कई तरह के खतरों की संभावना बनी होती है। खनन के इस तरीके को कई घटनाओं के सामने आने के बाद काफी खतरनाक माना जाता रहा है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 2014 में इस पर प्रतिबंध लगा दिया था एनजीटी का कहना था कि ऐसे कई मामले हैं जहां बरसात के मौसम के दौरान कई मजदूर मारे गए हैं।

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