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कारगर उपाय न हुए तो 2040 तक हाइड्रोकार्बन होगी समाप्ति की राह पर : प्रो.भरतराज सिंह

जनकल्याण समिति व एसएमएस ने विश्व पर्यावरण दिवस किया गोष्ठी का अयोजन

लखनऊ : विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर विराम-5, जनकल्याण समिति गोमती नगर तथा स्कूल आफ मैनेजमेंट साइंसेज ने एक गोष्ठी का अयोजन किया। संगोष्ठी में अध्यक्ष, विराम-5 जनकल्याण व पर्यावरणविद, महानिदेशक, स्कूल आफ मैनेजमेंट साइंसेज डा. भरत राज सिह ने बताया कि पर्यावरण क्षति के मुख्य कारण विश्व की जनसंख्या में अप्रत्याशित वृद्धि; जिसके फलस्वरूप विकसित व विकासशील देशों में औद्योगिकीकरण की बढ़ोत्तरी और पृथ्वी के अवयवों का विशेषकर-हाइड्रोकार्बन का अनियमित दोहन है। वही दूसरी तरफ वाहनों की आवश्यकता में कई गुना वृद्धि से पर्यावरण में कार्बन के उत्सर्जन व अन्य नुकसानदायक गैसों की मात्रा में निर्धारित सीमा से कई गुना वृद्धि प्रत्येक वर्ष हो रही है, जिससे वैश्विक तापमान में वृद्धि और पर्यावरण असंतुलन के कारण सम्पूर्ण विश्व आपदाओं से घिरा हुआ है।

उन्होंने बताया कि स्टॉकहोम सम्मेलन में पर्यावरण के एकीकरण पर चर्चा के बाद 1972 में विश्व पर्यावरण दिवस (WED) की स्थापना की गयी थी। उसके दो-साल बाद 1974 से पहला विश्व पर्यावरण दिवस ‘केवल एक पृथ्वी’ विषय पर आयोजित कर 5-जून से प्रतिवर्ष समारोह आयोजित किया जा रहा है । पिछले दशकों में तापमान में भी 2-3 डिग्री सेन्टीग्रेड की वृद्धि हो चुकी है। इससे प्रत्येक दशक में ग्लेसियर में 12.5 प्रतिशत की कमी आ रही है तथा समुद्र की सतह में निरन्तर 2.54 मि0मी0 प्रतिवर्ष की बढ़ोत्तरी हो रही है। प्रो.(डा.) भरत राज सिंह ने बताया कि विगत 15-वर्षों से पर्यावरण असंतुलन पर समाज में लोगों में चेतना जगा रहा हू। मेरे द्वारा लिखित ग्लोबल-वार्मिंग व क्लाइमेट चेन्ज पर तीन (3-पुस्तके भी क्रोसिया से प्रकाशित हो चुकी है। जिसके सुझावों को विश्व में अमेरिका व कनाडा, जर्मनी, फ्रान्स आदि में प्राथमिकता दी गयी है। संयुक्तराष्ट्र अमेरिका ने वर्ष 2014 में हाईस्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है।

सम्पूर्ण विश्व जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान की विभीषिका से ग्रसित है। उत्तरी धु्रव के तेजी से पिघलने के कारण जहां समुद्र की सतह में बढ़ोत्तरी हो रही है। वही विश्व में कोरोना-19 से 80 लाख से 1 करोड़ लोगों की मृत्यु हो चुकी है। इस स्थिति से जब विश्व के समस्त विकसित व विकाशसील देश आर्थिक संकटों से गुजर रहे हैं तथा भारतवर्ष व अन्य विकाशसील देशों के साथ स्थिति से बत से बत्तर हो रही है। आने वाले समय में बच्चो का क्या भविष्य होगा, यह भी एक चिंतनीय विषय है। संगोष्ठी में सचिव, अरुन तिवारी व डा. आर.पी. शर्मा ने बताया कि पर्यावरण संरक्षण का जिक्र वेद व पुराणों में तालाब व पेड लगाने का जिक्र है। रामायण सिह ने बताया पृथ्वी सिकुड रही है। अतः विश्व मानव को पर्यावरण सुरक्षा हेतु कारगर उपाय करना चाहिये। राकेश तिवारी, डी.एस. तिवारी, एस.बी.एल. मेह्रोत्रा व वर्मा ने पेड़ लगाने के लिए तत्परता से कार्य करने की सलाह दी। संगोष्ठी में पर्यावरण सुरक्षा व बहाली के लिये सार्थक उपायों का ध्यान देना आवश्यक होगाः-

• रोशनी में परिवर्तन एल0ई0डी0 बल्ब/एल0ई0डी0 ट्यूब लाइट का प्रयोग
• अधिक से अधिक पेड़ों का लगाया जाना
• जल संरक्षण के सार्थक उपाय
• वैकल्विक ऊर्जा का अधिक से अधिक उपयोग (जैसे-सोलर, बायोमास, मिनी हाइड्रो)
• ग्रामीण रोजगार की बढ़ोत्तरी
• तापीय बिजली घरों का नवीनीकरण
• वाहनों में बिना ज्वलनशील ईधन का उपयोग
• इलेक्ट्रानिक उपकरणों का जब प्रयोग न हो तो बन्द रखना।
• पालीथीन बैग की जगह कागज व कपड़े के थैलों का उपयोग करना।
• पर्यावरण के मुद्दों के बारे में सूक्ष्म जानकारी दूसरों के साथ बांटना।

डा. सिह ने बताया कि यदि वर्तमान में कारगर उपाय न किये गये तो वर्ष 2040 तक हाइड्रोकार्बन जिसका पृथ्वी से दोहन हो रहा है, लगभग समाप्ति के कगार पर होगा व उत्तरी-ध्रुव पर बर्फ के तीव्रता से पिघलने के कारण 2030 तक नाम-मात्र ही बर्फ मौजूद रहेगी तथा विश्व के सभी पर्वतीय श्रृंखलाओं में जहां ग्लेसियर है, समाप्त हो जायेंगे, जिससे समुद्र की सतह में लगभग 13 से 14 फीट पानी की बढ़ोत्तरी होना सम्भव है तथा 2015 के वर्तमान शोध के अनुसार पृथ्वी के घूर्णन में परिवर्तन होना निश्चित है एवं पृथ्वी की गति में भी कमी आना सम्भव है, जिससे किसी भी अप्रत्याशित घटना होने से नकारा नहीं जा सकता है। अतः हमें ‘पर्यावरण दिवस’ पर सम्पूर्ण जनमानस को पर्यावरण संरक्षण के लिये ‘पर्यावरण बचाओ- पृथ्वी बचाओ- जीवन बचाओ’ का नारा लगाना चाहिये।

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