कैसे बना 144 साल का दुर्लभ योग!

साल 2025 का महाकुंभ इस मायने में अनूठा है कि यह 144 वर्षो के बाद लगा है। इस गणना को लेकर कई ज्योतिषी सवाल भी उठा रहे हैं। ‘दस्तक टाइम्स’ ने प्रयागराज के उत्थान ज्योतिष संस्थान के निदेशक ज्योतिर्विद डॉ पं. दिवाकर त्रिपाठी पूर्वांचली से इस संबंध में बात की। उनसे पूछा गया कि इस गणना का आधार क्या है? प्रस्तुत है उनका आलेख।
कुंभ मेले का आयोजन ग्रहों और नक्षत्रों की विशिष्ट स्थिति के आधार पर किया जाता है। कुंभ मेला तब आयोजित होता है जब सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति एक विशिष्ट स्थिति में होते हैं लेकिन जब बृहस्पति मकर राशि में और सूर्य व चंद्रमा अन्य शुभ स्थानों पर होते हैं, तब महाकुंभ का समय बनता है और यह संयोग हर 144 वर्षों में एक बार आता है। इस संयोग को विशेष रूप से शुभ और दिव्य माना जाता है। हर 144 साल में एक दुर्लभ खगोलीय घटना होती है, जो कुंभ मेले को विशिष्ट बनाकर महाकुम्भ बना देती हैर्। ंहदू ज्योतिषीय गणनाओं में 12 और 144 वर्षों के चक्र का महत्व बताया गया है। 12 साल के चक्र को एक सामान्य कुंभ मेला कहा जाता है और 12 कुंभ मेलों के बाद (12७12=144 साल) ‘महाकाल कुंभ’ या ‘विशेष महाकुंभ’ आता है। शास्त्रों में कहा गया है कि महाकुंभ में स्नान और पूजा करने से कई गुना अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है। इसे देवताओं और ऋषियों द्वारा भी अत्यधिक पवित्र माना गया है। पौराणिक कथाओं में अमृत मंथन की कथा में कुंभ मेले का उल्लेख मिलता है। यह माना जाता है कि हर 144 साल में अमृत कलश से विशेष ऊर्जा या दिव्यता पृथ्वी पर उतरती है, जिससे यह मेला और अधिक पवित्र हो जाता है।
ज्योतिष शास्त्र की मान्यता है कि जब देवगुरु बृहस्पति अपनी 12 राशियों की यात्रा करने के बाद पुन: वृष राशि में आते हैं, तब प्रत्येक 12 वर्ष के अंतराल पर कुंभ लगता है। इसी प्रकार जब बृहस्पति का वृष राशि में गोचर 12 बार पूर्ण हो जाता है अर्थात वृष राशि में बृहस्पति के गोचर का 12 चक्र पूर्ण हो जाता है, तब उस कुंभ को पूर्ण महाकुंभ कहा जाता है। इस प्रकार जब 12 बार देवगुरु बृहस्पति सभी राशि राशियों में अपना चक्र पूर्ण कर लेते हैं, तब उस कुंभ को महाकुंभ कहा जाता है। इसीलिए इस वर्ष लगने वाला कुंभ पूर्ण महाकुंभ है, जो 144 वर्षों के बाद लगा है। इस वर्ष भी देवगुरु बृहस्पति का गोचर वृष राशि में हुआ है, जो 14 मई 2025 तक रहेगा। 14 जनवरी 2025 को दिन में 2:58 बजे के बाद सूर्य देव का गोचर मकर राशि में आरंभ हुआ। तब देवगुरु बृहस्पति की नवम दृष्टि सूर्य देव पर थी। इसी पुण्यदायक संयोग में ही महाकुंभ शुरू हुआ। इस वर्ष हमारे कर्म फल के प्रदाता ग्रह शनि अपनी राशि कुंभ में गोचर कर रहे हैं। यह भी एक श्रेष्ठ संयोग है।
