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सैकड़ों कोस पैदल चलने वालो की आपबीती..

अशोक पाण्डेय

पहले लॉकडाउन और दूसरे लॉकडाउन में घर से पैसा मंगाकर खाया। जब घर पर भी पैसा खत्म हो गया तो क्या करते,पैदल चलना ही बचा था।

आपदा: रेहड़ी-पटरी और खोमचे वाले निर्माण कार्यों में लगे मजदूर, कामगार और रिक्शा चलाने वाले श्रमिकों का एक बड़ा वर्ग है जो रोज़ कमाता और रोज़ परिवार का पेट भरता है, लेकिन कोरोना महामारी के कारण देश में लॉकडाउन के बाद ऐसे लाखों दिहाड़ी मज़दूरों के समक्ष रोज़ी रोटी के साथ जीवन का संकट खड़ा हो गया है। हमने सैकड़ों कोस चलने वाले कुछ मजदूरों और कामगारों से बात की और उनकी परेशानियों से रूबरू हुए। कुछ चुनिंदा लोगो कि जुबानी उन लाखो मजदूरो कि परेशानी महसूस की जा सकती हैं जिन्होने यह भीषण मंजर झेला और थक कर गिरे नही,आखिर में अपनी मंजिल पा ही ली।

परशुराम

परशुराम भी उन्हीं लाखों लोगों में से एक हैं, जिन्हें कोरोना महामारी के चलते देशभर में अचानक लागू किए गए लॉकडाउन के कारण पंजाब के पिंडरी से यूपी के बलरामपुर लौटना पड़ा। पूछने पर – आप पंजाब से कैसे आए ? परशुराम रूंधे गले से बताते हैं -“हम दिहाड़ी मजदूरी करते हैं लॉकडाउन के बाद कुछ समय तक इंतजार किया। जो कमाकर बचाया था। सब पैसा-कौड़ी खत्म हो गया।खाने के लिए एक ढेला नहीं था चार दिनों तक भूखे रहे। फिर सोचा जब मरना ही है, तो क्यों न चले अपने गांव पर ही मरे”। तेजी से सांस लेते हुए वे कहते है जब हम पैदल चलकर अंबाला पहुंचे तो पुलिस ने हम लोगों को रोक लिया और कहा जहां से आए हो वही वापस लौट जाओ। तो फिर हम लोग शहर के एक नाले (जो गंदगियों से भरा हुआ) उसे पार करके उसी के किनारे- किनारे अंबाला शहर से बाहर आ गए। नहा धोकर आगे बढ़े। आगे परशुराम बताते हैं कि हमने सोच लिया था कि शरीर में जब तक जान रहेगी हम चलते रहेंगे वैसे ही मारना ही है। फिलहाल परशुराम पंजाब से पैदल चलकर अपने गांव के स्कूल में क्वारंटीन सेंटर में है ।

रजनीश सक्सेना

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी से यूपी के महोबा पहुंचने वाले रजनीश सक्सेना ने अपना दुख साझा किया। वे कहते है कि “श्याम कंपनी जो रेलवे का इलेक्ट्रॉनिक का काम करती है हम उसमें काम करते थे। जैसे ही लॉकडाउन हुआ कंपनी ने पैसा देना बंद कर दिया। कंपनी के मैनेजर ने हम लोगों को झूठ बोल कर पिकअप में बिठाकर कटिहार छोड़ दिया। पैदल चले, ट्रक पर बैठे,जो भी साधन मिला उससे ही हम कल अपने घर आ गए।वे कहते है हम लोगों के लिए सरकार और प्रशासन का कोई मतलब नहीं है।

मनोरंजन यादव

हैदराबाद से चलकर बिहार के भोजपुर पहुंचने वाले मनोरंजन यादव कहते है हम लोग हैदराबाद से एक ट्रक में चले लेकिन जैसे ही एमपी बॉर्डर पहुंचे पुलिस वालों ने ट्रक को रोक दिया और ट्रक को सील कर दिया। हम लोगों को गाली देते हुए कहा यहां से भाग जाओ। फिर हम लोग भूखे प्यासे पैदल चल दिए कोई और विकल्प नहीं था। आगे वे कहते है कि मोदी सिर्फ टीवी पर आते हैं और करते कुछ नहीं है। बिहार सरकार तो बिल्कुल नकारी है। कहते हैं हमारा गला सूख गया अब हम कुछ नहीं बोलेंगे। मनोरंजन फ़िलहाल आज़ अपने घर पहुंचे गये।

इंद्रजीत

मुंबई के अंधेरी में पेंटर का काम करने वाले इंद्रजीत यूपी के श्रावस्ती जिले में अपने घर पहुंच गए। वे कहते है कि “लॉकडाउन के साथ हम लोगों का काम भी लॉक हो गया और हम जल्दी ही घर से गये थे।तो पैसा भी बहुत नहीं था। पहले लॉकडाउन और दूसरे लॉकडाउन में घर से पैसा मंगाकर खाया। जब घर पर भी पैसा खत्म हो गया तो क्या करें पैदल चलना ही बचा था।और हम निकल पड़े नासिक बॉर्डर पर पहुंचते ही पुलिस वालों ने रोका लिया। हमको मारा और भद्दी भद्दी गालियां दी और कहां इतना मारेंगे कि यूपी वाले पहचान भी नहीं पाएंगे। फिर तीन स्टार वाला सिपाही आया उसने हमदर्दी दिखाते हुए हम लोगों को आने दिया। वो अपने पैरों के छालों का जिक्र करते हुए कहते हैं हम बम्बई में मरने से बच गए।

सुखराम

तो वही बलरामपुर के सुखराम जो औरंगाबाद के जवाहर नगर से चलकर अपने घर आ गए हैं। सुखराम बिल्डिंग का काम करते है। वे कहते हैं “महाराष्ट्र में बहुत ज्यादा महामारी है और हमारे जेब में पैसा भी नहीं बचा तो क्या करें? हमें तो औरंगाबाद से निकलना ही ठीक लगा। गुस्से से बोलते हैं सरकार कुछ नहीं कर रही है, सिर्फ नौटंकी है। हम लोग के लिए कोई नहीं है। वोट लेना होगा तो आएंगे अभी तो एसी में बैठकर भाषण दे रहे हैं। आगे कहते है कि इस जन्म में अब हम परदेस नहीं जाएंगे। आपने घर में ही नोन-रोटी खा लेंगे।

यह सच है कि उद्योगपति, पूंजीपति, कंपनी मालिक और सरकारें इन मज़दूरों और कामगारों को विश्वास दिलाने में नाकाम रही हैं। ये सभी यह सोचकर गांव से शहर आए थे कि वहां कुछ कमाएंगे, ख़ुद भी सुख से रहेंगे और घर वालों की भी मदद करेंगे। लेकिन एक बार फिर उनका ठिकाना वही गांव बन गया है, जहां से नया और बेहतर ठिकाना ढूँढ़ने के लिए वो कुछ महीने पहले निकले थे। फ़रहत एहसास कि चंद लाइनो से बात ख़त्म।

अंदर के हादसों पे किसी की नज़र नहीं।
हम मर चुके हैं और हमें इस की ख़बर नहीं।।

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