स्पीकर के साथ सदन को मिलेगा नेता प्रतिपक्ष, तो क्या राहुल गांधी ही संभालेंगे ये जिम्मेदारी !
नई दिल्ली: सोमवार से लोकसभा सत्र शुरु होने वाला है और 9 दिन तक चलने वाले इस सत्र में पक्ष और विपक्ष का एक नया रूप देखने को मिलेगा। सत्र के दौरान स्पीकर का चुनाव भी होगा और इसके साथ ही सदन को नेता प्रतिपक्ष भी मिल जाएगा। पिछले दो चुनावों में देश को बेहद मजबूत सरकार देने वाली जनता ने इस बार एक मजबूत विपक्ष भी दिया है, ऐसा माना जा रहा था कि नेता प्रतिपक्ष का पद राहुल गांधी ही संभालेंगे लेकिन फिलहाल उन्होंने इस पद पर आसीन होने के लिए विचार करने की बात कही है। सूत्रों के हवाले से एक रिपोर्ट में कहा गया है कि एक सप्ताह के भीतर इस मामले में कांग्रेस अपना रुख तय कर सकती है। ऐसे में अभी भी यह राज बना हुआ है कि नेता प्रतिपक्ष कौन होगा।
नेता प्रतिपक्ष के लिए और भी चर्चा में हैं नाम
सूत्रों का यह भी कहना है कि राहुल गांधी लोकसभा में विपक्ष का नेता बनने को तैयार नहीं हैं। राहुल गांधी कई बार कह चुके हैं कि उन्हें सत्ता की राजनीति में कोई दिलचस्पी ही नहीं है, और वो क्या करना चाहते हैं और क्या नहीं, इसका भी उन्हें पूरा अधिकार हासिल है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जिन सूत्रों के हवाले से राहुल गांधी के विपक्ष का नेता बनने का प्रस्ताव अस्वीकर कर देने की खबरें आ रही हैं, वे ही ऐसे संभावित नेताओं के नाम भी बता रहे हैं, जिनको कांग्रेस की तरफ से नेता प्रतिपक्ष के लिए नॉमिनेट किया जा सकता है। इनमें कुमारी शैलजा, गौरव गोगोई और मनीष तिवारी के नाम भी शामिल हैं। हरियाणा से आने वाली कुमारी शैलजा की सबसे बड़ी खासियत है कि वो सोनिया गांधी की करीबी गांधी बहुत पसंद करते हैं। पिछली लोकसभा में कई मौकों पर उन्होंने अपने भाषण से लोगों का ध्यान भी खींचा है। पेशे से वकील मनीष तिवारी मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री रह चुके हैं, और इस बार चंडीगढ़ लोकसभा सीट से आये हैं। सबसे खास बात मनीष तिवारी कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) के अकेले संयुक्त उम्मीदवार हैं जो लोकसभा चुनाव 2024 में जीत हासिल कर संसद पहुंचे हैं।
दस साल बाद विपक्ष पूरी कर रहा है पद की योग्यता
अपने प्रदर्शन में लगातार सुधार करते हुए कांग्रेस ने 2024 के आम चुनाव में लीडर ऑफ अपोजीशन का ओहदा पाने लायक लोकसभा की 10 फीसदी से ज्यादा सीटें जीत ली हैं। कांग्रेस को लोकसभा की कुल संख्या का 18 फीसदी 99 सीटें मिली हैं। 2014 में कांग्रेस 44 और 2019 में 52 लोकसभा सीटें ही जीत पाई थी, जो नेता प्रतिपक्ष पद के लिए जरूरी 54 सीटों से कम थी। आखिरी बार भाजपा की सुषमा स्वराज 2009 से 2014 तक लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष थीं।
क्या जिद्दी हैं राहुल गांधी
2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद राहुल गांधी ने जिम्मेदारी लेते हुए अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था, और ये जिद भी पूरी करके ही माने कि गांधी परिवार से बाहर का ही कोई नेता कांग्रेस अध्यक्ष बनेगा। अशोक गहलोत के इनकार कर देने के बाद एक चुनावी प्रक्रिया के तहत शशि थरूर को शिकस्त देते हुए मल्लिकार्जुन खरगे कांग्रेस के अध्यक्ष भी बन गए। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कांग्रेस चाहती है कि राहुल गांधी ही लोक सभा में विपक्ष के नेता की जिम्मेदारी संभालें। राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे और वायनाड से प्रियंका गांधी वाड़ा के लोकसभा पहुंचने की पूरी संभावना है।
युवाओं ने बदलाव के लिए डाले हैं वोट
जानकारों का कहना है कि इस चुनाव में राष्ट्रीय स्तर पर जनता के सामने राहुल गांधी का ही चेहरा था। 2019 में राहुल गांधी को अमेठी तक से बेदखल कर देने वाले उत्तर प्रदेश के लोगों ने तो इस बार कांग्रेस की झोली में 6 सीटें डाल दी हैं। नंबर चाहे जो भी हो, कांग्रेस को तो लोगों ने भाजपा के विरोध में ही वोट दिया है, निश्चित तौर पर उनमें कुछ वोटर कांग्रेस के 5 न्याय और 25 गारंटी से प्रभावित हुए और बड़ी संख्या में युवाओं ने बदलाव के लिए वोट डाले हैं। देश को एक मजबूत विपक्ष देने के मकसद से ही लोगों ने कांग्रेस के अघोषित नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन को वोट किया है।
प्रस्ताव पारित कर चुकी है कांग्रेस कार्यकारिणी
कांग्रेस कार्यकारिणी (सी.डब्ल्यू.सी.) ने अपनी तरफ से कर्त्तव्य का पालन करते हुए राहुल गांधी राहुल गांधी को लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के पद का प्रस्ताव भी पारित कर दिया है। हालांकि ये भी कहा जा रहा है कि राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष की तरह लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का प्रस्ताव भी ठुकरा दिया है। कार्यकारिणी में प्रस्ताव को लेकर हुए विचार- विमर्श की एक झलक तब मिली जब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे मीडिया को ये जानकारी दे रहे थे कि राहुल गांधी रायबरेली अपने पास रखेंगे और उपचुनाव होने पर वायनाड लोकसभा सीट से कांग्रेस की उम्मीदवार प्रियंका गांधी वाड्रा होंगी।
राहुल के नेता प्रतिपक्ष बनने से ये होगा फायदा
सियासी पंडितों का कहना है कि राहुल गांधी के नेता प्रतिपक्ष बनने से कांग्रेस सांसदों के साथ साथ बाकी नेताओं और कार्यकर्ताओं का भी उत्साह बढ़ेगा। यही नहीं राहुल गांधी की परिपक्वता बढ़ेगी, छवि में भी निखार आएगा। जानकार कहते हैं कि सड़क पर भाषण देने और संसद में बोलने में काफी फर्क होता है। सड़क पर तो कोई कुछ भी बोल देता है, लेकिन संसद में वह सब नहीं चलता। वहां तोल मोल कर ही बोलना होता है। राहुल गांधी तो वैसे ही भी मानहानि के कई मामलों में लगातार अदालतों के चक्कर काट रहे हैं। बेशक वो लिख कर ही संसद में भाषण दें, लेकिन संसद में उनके भाषण में संजीदगी देखने को मिल सकती है। इस तरह नेता प्रतिपक्ष बनने से उनमें भी गंभीरता आएगी।