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शनि की साढ़े साती और ढैय्या से आप भी चाहते हैं बचना तो जरूर करें ये खास उपाय

नई दिल्‍ली : शनिदेव को कर्मफलदाता कहा जाता है. सूर्यपुत्र शनिदेव की स्थिति जिनकी कुंडली में अच्छी होती है उन्हें शुभ फलों की प्राप्ति होती है. लेकिन शनि के प्रकोप से व्यक्ति को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. वहीं जिन जातकों पर शनि की साढ़े सातीऔर ढैय्या चल रही होती है उनके जीवन में नौकरी-व्यापार और स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियां लगी रहती है. ज्योतिष में शनि देव को प्रसन्न करने और शनि के प्रकोप से बचने के कई उपायों के बारे में भी बताया गया है.

ज्योतिष के अनुसार शनि देव को सप्तधान यानी सात प्रकार के अनाज बहुत प्रिय हैं. इसमें सात तरह के अनाज जैसे गेहूं, जौ, चावल, तिल, कंगनी, उड़द और मूंग शामिल होते हैं. ऐसे जातक जिनकी कुंडली में शनि की साढ़े साती या ढैय्या होती है, उन्हें शनि देव को सप्तधान जरूर चढ़ाना चाहिए. इससे शनि देव की बुरी दृष्टि नहीं पड़ती.

सप्तधान उपाय- शनिवार के दिन एक किलो सप्तधान के साथ आधा किलो तिल, आधा किलो काले चने, कुछ लोगे की कील और सरसों तेल को मिलाकर एक नीले कपड़े में बांध लें और इसे किसी शनि मंदिर में दान कर दें. ऐसा करने से शनि देव की कृपा से सारे कष्ट और दुख दूर हो जाते हैं.

इससे संबंधित एक पौराणिक कथा है जिसके अनुसार, शनि देव एक बार चिंता में थे. उन्हें चिंता में देख नारद मुनि ने उनसे इसका कारण पूछा. शनि देव बोले की कर्मों के अनुसार उन्हें सात ऋषियों के साथ न्याय करना होगा. लेकिन इसके लिए पहले सात ऋषियों की परीक्षा लेनी होगी. नारद मुनि के सुझाव से शनि देव ब्राह्मण का भेष धारण कर सप्त ऋषियों यानी सात ऋषियों के पास पहुंचे. उन्होंने ऋषियों संग स्वयं अपनी यानी शनिदेव की बुराई की. लेकिन सभी सप्त ऋषियों ने कहा कि, शनि देव तो कर्मों के फलदाता है और इस तरह से फल देना ही न्यायोचित है.

सप्त ऋषियों से अपने प्रति ऐसी बातें सुनकर शनि देव प्रसन्न हुए और अपने वास्तविक स्वरूप में आ गए. तब सप्त ऋषियों ने एक-एक अनाज से शनि देव की पूजा की. इससे शनि देव प्रसन्न हुए. शनि देव ने कहा जो व्यक्ति सप्त धान से मेरी पूजा करेगा, उसे मेरा प्रकोप नहीं झेलना पड़ेगा. इसलिए शनि की साढ़े साती और ढैय्या के प्रभाव से बचने के लिए सप्तधान चढ़ाने का विधान है.

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