जीवनशैलीदस्तक-विशेषस्तम्भ

बार-बार सीढ़ियां चढ़ने-उतरने पर दुबले-पतले हो गए तो पहचान में कैसे आओगे

डॉ मालविका हरिओम,लेखिका एवं कवयित्री

व्यंग: ई घर मा जिसको भी इस लॉकडाउन से बाहर निकलने का मन करत है, ऊ सीधे छत पर पहुँच जात है।

(उमेश यादव/राम सरन मौर्या) : लॉक डाउन के चलते घरों में लोग किन-किन परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं, डॉ मालविका हरिओम अपनी व्यंग सीरीज ‘लेडीज़ लॉकडाउन’ के माध्यम से उन स्थितियों का जिक्र कर रही है। डॉ मालविका हरिओम को वर्तमान सामाजिक और राजनैतिक मुद्दों पर गीत गज़ल और व्यंग लिखने में जादुई महारत हासिल है। उनकी लेखनी में ह्रदय स्पर्शी भाव झलकते नजर आते है। सीढ़ियों से बातचीत का उनका यह व्यंग पढ़िए और आनंद लीजिये।

आज जैसे ही सीढ़ी की रेलिंग पकड़ी, सीढ़ी बोली, रहम करो बहनजी, कभी-कभार के लिए हूँ, दिन में दस-दस बार छत पर चढ़ने के लिए नहीं। क़सम से! जान ले रक्खी है मेरी। मेरी सीधाई का इतना भी फ़ायदा मत उठाओ। कुछ कहती नहीं हूँ तो इसका मतलब ये थोड़े न कि प्राण ही ले लो मेरे।
अपने आस-पास के सभी घर देख लो। इतने सालों से इनमें मेरी बहनें, मेरे रिश्तेदार, सीढ़ी-सीढ़े सब सर्विसेज देते हैं। पर मजाल है कि उनपर कोई लोड आए। सब यही कहते हैं कि भूले-भटके कोई छत पर कपड़ा सुखाने चला जाए तो चला जाए, वरना हम तो आराम से हैं, कोई तंग नहीं करता हमें लेकिन तुमरे यहाँ देखो! जाने कौन लोग हैं ये जिनका चैन नहीं आवत घर के भीतर। सब यही पूछते हैं मुझसे। अब आप ही बताओ बहनजी। ई का ज्यादती नहीं होए रही हमरे साथ!!
मैं सोच में पड़ गयी। मैंने पूछा हमने ऐसी भी क्या तकलीफ़ दे दी तुम्हें। बोली, देखो पहिले सब अच्छा था। एकठो साहब ही थे जो कभी-कभार आ-जा लेते थे। आप सबकी तो सूरतन तक कभू नाहीं देखी हमने। हम सोचिन कि चलो कोई बात नहीं। इतने तक तो सब ठीक था लेकिन अब तो एक, फिर दो, फिर तीन, जाने कौन-कौन आने-जाने लगा।रोज-रोज छत तक चढ़ना उतना आसान तो नाहीं। हम सोचिन कि चलो थोड़े दिन की बात होगी। जानो बहुत दिनों से सब आये नहीं इसलिए छत का मजा ले रहे हैं। लेकिन धीरे-धीरे कुर्सियाँ, मेज,म्यूजिक सिस्टम, गिलास-कटोरी-थाली सब ऊपर चढ़ावन लागे आप लोग। फिर एक-एक करके गमला, बाल्टी, पाइप। अइसन लाग जानो गृहस्थी छत पर ही शिफ्ट कर डारोगे आप।हम समझ गइन कि कौनो विपदा तो जरूर आए गयी है। जिसका भुगतान अब हमका करन परी। घर का घर छत पे दौड़ा रहित है। ऐसे थोड़े ना होता है बहनजी। हम भी इंसान हैं।

मैंने कहा, लेकिन छत तो खुश लगती है। तो सीढ़ी बोली ऊ तो ख़ुश होइबे करी। सालों बाद तो उसकी सुधि ली जा रही है। उसका क्या है। आप सब गाना सुनते, वो भी सुनती। ख़ूब गमले सज गए। ठंडा-ठंडा पानी मिलता रहता है उसको। ऊ तो बंजर पड़ी थी, अब जाके फल-फूल रही है लेकिन हमपे तो लोड बढ़ गया ना बहनजी! आज तो आप बता ही दो कि भवा का है। मेरी दुखती रग छेड़ दी थी सीढ़ी ने। मैंने उसे इस लॉकडाउन के बारे में बताया और यह भी समझाया कि आख़िर क्यों बार-बार छत पर जाने का मन करता है।क्योंकि खुली हवा में साँस लेने की इच्छा होती है।क्योंकि घर के अंदर बैठे-बैठे ऊब होती है। क्योंकि आसमान, पेड़-पौधे, चाँद-तारे-सूरज, उड़ते पक्षी सब देखने का मन करता है। क्योंकि सड़क पर कभी-कभार नज़र आ जाते इंसानों को देखने, उनकी आवाज़ें सुनने की इच्छा होती है। ओह, बस-बस बहनजी, मैं समझ गयी, मने ई घर मा जिसको भी इस लॉकडाउन से बाहर निकलने का मन करत है ऊ सीधे छत पर पहुँच जात है। फिर तो ये बड़ा कष्ट का समय है। और क्या, मैंने तुरंत जवाब दिया। हम भी तो थक जाते हैं आख़िर। कौन बार-बार सीढ़ी चढ़के जाए छत पर। लेकिन जाएँ तो जाएँ कहाँ। घर में बच्चे हैं, सब बोर होते रहते हैं। तुमने शक्लें नहीं देखीं क्या सबकी। उतर गई हैं एकदम। सीढ़ी बोली हाँ, देखकर लागत तो है बहनजी। फिर मैंने हल्की-सी झिड़क और थोड़े अपनेपन से कहा कि ये क्या बहनजी-बहनजी लगा रक्खा है, दीदी बोल ना! तब जाकर सीढ़ी कहीं सहज हुई।

अबके मुस्कुराकर बोली, दीदी, आप चिंता ना करो। मैं हूँ ना! अब जितना मरजी आओ-जाओ छत पर, मैं संभाल लूँगी। बच्चे कई बार लापरवाही से दौड़-दौड़कर चढ़ते हैं, मैंने आपको पहले नहीं बताया, लेकिन अब आप चिंता ना करो, मैं उनका पूरा ख़याल रखूँगी। हमार दीदी की बिटियन, हमार भांजियाँ हुई गयीं जानो। इस नई रिश्तेदारी पर मैं ख़ुद भी गर्वित हुए बिना न रह पायी, मैंने सीढ़ी की रेलिंग को अपने हाथ से हल्का-सा दबाते हुए कहा कि, हाँ बहन, मुझे तुमपर पूरा भरोसा है। आप तनिको परेशान न होवो दीदी। सीढ़ी बोलती ही रही। मैं अब आपके साथ हूँ। वैसे भी आप जितनी बार भी आओ-जाओ, मेरी सेहत पे क्या फरक पड़ना है, मुझे चिंता तो आप लोगन की सेहत की होए रही। दुबले-पतले हुई गए तो पहचान में कैसे आओगे। हाहाहा

इतना कहकर सीढ़ी और मैं दोनों ही हँसने लगे और मैं रेलिंग पकड़ कर छत पर जाने के लिए मुड़ गयी।

सचेत रहिये, घर में रहिये तथा स्वस्थ और सुरक्षित रहिये।

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