पुर्तगाली यदि न लाते आलू तो !टिक्की, समोसा, चिप्स, लालू ?
के. विक्रम राव
स्तंभ: सर्वहारा की सब्जी, बिना रेशे का गूदेदार गांठवाला ? मतलब आलू ! आज के दिन (28 जुलाई 1586) वह भारत की यात्रा पर था, वाया यूरोप। लातिन अमेरिका (पेरु) से वह लंदन पहुंचा था। महान गणितज्ञ, नृजाति निष्णात और नाविक सर थॉमस हैरियट इसे लाए थे। पुर्तगाली उपनिवेशवादी उनसे लेकर केरल लाये। मगर केरल में उगा नहीं। उत्तर प्रदेश में खूब जमा, फैला। इसे पुर्तगाली बटाटा कहते हैं। इसीलिए मुंबई में भी बटाटा है। लजीज व्यंजन है बटाटा वड़ा (आलू पकौड़ा)। पाव भाजी में खूब चलता है। सर थॉमस हैरियट अपने साथ तंबाकू भी वर्जिनिया प्रदेश (अमेरिका) से लंदन लाए थे। आलू से ठीक एक दिन पूर्व (27 जुलाई 1586) तंबाकू ने लंदन में पदार्पण किया था। उनके नियोक्ता सर वाल्टर रैले इसके प्रथम उपभोक्ता थे। वे जब चुरूट सुलगा रहे थे तो उनके नौकर उनके चेहरे पर पानी फेंका, यह समझ कर कि ओठों में आग लग गई है। पहली बार सिगरेट का यह पूर्वज यूरोप महाद्वीप में दिखा था। यूरोप तथा एशिया महाद्वीपों में आलू तथा तंबाकू को पेश करने वाले वाल्टर रैले के लिए उनके सखा-साथी थामस हैरियट को यातना भुगतनी पड़ी थी। वाल्टर रैले पर इंग्लैंड के स्टुअर्ट वंश के बादशाह और महारानी एलिजाबेथ प्रथम के भतीजे राजा जेम्स की हत्या के प्रयास के आरोप था। उनका सर कलम कर दिया गया। वाल्टर रैले रोमन कैथोलिक थे। प्रोटेस्टेंट बादशाह जेम्स से घृणा करते थे।
अब लौटें भाजी-तरकारी की गाथा पर। सोचकर पसोपेश में पड़ जाते हैं कि अगर पुर्तगाली आलू न लाते दक्षिण भारत तट पर तो ? जन साधारण का पकवान बन ही न पाता। यह कंदमूल फल कैल्शियम, आयरन और विटामिन सी से भरपूर होता है। इसमे रोग से बचाव की क्षमता भी होती है। सर्दी जुकाम में भी इसका सेवन किया जा सकता है। देश में आलू की कुल खपत सालाना 30-35 मिलियन टन है। हालांकि, यह कीमतों और उपलब्धता पर निर्भर करती है। भारत में हर साल करीब 50 मिलियन टन आलू की पैदावार होती है। हर साल औसतन 21 लाख एकड़ भूमि में खेती होती है। चीन आलू की सबसे अधिक उत्पादन वाला देश है। भारत दूसरे स्थान पर है। विश्व में मक्का, गेहूँ और चावल के बाद सबसे अधिक खपत आलू की ही होती है। उत्तरी भारत सब्जीयुक्त व्यंजनों के लिए आलू पर ही निर्भर है। कुछ ऐसे देश भी है जहां पूरे देश की जनता ही आलू पर निर्भर है। सबसे बड़ा देश रूस है। आयरलैंड की जनता आलू निर्भरता में अव्वल स्थान रखती है। आलू से बनने वाले पकवानों की सूची लंबी है। हर सब्जियों में आलू का प्रयोग किया जा सकता है। इसी खूबी के कारण इसे सब्जियों का राजा कहा जाता है। आलू के साथ पकाए जानेवाले पकवान आलू गोभी, आलू बैंगन तथा आलू मटर हैं।
