सुप्रीम कोर्ट का अहम निर्णय, गाय तस्करी मामले में बरी होने के बाद वाहन जब्त करना संपत्ति के अधिकार का उल्लंघन
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा है कि पशु तस्करी (Animal smuggling) में किसी ट्रक मालिक (Truck owner) को आपराधिक मामले से बरी किए जाने के बाद उसके वाहन को जब्त करना अनुच्छेद-300 ए (Article 300A) के तहत व्यक्ति को मिले संपत्ति के अधिकार का उल्लंघन (Violation of Right To Property) है। जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय (Justice KM Joseph-Justice Hrishikesh Roy) की पीठ ने कहा, ऐसे मामले में जहां अपराधी या आरोपी को बरी कर दिया जाता है तो जिला मजिस्ट्रेट (District Magistrate) द्वारा जब्ती की कार्यवाही का निर्णय लेते वक्त फैसले पर गौर किया जाना चाहिए।
पीठ ने इसके साथ ही मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उस फैसले को दरकिनार कर दिया, जिसमें अब्दुल वहाब द्वारा उसके ट्रक को जब्त करने के खिलाफ दायर एक याचिका को एमपी गोवध निषेध अधिनियम, 2004 और एमपी गोवंश वध प्रतिष्ठा नियम, 2012 के नियम- 5 के तहत खारिज कर दिया था।
उक्त मामले में 17 गायों से लदे अपीलकर्ता के ट्रक को रोक लिया गया और वाहन के चालक सुरेंद्र और एक अन्य व्यक्ति नजीर को गिरफ्तार कर लिया गया था। निचली अदालत ने सभी आरोपियों को यह कहते हुए बरी कर दिया कि अभियोजन यह साबित करने में विफल रहा कि गायों को वध के लिए ले जाया जा रहा था। हालांकि जिला मजिस्ट्रेट ने बाद में ट्रक को जब्त करने का आदेश दिया।
हाईकोर्ट ने डीएम के आदेश के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया। शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल अपील को स्वीकार करते हुए कहा, ट्रक को केवल आपराधिक कार्यवाही के कारण जब्त किया गया था। ऐसे में आरोपियों के बरी होने के बाद वाहन को राज्य द्वारा जब्त नहीं किया जा सकता है।
पीठ ने कहा, जिला मजिस्ट्रेट के पास ऐसे मामलों में स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने और जब्ती का आदेश पारित करने की शक्ति है लेकिन बरी होने के तथ्य पर विचार किया जाना चाहिए। मौजूदा मामले में बरी करने का आदेश पारित किया गया था क्योंकि अभियुक्तों के खिलाफ सबूत गायब थे। आपराधिक मामले में बरी होने पर अपीलकर्ता के ट्रक को जब्त करना, उसे संपत्ति को मनमाने ढंग से वंचित करना होगा और संविधान के अनुच्छेद-300ए (संपत्ति का अधिकार) के तहत प्रत्येक व्यक्ति को मिले अधिकार का उल्लंघन है।
नागरिक आपूर्ति निगम घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में दो आईएएस अधिकारियों अनिल टुटेजा और आलोक शुक्ला की अग्रिम जमानत के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई को सहमत हो गया है। यह याचिका ईडी ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट द्वारा दी गई जमानत के खिलाफ दाखिल की थी।
ईडी की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने चीफ जस्टिस एनवी रमण की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ से कहा कि याचिका पर इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए तत्काल सुनवाई की आवश्यकता है। मेहता ने कहा कि ईडी द्वारा जमानत रद्द करने की मांग वाली याचिका पर नोटिस जारी किया गया है। जवाब और प्रत्युत्तर भी दाखिल किया जा चुका है। इसके बाद चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली पीठ ने सूचीबद्ध करने पर सहमति जताई।