महाकुंभ पर्व के दौरान ऐश्वर्य, सौभाग्य, आकर्षण, प्रेम, सुख आदि के कारक ग्रह शुक्र अपनी उच्चाभिलाषी स्थिति शनि देव की राशि कुंभ में 1 जनवरी से 29 जनवरी के बीच में गोचर कर रहे हैं। उसके बाद 29 जनवरी 2025 दिन बुधवार की रात में 12:12 बजे से अपनी उच्च राशि मीन में 31 मई 2025 दिन शनिवार तक गोचर करेंगे। मीन राशि के स्वामी ग्रह देव गुरु बृहस्पति होते हैं। इस प्रकार देवगुरु बृहस्पति के साथ राशि परिवर्तन राजयोग का निर्माण होगा, जो परम पुण्य दायक परिणाम प्रदान करने वाला होगा। इन महाकुम्भ पर्व के दौरान बुधादित्य योग, गजकेसरी योग, गुरुआदित्य योग, सहित शश व मालव्य नामक पंच महापुरुष योग का निर्माण होगा जो इस महाकुंभ को श्रेष्ठ फल प्रदायक बनाने वाला है।

भगदड़, मौतें और सियासत
मौनी अमावस्या के स्नान के दिन कुछ ऐसा हुआ जिसने महाकुंभ को दुखी और मायूस कर दिया। सबसे पहले अमृत स्नान की लालसा में दूर-दूर से आए श्रद्धालुओं ने संगम घाट पर रात में ही डेरा डाल दिया। हजारों थके श्रद्धालु रात में भोर में सबसे पहले स्नान की हड़बड़ी में वहीं सो गए। रात करीब एक बजे अखाड़ा क्षेत्र से श्रद्धालुओं का एक रेला बैरिकेडिंग तोड़ कर घाट में घुस गया और भगदड़ मच गई। इस भगदड़ में खुले आसमान के नीचे सो रहे हजारों श्रद्धालु आ गए। उन्हें उठने का भी मौका नहीं मिला। भागती भीड़ का रेला उन सबको कुचलते हुए निकल गया। चारों तरफ चीख पुकार मच गई। घटनास्थल से थोड़ी ही दूर पर झूंसी के पास भगदड़ का एक और वाकया हो गया, सारी व्यवस्थाएं ध्वस्त हो गईं। बाद में सरकार ने बताया कि महाकुंभ की इस भगदड़ में 30 लोगों की मौत हो गई जिसमें से 25 की पहचान हो गई है। 60 घायलों का इलाज अस्पताल में चल रहा है।
कर्नाटक के बेलगाम से आईं विद्या साहू नामक श्रद्धालु ने बताया कि वो स्नान के लिए जा रही थीं तभी न जाने भीड़ कहां से आई और पीछे की ओर धकेलने लगी। उन्होंने बताया कि वो 60 लोगों के समूह के साथ कर्नाटक से आई थीं और उनके पांच साथियों का अब तक पता नहीं है। एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया, जब लोग स्नान के लिए जा रहे थे, तभी बैरिकेडिंग के पास लोग सोए हुए थे। इसके चलते लेटे हुए लोगों के पैरों में फंसकर कुछ लोग गिर गए। उसके चलते पीछे से आते लोगों की भीड़ एक के ऊपर एक गिरती चली गई। बहरहाल इस घटना पर राजनीति होनी ही थी। विपक्ष ने इस भगदड़ के लिए सरकार की बदइंतजामी को जिम्मेदार ठहराया तो कई अफसरों ने इसे लाल टोपी वालों की साजिश करार दिया। मामले की न्यायिक जांच चल रही है।
हादसों का रहा है इतिहास
वैसे कुंभ में भगदड़ की घटनाएं नई नहीं हैं। इससे पहले संगम पर 1954 में भगदड़ में हजारों जानें गई थीं। हरिद्वार में 1927, 1950 और 1986 में भगदड़ मची थी। उज्जैन में सिंहस्थ कुंभ मेले में मची भगदड़ में करीब 50 लोगों की मौत हो गई थी। इसी तरह 2013 में आयोजित प्रयाग के कुंभ में भगदड़ के कारण 40 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी।