दस्तक-विशेष

15 सितंबर का भारतीय इतिहास में महत्व

नई दिल्ली ( दस्तक ब्यूरो) : हर सुबह जब दिन हमारे दरवाजे पर दस्तक देता है, तो वह साथ में अपना इतिहास भी साथ लाता है। ये इतिहास ही हैं, जो हर दिन को एक ख़ास पहचान देते हैं। और यह दिन की नियति है कि वह अपने इस इतिहास को अपने कंधों पर ढोए। जैसे 15 अगस्त कहने मात्र से ही आजाद भारत और नियति से साक्षात्कार का बोध हो जाता है, वहीं 9/11 कहते हीं अमेरिकी ट्विन टॉवर पर हमले का चित्र, और वैश्विक आतंकवाद का मुद्दा जेहन में आ जाता है। एक अभ्यर्थी के तौर पर हमें न केवल परीक्षा की दृष्टि से इस इतिहास को जानना जरूरी होता है, बल्कि मानव समाज के एक अभिन्न अंग के तौर भी यह जरूरी है कि हम हर दिन के इतिहास को जानें, और समझें। क्योंकि इतिहास ही वर्तमान और भविष्य की नींव रखता है।

इसी कड़ी में आज शुरुआत करते हैं 15 सितंबर के इतिहास से:

पूरा देश 15 सितंबर को इंजीनियर्स डे के रूप में मनाता है। देश के महानतम अभियंताओं में से एक और सर्वोच्च नागरिक अलंकरण भारत रत्न से सम्मानित मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के जन्मदिवस के अवसर पर हर वर्ष यह दिवस मनाया जाता है। पहली बार यह दिवस 1968 को मनाया गया था। 15 सितंबर 1860 को मैसूर (कर्नाटक) के कोलार जिले में जन्में विश्वेश्वरैया ने अभियांत्रिकी के माध्यम से आधुनिक भारत के निर्माण में अग्रणी भूमिका निभाई। पूरे देश में बांध को लेकर उनका किया गया कार्य अभूतपूर्व था। चाहे दक्षिण के मैसूर में कृष्णराज सागर बांध हो, या महाराष्ट्र के पुणे के खड़कवासला जलाशय में बांध, या मध्य प्रदेश के ग्वालियर में तिगरा बांध हो, उन्होंने इन सारी परियोजनाओं में अग्रणी भूमिका निभाई। हैदराबाद को आधुनिक स्वरूप देने और हैदराबाद सिटी के निर्माण का श्रेय डॉ. विश्वेश्वरैया को जाता है। उनके द्वारा तैयार की गई बाढ़ सुरक्षा प्रणाली तैयार ने पूरे देश में उन्हें विशिष्ट पहचान दी।

आज का दिन भारतीय महिलाओं के लिए उपलब्धि से भरा दिन है।आज ही के दिन 1953 में विजया लक्ष्मी पंडित संयुक्त राष्ट्र महासभा अध्यक्ष चुनी गईं थीं। यह पद हासिल करने वाली वह विश्व की प्रथम महिला बनीं। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित के नाम ऐसी अनेक उपलब्धियां दर्ज हैं।1947 में भारत के आजाद होने के बाद विजय लक्ष्मी पंडित राजदूत नियुक्त होने वाली विश्व की प्रथम महिला बनीं। उन्होंने तीन राजधानियों के राजदूत के पद पर कार्य किया।इसके पहले भारत सरकार अधिनियम 1935 के तहत 1937 में जब तत्कालीन संयुक्त प्रांत और अभी के उत्तर प्रदेश में कांग्रेस सरकार का गठन हुआ तो उन्हें कैबिनेट मंत्री नियुक्त किया गया। ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन में कैबिनेट पद पाने वाली वह पहली महिला थीं। उन्हें स्थानीय स्व-प्रशासन और जन स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गई, और वह 1947 तक वह इस पद पर बनी रहीं।जन संचार की दृष्टि से आज का दिन बेहद ख़ास है।

1959 में आज ही के दिन देश के पहले टेलीविजन चैनल दूरदर्शन की स्थापना की गई थी। पिछले 63 वर्षों में दूरदर्शन ने कई उपलब्धियां हासिल की हैं और लोक प्रसारक होने की अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाया है। उसने न केवल मनोरंजन, बल्कि जन जागरूकता और राष्ट्रनिर्माण में भी महती भूमिका निभाई है।1997 में प्रसार भारती अधिनियम के लागू होने के बाद से यह स्वायत्त लोक प्रसारक प्रसार भारती के दो प्रभागों में से एक है। स्टूडियो और ट्रांसमीटर बुनियादी ढांचे के मामले में यह देश के सबसे बड़े प्रसारण संगठनों में से एक है। इसका प्रसारण डिजिटल टेरेस्ट्रियल ट्रांसमीटरों पर भी होता है। उपग्रह नेटवर्क के माध्यम से यह न केवल महानगरों और देश के विभिन्न क्षेत्रों में, बल्कि विदेशों में भी यह टेलीविजन, ऑनलाइन और मोबाइल सेवाएं प्रदान करता है।

आखिर में चर्चा उस शख्स की जो अपनी रचनाओं से और अपने किरदारों से जनमानस में अमर हो गया।आज ही के दिन जन्म हुआ था महान उपन्यासकार शरद चंद्र चट्टोपाध्याय का। 15 सितम्बर सन् 1876 ई. को हुगली ज़िले के देवानंदपुर गाँव में जन्में शरद चंद्र ने बारहवीं पास करने के बाद जब तत्कालीन बर्मा और आज के म्यांमार में एक मामूली क्लर्क की नौकरी शुरू की तो क्या मालूम था कि इनके हाथों से लिखे किरदार अमर हो जाएंगे।बांग्ला में लिखे उनके उपन्यास देवदास, परिणीता, श्रीकांत, चरित्रहीन का हिंदी सहित कई भाषाओं में अनुवाद हुआ।

उन्होंने साहित्य में यथार्थवाद शैली को अपनाया। उनकी रचनाओं में महिलाओं को विशेष स्थान मिला, और अपनी लेखनी से उन्होंने ऐतिहासिक तौर पर वंचित इस समुदाय की पीड़ा, उनके जज़्बात को पाठकों के सामने मर्मस्पर्शी तरीके से रखा। उनकी रचनाओं पर कई लोकप्रिय फिल्में बन चुकी हैं। उनकी अमर कृति देवदास पर तो भारतीय सिनेमा की तीन उत्कृष्ट फिल्में बन चुकी है।

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