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अगर आप रीढ़ की हड्डी के दर्द से हैं परेशान तो जानें कैसे मिलेगा आराम

नई दिल्ली : शरीर का हर अंग महत्वपूर्ण है और सबका अपना काम है। कुछ शारीरिक समस्याएं उम्र जनित होती हैं, जबकि कुछ ऐसी होती हैं, जिसका शिकार किसी भी उम्र के लोग हो सकते हैं, जैसे रीढ़ की हड्डी से जुड़ी समस्याएं कई कारणों से हो सकती हैं। इसमें किसी दुर्घटना में वर्टिब्रल हड्डी की क्षति, रीढ़ में चोट लगना, रीढ़ की हड्डी की टीबी और आस्टियोपोरोसिस आदि शामिल हैं।

कुछ मामलों में रीढ़ की हड्डी में चोट लगने पर नसों में दबाव पड़ता है और रक्त प्रवाह बाधित होता है, इसके कारण भी रीढ़ विकारग्रस्त हो जाती है। इससे दर्द के साथ कोई भी कार्य करने में अक्षमता आ जाती है। इसके अलावा कमर या पैरों में लगातार दर्द रहना, उठने-बैठने में परेशानी होना, शरीर का अनियंत्रित हो जाना, लकवा जैसी स्थिति बनना, हाथों और पैरों में झनझनाहट होना व स्पर्श या महसूस करने की क्षमता प्रभावित होना आदि परेशानियां होती हैं।

रीढ़ की हड्डी के विकारग्रस्त होने पर चिकित्सक विभिन्न परीक्षणों के आधार पर दवाएं, इंजेक्शन और फीजियोथेरेपी द्वारा उपचार करते हैं, लेकिन इससे राहत मिलने की संभावना उन मामलों में ही होती है, जिसमें समस्या सामान्य होती है। यदि वर्टिब्रल हड्डी में किसी तरह का नुकसान या नसों में दबाव है तो सर्जरी का विकल्प अपनाना पड़ता है। ऐसे मामलों में प्राय: ओपन सर्जरी का विकल्प अपनाया जाता है। इसमें क्षतिग्रस्त हड्डी टाइटेनियम के स्क्रू या राड की सहायता से पुरानी स्थिति में लाई जाती है।

यह प्रक्रिया थोड़ी जटिल व लंबी होती है। इस तरह की सर्जरी में समय लगने के साथ मरीज की उम्र के हिसाब से रक्तस्राव जैसी स्थितियों का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। ओपन सर्जरी होने के कारण रोगी को कई दिन तक हाास्पिटल में भी रहना पड़ता है। इसके अलावा छुट्टी मिलने के बाद बहुत सावधानी बरतनी होती हैं और दो से तीन सप्ताह का समय बिस्तर पर गुजरता है। रीढ़ की हड्डी के विभिन्न विकारों को दूर करने में अपनाई जाने वाली नई तकनीक वेस्सेलप्लास्टी से सर्जरी होने पर मरीज कम समय में अपनी पुरानी दिनचर्या में लौट आता है।

इसलिए खास है ये तकनीक: सर्जरी की वेस्सेलप्लास्टी तकनीक मरीज के स्वास्थ्य के लिहाज से बेहतर है। इसमें चिकित्सक पहले जांचों द्वारा पता करते हैं कि रीढ़ की हड्डी में क्षति कहां पर है। इस दौरान क्षतिग्रस्त जगह की कुछ कोशिकाओं को निकालकर जांच से कैंसर या टीबी के संक्रमण का पता कर लेते हैं। सर्जरी में एक चिकित्सा उपकरण जिसमें निडिल के साथ एक बैलून जुड़ा होता है, को विकारग्रस्त हड्डी तक पहुंचाते हैं।

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