छत्तीसगढ़राज्य

समझ न आए तो स्वीकार करो जगत में हंसी के पात्र नहीं बनोगे – आचार्यश्री विशुद्ध सागर महाराज

रायपुर : सन्मति नगर फाफाडीह में आचार्यश्री विशुद्ध सागर जी महाराज ने धर्मसभा में कहा कि समझ न आए तो स्वीकार करना सीखो। सच्चाई यह है कि कक्षा में शिक्षक के पूछने पर सभी सिर हिला देते हैं,जिन्हें समझ में नहीं आता वह भी कहता है आ गया। जिन्हें समझ न आए उन्हें सिर नहीं हिलाना चाहिए। आपके नहीं कहने पर कक्षा में गुरु के सामने तो हंसी मिलेगी लेकिन पुन: समझ जाओगे जगत के सामने प्रशंसा मिलेगी। ऐसे ही धर्मसभा में भी बैठे हो तो सिर मत हिलाओ, विश्वास मानो जो शिक्षक और गुरु के सामने प्रशंसा चाहते हैं वे लोग सौ प्रतिशत जगत में हंसी के पात्र बनते हैं।

आचार्यश्री ने कहा कि यदि डॉक्टर और वैद्य के सामने निरोगी बन कर बैठोगे तो तुम्हारा रोग ठीक नहीं होगा। किसी को कोई गुप्त रोग हो गया और डॉक्टर को बताने में शर्म कर रहा तो वह कभी ठीक नहीं होगा, आगे मृत्यु को प्राप्त हो सकता है। इसलिए डॉक्टर और वैद्य के सामने रोग उद्धघाटित करो,गुरु के सामने अज्ञानता उद्धघाटित करो,राजा के सामने अपनी समस्या और पिता के सामने अपनी पीड़ा को रखो। शांति से जीना चाहते हो तो पति के सामने अपनी बात और मित्र के सामने अपनी गहरी बात बताओ।

आचार्यश्री ने कहा कि असमर्थ लोगों से शासन और धर्म दूषित होता है, असमर्थ से संसार विकृत होता है। जिन्हें ज्ञान नहीं है उनसे धर्म दूषित हो सकता है,संस्कृति दूषित हो सकती है। ऐसे लोगों को देखकर उन्हें समझाने की कोशिश करना। जब भी संस्कृति,साहित्य और साम्राज्य का ह्रास होता है,असमर्थ लोगों से होता है। जो असमर्थ है उन्हें उनके अनुकूल मार्ग दिखाया जाए। हर व्यक्ति के मस्तिष्क में निर्णय की मशीन लगी हुई है। जीवन में संभलकर जीना चाहते हो तो पहचान करना सीखो। कोई भी आपकी अधिक प्रशंसा करें तो समझ जाना आप पीसने वाले हो। जगत में बिना मतलब के तुम्हारी प्रशंसा कोई नहीं करता है। बिरले हैं साधु संत जो बगैर मतलब के तुम्हें आशीर्वाद देते हैं।

आचार्यश्री ने कहा कि आनंद जीवन का सूत्र है, क्लेष नहीं। हर जीव आनंद में जीवन जीना चाहता है,फिर क्लेष कहां पर है ? जैसे चिडि?ा सरोवर में बैठी है और आकाश की ओर देख रही कि पानी कब गिरेगा। यही जगत की विडंबना और क्लेष है। आप चाहे कहीं भी देखो, कुछ भी सोचो, विचार करो समय आपके पास होता है। जो सुनय को लेकर चलता है उसके मस्तिष्क में कुनीति का स्थान नहीं है। लोक में शांति और अशांति कहीं नहीं है,यह भी सत्य है। जिन का दुर्भाग्य है उनकी अशांति है,जिन का सौभाग्य है वहां शांति है। जिसने बंध करके रखा है उन्हें अशांति ही मिलेगी, जिसने बंध करके नहीं रखा है उन्हें शांति ही मिलेगी।

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