नैनीताल : उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसले में पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए केंद्र सरकार को उत्तराखण्ड कैडर के आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी को केन्द्र सरकार में इम्पैनलमेन्ट से जुड़े दस्तावेज प्रदान करने का आदेश दिया है। यह आदेश 3 सितंबर को मुख्य न्यायाधीश ऋतु बाहरी और न्याय मूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ द्वारा उस रिट याचिका पर पारित किए गए, जो आईएफएस अधिकारी ने दायर की थी।
हाईकोर्ट ने आदेश में कहा है कि याचिकाकर्ता द्वारा अपने ही रिकॉर्ड की मांग को ध्यान में रखते हुए, प्रतिवादियों को यह निर्देश दिया जा रहा है कि वे याचिकाकर्ता के इम्पैनलमेन्ट से संबंधित प्रक्रिया और निर्णय लेने का रिकॉर्ड प्रदान करें, जो संयुक्त सचिव स्तर पर 15 नवंबर 2022 को लिया गया था। हालांकि, आदेश में स्पष्ट किया गया है कि, केवल याचिकाकर्ता के इम्पैनलमेन्ट से संबंधित रिकॉर्ड ही याचिकाकर्ता को प्रदान किए जाएंगे।
बता दें कि संजीव चतुर्वेदी खुद अपने मामले में उच्च न्यायालय के समक्ष व्यक्तिगत रूप से बहस कर रहे थे। इस प्रकार का आदेश किसी भी न्यायालय द्वारा पहली बार पारित किया गया हैं, जिसमें इम्पैनलमेन्ट से संबंधित दस्तावेजों को संबंधित अधिकारी को प्रदान करने का निर्देश दिया गया है। 15 नवंबर, 2022 को केंद्र सरकार ने एक आदेश पारित किया था, जिसमें कहा गया था कि कैबिनेट की नियुक्ति समिति (ACC) ने संजीव चतुर्वेदी के केंद्र में संयुक्त सचिव समकक्ष पद पर नियुक्ति के लिए इम्पैनलमेन्ट को मंजूरी नहीं दी है।
अपनी याचिका में उच्च न्यायालय के समक्ष संजीव चतुर्वेदी ने अपनी लगातार उत्कृष्ट ग्रेडिंग केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा एम्स में मुख्य सतर्कता अधिकारी (सीवीओ) के रूप में उनके प्रदर्शन की सराहना, हरियाणा कार्यकाल के दौरान उनके पक्ष में पारित चार राष्ट्रपति आदेशों, और उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय, दिल्ली उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के विभिन्न आदेशों का उल्लेख किया, जिन्होंने उनके प्रदर्शन और ईमानदारी की प्रशंसा की थी।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उन्हें कई वर्षों तक लगातार उन शक्तियों द्वारा प्रताड़ित किया गया, जो उनके ईमानदारी और निडरता से अपने आधिकारिक कर्तव्यों का पालन करने के कारण उनके पीछे पड़ी रहीं। यह याचिका ऐसी घटनाओं की कभी न खत्म होने वाली श्रृंखला का परिणाम है।
प्रारंभ में संजीव चतुर्वेदी ने दिसंबर, 2022 में केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) में याचिका दायर की थी। हालांकि, CAT ने इस वर्ष मई में उनकी याचिका यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि ACC और CSB से संबंधित दस्तावेज गोपनीय है, और उनका खुलासा आरटीआई अधिनियम, 2005 की धारा 8 (1) (i) के तहत निषिद्ध है।
चतुर्वेदी ने उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय के समक्ष न्यायाधिकरण के आदेशों को यह दावा करते हुए चुनौती दी कि न्यायाधिकरण के आदेश प्राथमिक रूप से निराधार, काल्पनिक, तथ्यात्मक रूप से गलत और बिना साक्ष्य के प्रस्तुतियों के आधार पर पारित किए गए है. जो केंद्र सरकार द्वारा दी गई थी।
चतुर्वेदी की याचिका में उल्लेख किया गया है कि न्यायाधिकरण ने आर.टी.आई. अधिनियम, 2005 की धारा 8 (1) (1) के उपधारा को पूरी तरह से नजर अंदाज कर दिया, जिसमें कहा गया है कि, मंत्रिपरिषद् के निर्णय, उनके कारण और यह सामग्री जिसके आधार पर निर्णय लिए गए, निर्णय लेने के बाद सार्वजनिक किया जाएगा, जब मामला पूरा या खत्म हो जाए।