वनस्पति विज्ञान की दृष्टि से यह एक तना है। इसकी उद्गम स्थान दक्षिण अमेरिका का पेरू है। गेहूं, धान तथा मक्का के बाद सबसे ज्यादा उगाई जाने वाली यह फसल है। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने एक अनुसंधान है कि पेरू के किसान लगभग 7000 साल पहले से आलू उगा रहे हैं। सोलहवीं सदी में स्पेन ने अपने दक्षिण अमेरिकी उपनिवेशों से आलू को यूरोप पहुंचाया उसके बाद ब्रिटेन जैसे देशों ने आलू को दुनिया भर में लोकप्रिय बना दिया। आज भी आयरलैंड तथा रूस की अधिकांश जनता आलू पर निर्भर है। दावा है कि जो आलू खाते हैं। वे अधिक मज़बूत हैं। दूसरी चीज़ें खाने वालों की बनिस्बत अधिक ऊर्जावान। फ्रांसीसी सैनिकों के रिकॉर्ड्स से पता चला कि आलू खाने से लोग लंबे हो गए थे। आलू के विस्तार के बाद यूरोप और एशिया में जनसंख्या विस्फोट हुआ।
मैं देख चुका हूं इस सर्वाधिक महत्वपूर्ण तरकारी के जन्मस्थल को। करीब ढाई दशक बीते। वहां विश्व पत्रकार अधिवेशन था। लातिन अमेरिका का यह राष्ट्र तीन सदियों तक यूरोपियन साम्राज्यवादी स्पेन का गुलाम रहा। अंततः आजाद हुआ। वहां के पत्रकार बड़े जागरूक लगे, राष्ट्रवादी भी। संयुक्त राष्ट्र अमेरिका से अभी भी खौफ खाते हैं। वह नवउपनिवेशवादी प्रतीत होता है। हमारा सम्मेलन स्थल था राजधानी लीमा। पेरू के महान साम्राज्य इंकास, जो मुगलों के समकालीन थे, को हराकर दस हजार किलोमीटर दूर से आए हमलावर फ्रांसिस पिंजारो ने उन्हें गुलाम बनाया था। उसी ने लीमा का निर्माण भी कराया। लीमा का एक उपनगर है जहां अंतरराष्ट्रीय आलू केंद्र है। यहां शोध होता रहता है। यहां के निदेशक का दावा रहा कि चिली से लेकर संयुक्त राज्य अमरीका तक आलू कहीं भी मिल जाएगा लेकिन इसकी आनुवंशिक विविधता एंडीज में ही मिलती है।” यहां एंडीज पर्वतों में कुस्को आलू पार्क में संग्रहालय बना है। हमारे टूरिस्ट गाइड ने हमें एंडीज (पर्वत माला) इलाका दिखाया जो विश्व आलू खेती का मुख्यालय है। बताते हैं कि वहां आलू की चार हजार किस्में होती हैं, गुलाबी से नीले वर्ण तक।
यूं तो एक करोड़ की आबादी वाला महानगर लीमा समुद्री व्यंजनों के लिए ख्यात है। पर मुझे शुद्ध शाकाहारी तेलुगु नियोगी विप्र (लहसुन-प्याज तक नहीं) के लिए वर्जित रहा। “सेविचे” नाम था उस व्यंजन का। कहते हैं कि लार टपकती है। इस क्लासिक व्यंजन से नींबू के रस में भिगोई मछली है। ऐसा ही एक अन्य आलू का व्यंजन भी था। “पापा अ ला हुआनकैना” यह रसीले आलुओं से बनता है। इसमें स्वादिष्ट नीबू का रस, मिर्च, क्रीम, पनीर, तीखे लहसुन और मलाईदार दूध आदि से बनी चटनी मिलाई जाती है।
आलू के बाबत किस्सा है। समोसा में आलू तबतक सियासत में लालू वाली कहावत तो है। पर एक और प्रसंग है जो कांग्रेस नेता मोहसिना किदवई जी ने बताया था। एक बार वे इंदिरा गांधी और नारायण दत्त तिवारी के साथ वे मोटरकार से कुमायूं और गढ़वाल की यात्रा पर थीं। इन्दिराजी ने पूछा कि : “अगर गाड़ी खराब हो जाए और रात यही बितानी पड़े। एक ही सब्जी उपलब्ध हो, तो कौन सी चाहेंगे” ? तिवारी जी ने तुरंत कहा : “आलू”। मोहसीनाजी हंस कर बोली : “हर एक के साथ आलू फिट है, तिवारी जी की भांति।”
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)