धर्मशाला : हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में रह रहे तिब्बतियों के लिए वह समय खास बन गया, जब गुरुवार को यहां देश-विदेश से आए सैंकड़ों तिब्बती शरणार्थी मैकलोडगंज के प्रमुख बौद्ध मंदिर में अपने अध्यात्मिक नेता दलाई लामा की दीर्घायु के लिए विशेष प्रार्थना सभा में जुटे। इसमें खुद दलाई लामा ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई।
तिब्बतियों में अक्सर दलाई लामा की बढ़ती उम्र के साथ उनके स्वास्थय को लेकर चिंता बनी रहती है। हालांकि उम्र के इस पड़ाव पर दलाई लामाअब अभी भी नौजवान दिखते हैं। उनकी उम्र उनके विशव शांति, आपसी भाईचारा और प्रेम सद्भाव के प्रति समर्पित उनके अभियान में कहीं आड़े नहीं आ रही। भले ही चीन उन्हें अलगाववादी करार देता हो, लेकिन दुनियाभर के बौद्ध अनुयायी उन्हें भगवान मानते हैं। वह अवतारी पुरुष हैं। उनकी शिक्षाओं और प्रवचन के लाखों लोग मुरीद हैं। वह जहां जाते हैं वहां लोगें का जमावड़ा लग जाता है। आज भी यहां कुछ ऐसा ही नजारा था। जब तिब्बती ही नहीं बड़ी तादाद में भारतीय और विदेशी भी यहां जुटे।
मैकलॉडगंज के प्रसिद्ध बौद्ध मंदिर में केन्द्रीय तिब्बती स्कूल मसूरी और पंचमढ़ी से आए छा़त्रों के अलावा मंगोलिया से आए बौद्ध श्रद्धालुओं की ओर से यह कार्यक्रम किया गया। दलाई लामा की दस हजार कल्प आयु की कामना की गई। इस अवसर पर उत्सवी माहौल में तिब्बतन इंस्टीट्यूट ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट के कलाकारों ने विभिन्न पारंपरिक परिधानों में हजारों बौद्ध श्रद्धालुओं के बीच प्रस्तुति देकर हर किसी को मंत्रमुग्ध कर दिया। वैदिक मंत्रोचरण के बीच अनुष्ठान किया गया।
दलाई लामा ने सभी का हाथ उठाकर अभिवादन स्वीकार किया। और कहा कि चिंता मत करें, वह पूरी तरह स्वस्थ हैं। सौ साल तक जियेंगे। दलाई लामा ने नालंदा परंपरा को याद करते हुए कहा कि नालंदा के 17 आचार्यों के कारण तिब्बत में महायान व्रजयान का प्रवेश और विकास हुआ। उनका अभिषेक करने के बाद उपस्थित श्रद्धालुओं को प्रवचन पर अमल करने को कहा। उन्होंने कहा कि जब तक हम अच्छे-बुरे में भेद नहीं कर पाएंगे, तब तक कल्याण नहीं होगा। कुशल कर्म से ही हम तृष्णा मुक्त होंगे।
आध्यात्मिक बंधन के संरक्षण के लिए लोगों को धन्यवाद करते हुए दलाई लामा ने कहा कि लंबे समय से दीर्घायु प्रार्थना सभा शिक्षक और उसके शिष्यों के बीच एक मजबूत आध्यात्मिक बंधन में निहित है। अपने अनुयायियों को सलाह देते हुए कहा कि उनकी इच्छाओं को पूरा करने के लिए सबसे अच्छा तरीका बुद्ध के एक सच्चे अनुयायी बनना होगा। तिब्बतियों से आह्वान करते हुए उन्होंने कहा कि धार्मिक शिक्षा और इसके अभ्यास की गुणवत्ता पर ध्यान लगाने की जरूरत है।