नई दिल्ली: इटली के रोम शहर में आयोजित हुए जी-20 सम्मेलन के मंच से भारत ने एक बार फिर से विकसित देशों को यह स्पष्ट कर दिया है कि वे ऊर्जा की खपत को कम करें ताकि विकासशील देशों के लिए कार्बन उत्सर्जन का रास्ता साफ हो। भारत के प्रतिनिधि पीयूष गोयल ने कहा कि स्कॉटलैंड में संयुक्त राष्ट्र वैश्विक जलवायु सम्मेलन या कान्फ्रेंस ऑफ पार्टी 26 (सीओपी26) में भारत ‘विकासशील दुनिया की आवाज का प्रतिनिधित्व करेगा’ क्योंकि भारत जलवायु परिवर्तन से लड़ रहा है, ताकि भविष्य की पीढ़ी के लिए ग्रह को बेहतर किया जा सके।
गोयल ने कहा, ‘विकसित देशों ने ऊर्जा का भरपूर लाभ उठाया है, अब उन्हें कार्बन उत्सर्जन में कमी करने की आवश्यकता है ताकि विकासशील देश भी कार्बन का लाभ उठा सकें। कई देशों के पास बड़ी मात्रा में स्वच्छ ऊर्जा को अवशोषित करने के लिए पर्याप्त तकनीक नहीं है। नेट जीरो हासिल करने के लिए कोई वर्ष घोषित करने से पहले, इन देशों को अधिक तकनीक और इनोवेशन की जरूरत है।’ उन्होंने कहा, ‘भारत ने विकासशील देशों के हितों की रक्षा के लिए जोर दिया है। पहली बार जी-20 ने जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण सहायक के रूप में स्थायी और जिम्मेदार मुद्दों की पहचान की है।’
पीयूष गोयल से पहले शिखर सम्मेलन के अध्यक्ष आलोक शर्मा ने कहा कि उन्हें ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लक्ष्य को बनाए रखने के लिए COP26 जलवायु वार्ता ही आखिरी उम्मीद दिख रही है। ये सम्मेलन 12 नवंबर तक चलेगा। इसका आयोजन ऐसे वक्त पर हो रहा है, जब दुनियाभर में जलवायु परिवर्तन के कारण प्राकृतिक आपदाएं देखने को मिल रही हैं। कहीं जंगलों में आग लग रही है, तो कहीं बिनमौसम बरसात के कारण बाढ़ आ रही है। विशेषज्ञों ने बार-बार चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर तुरंत कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वक्त में हालात और बेकाबू हो सकते हैं।
इटली के प्रधानमंत्री मारियो द्रागी ने कहा कि इटली जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए गरीब देशों के वित्तपोषण के लिए अगले पांच साल के लिए जताई गई प्रतिबद्धता की राशि में तीन गुना वृद्धि कर 1.4 अरब डॉलर करेगा। द्रागी ने यह घोषणा रोम में जी-20 के शिखर सम्मेलन के समापन पर की। यह राशि अमीर देशों द्वारा संयुक्त रूप से हर साल 100 अरब डॉलर की सहायता उन विकासशील देशों को देने की जताई गई प्रतिबद्धता में इटली का हिस्सा है, जिसका इस्तेमाल इन देशों को कम कार्बन उत्सर्जन करने वाले विकल्पों को चुनने और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को रोकने के लिए किया जाना है।